युद्ध
तीव्र सशस्त्र संघर्ष
- धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
- मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥ -- धृतराष्ट्र संजय से, भगवद्गीता के आरम्भ में
- धृतराष्ट्र ने कहा -- हे संजय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्र हुए युद्ध के इच्छुक (युयुत्सवः) मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?
- (अर्जुन बोले) हे कृष्ण! युद्ध करने की इच्छा से एक दूसरे का वध करने के लिए यहाँ अपने वंशजों को देखकर मेरे शरीर के अंग कांप रहे हैं और मेरा मुंह सूख रहा है। -- भगवद्गीता
- (कृष्ण ने कहा) हे पार्थ! अपने भीतर इस प्रकार की नपुंसकता का भाव लाना तुम्हें शोभा नहीं देता। हे शत्रु विजेता! हृदय की तुच्छ दुर्बलता का त्याग करो और युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। -- भगवद्गीता
- हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्ग जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् ।
- तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥ -- भगवद्गीता
- (कृष्ण, अर्जुन से कहते हैं कि) हे कुन्तीपुत्र! तुम यदि युद्ध में मारे जाओगे तो स्वर्ग प्राप्त करोगे या यदि तुम जीत जाओगे तो पृथ्वी के साम्राज्य का भोग करोगे। अतः दृढ़ संकल्प करके खड़े होओ और युद्ध करो।
- (कृष्ण ने कहा) एक योद्धा के रूप में अपने कर्तव्य पर विचार करते हुए तुम्हें उसका त्याग नहीं करना चाहिए। वास्तव में योद्धा के लिए धर्म की रक्षा हेतु युद्ध करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं होता। -- भगवद्गीता
- (कृष्ण ने कहा) हे पार्थ! वे क्षत्रिय भाग्यशाली होते हैं जिन्हें बिना इच्छा किए धर्म की रक्षा हेतु युद्ध के ऐसे अवसर प्राप्त होते हैं जिसके कारण उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। -- भगवद्गीता
- सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव ।
- हे कृष्ण , बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी ( भूमि ) नहीं दूँगा ।— दुर्योधन , महाभारत में
- सर्वविनाश ही, सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है।— पं. जवाहरलाल नेहरू
- प्रागेव विग्रहो न विधिः । — पंचतन्त्र
- पहले ही ( बिना साम, दान , दण्ड का सहारा लिये ही ) युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है ।
- यदि शान्ति पाना चाहते हो , तो लोकप्रियता से बचो।— अब्राहम लिंकन
- शांति , प्रगति के लिये आवश्यक है।— डा॰ राजेन्द्र प्रसाद
- आधा युद्ध, मेज पर ही जीता जाता है।
- शाश्वत शान्ति की प्राप्ति के लिए शान्ति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शान्ति ।–स्वामी ज्ञानानन्द