• क्षतात त्रायते इति क्षत्रियः -- महर्षि याश्क, अपने ग्रन्थ 'निरुक्त' में
अर्थात क्षति (याने पाप, अधर्म, कष्ट, शत्रु आदि सर्व प्रकार की क्षति) से रक्षा करना सच्चे क्षत्रिय का परम कर्त्तव्य होता है।
  • नृशंसमनृशंसं वा प्रजारक्षणकारणात् ।
पातकं वा सदोषं वा कर्तव्यं रक्षता सता ॥ -- वाल्मीकिरामायण, बालकाण्ड, २५वाँ सर्ग
राक्षसी ताड़का के वध का आदेश देते हुए ब्रह्मऋषि विश्वामित्र ने श्रीराम से कहा “क्षत्रिय का यह पहला कर्त्तव्य होता है कि वह अपने सभी लोगों की रक्षा करे। अपने कर्त्तव्य का पालन करते समय किसी के प्राण लेने पड़े तो उसे संकोच नहीं करना चाहिए।
  • क्षतात् किलत्रायत इत्युग्रह, क्षत्रस्य शब्दो भुवनेषु रूढा। -- कालिदास
विनाश या हानि से रक्षा करने के अर्थ में यह क्षत्रिय शब्द सारे भुवनों में प्रसिद्व है।
  • उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम् ।
तडागोदरसंस्थानां परिस्राव इवाम्भसाम्॥ -- चाणक्य
कमाए हुए धन को खर्च करना ही उसकी रक्षा है। जैसे तालाब का जल के बहते रहने से ही साफ रहता है। (अगर पानी एक जगह पर लंबे समय तक ठहर जाए तो वो सड़ जाता है और किसी और किसी काम का नहीं रहता। इसी प्रकार धन का प्रवाह भी बना रहना चाहिए।)
  • धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्॥ -- मनुस्मृतिः ८:२५
मारे जाने पर धर्म मारने वाले का नाश कर देता है और रक्षित धर्म रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले ।
  • सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्याऽभ्यासेन रक्ष्यते ।
मृज्यया रक्ष्यते रुपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ॥
सत्य से धर्म का रक्षण होता है। अभ्यास करने से विद्या का रक्षण होता है। स्वच्छता रखने से रुप का रक्षण होता है। अच्छा आचरण करने से कुल का रक्षण होता है।
  • परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥ -- गीता, अध्याय-४
साधुओं (सज्जनों) की रक्षा करनेके लिये, पापकर्म करनेवालों का विनाश करनेके लिये और धर्म की भलीभाँति स्थापना करने के लिये मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।
  • येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)
  • कुल की रक्षा के लिए एक मनुष्य का, ग्राम की रक्षा के लिए कुल का, देश की रक्षा के लिए ग्राम का और आत्मा की रक्षा के लिए पृथ्वी का त्याग कर देना चाहिए। -- वेदव्यास
  • भारत की रक्षा तभी हो सकती है जब इसके साहित्य, इसकी सभ्यता तथा इसके आदर्शों की रक्षा हो। -- पण्डित कृ० रंगनाथ पिल्लयार
  • सत्य से धर्म की रक्षा होती है। अभ्यास करने से विद्या की रक्षा होती है। शृंगार से रूप की रक्षा होती है। अच्छे आचरण से कुल (परिवार) की रक्षा होती है।
  • धर्मो रक्षति रक्षितः
जब धर्म की रक्षा की जाती है तो धर्म भी (उसकी रक्षा करने वालों की) रक्षा करता है।
  • वास्तव में योद्धा के लिए धर्म की रक्षा हेतु युद्ध करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं होता। -- भगवद्गीता
  • दण्ड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिये लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिये। -- रामायण
  • व्याघ्ररहित वन भी काट दिया जाता है। इसलिए व्याघ्र को चाहिये कि वह वन की रक्षा करे और वन को चाहिए कि वह (अपने अन्दर) व्याघ्र को पाले। -- महाभारत
  • देवता, पशुपालक की भाँति दण्ड लेकर रक्षा नहीं करते। वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं उसे बुद्धि प्रदान कर देते हैं।
  • जिसके मनन, चिन्तन एवं ध्यान द्वारा संसार के सभी दुखों से रक्षा, मुक्ति एवं परम आनन्द प्राप्त होता है, वही मंत्र है।
  • चाणक्य कमाए हुए धन को खर्च करना ही उसकी रक्षा है। जैसे तालाब का जल के बहते रहने से ही साफ रहता है।
  • हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आजादी मिलेगी, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। -- सुभाष चन्द्र बोस
  • हर जाति या राष्ट्र खाली तलवार से वीर नहीं बनता। तलवार तो रक्षा-हेतु आवश्यक है, पर राष्ट्र की प्रगति को तो उसकी नैतिकता से ही मापा जा सकता है। -- वल्लभभाई पटेल

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें

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