रामायण

आदि धर्मग्रन्थ, संस्कृत महाकाव्य

रामायण, वाल्मिकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य है। इसमें श्रीराम का जीवनचरित वर्णित है।

सूक्तियाँ सम्पादन

  • नाराजके जनपदे धनवन्तः सुरक्षिताः ।
शेरते विवृतद्वाराः कृषिगोरक्षजीविनः ॥
बिना राजा के राज्य में धनी जन सुरक्षित नहीं रह पाते हैं और न ही कृषिकार्य एवं गोरक्षा (गोपालन) से आजीविका कमाने वाले लोग ही दरवाजे खुले छोड़कर सो सकते हैं। अर्थात् राजा न होने पर सर्वत्र असुरक्षा फैल जाती है और चोरी-छीनाझपटी जैसी घटनाओं का उन्हें सामना करना पड़ता है।
  • सुलभाः पुरुषा रजन्! सततं प्रियवादिनः ।
अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ॥ -- मारीच, रावण से ; रामायण के अरण्यकाण्ड में
अप्रिय अर्थात् कठोर बोलने वाला, किन्तु पथ्य अर्थात् सही मार्ग बताने वाला, हितकारी बोलने वाला वक्ता इस संसार में दुर्लभ होते हैं और साथ ही ऐसी वाणी सुनने वाले श्रोता भी दुर्लभ होते हैं ।
  • उत्साहवन्तः पुरुषा नावसीदन्ति कर्मसु ।
जिनके हृदय में उत्साह होता है, वे पुरुष कठिन से कठिन कार्य आ पड़ने पर हिम्मत नहीं हारते ।'


  • सर्वनाश के प्रमुख तीन कारण इस प्रकार हैं- दूसरों के धन की चोरी, दूसरे की पत्नी पर बुरी नजर और अपने ही मित्रों के चरित्र व अखण्डता पर शक।
  • जिनके पास धर्म का ज्ञान हैं, वे सभी कहते हैं कि सत्य ही परम धर्म हैं।
  • जो किसी से धन व सामग्री की सहायता लेने के बाद अपने दिए हुए वचन का पालन नहीं करता, वो संसार में सबसे बुरा माना जाता है।
  • नदी में गिरने से कभी भी किसी की मौत नहीं होती है। मौत तो तब होती है जब उसे तैरना नहीं आता है।
  • उदास न होना, कुंठित न होना अथवा मन को टूटने न देना ही सुख और समृद्धि का आधार है।
  • सत्यवादी ब्यक्ति कभी झूठे बचन नहीं देते। दिए हुए बचन का पालन करना ही उनकी महानता का चिन्ह होता हैं।
  • जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढकर हैं।
  • उदासी अत्यन्त बुरी चीज होती है। हमें कभी भी अपने मस्तिक का नियंत्रण उदासी के हाथ में नहीं देना चाहिये। उदाशी एक ब्यक्ति को उसी प्रकार मार डालती हैं, जैसे की एक क्रोधित साँप किसी बच्चे को।
  • क्रोध हमारा शत्रु है, और हमारे जीवन का अंत करने में समर्थय है, क्रोध हमारा ऐसा शत्रु है, जिसका चेहरा हमारे मित्र जैसा लगता है! क्रोध एक तलवार की तेज़ धार की भांति है! जो हमारा सबकुछ नष्ट कर सकता है।
  • मित्रता या शत्रुता बराबर वालों से करनी चाहिए।
  • किसी भी नेक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक हैं- उदास व दुखी न होना, अपने कर्तव्य पालन की क्षमता, अथवा कठिनाइयों का बल पूर्वक सामना करने की क्षमता।
  • सभी का चेहरा उनकी अंदरूनी विचारधाराओं व भावनाओं का दर्पण होता हैं। इन विचारधाराओं व भावनाओं को छुपाना लगभग असम्भव होता हैं और देखने वाला उन्हें भाँप सकता हैं।
  • जो व्यक्ति जो कार्य निश्चित है उसे छोड़कर, जो कार्य अनिश्चित है उसके पीछे भागे तो वह व्यक्ति उसके हाथ में आया कार्य भी खो देता है।
  • जो व्यक्ति किसी से भेदभाव नहीं करता और सबके साथ अच्छा व्यवहार करता है वह आदमी जीवन में खूब प्रगति करता है, ऐसे आदमी की हर इच्छा पूरी होती है।
  • जो आपका कुमित्र है उन पर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए, और जो मित्र है उन पर भी अंधा विश्वास नहीं करना चाहिए।
  • जो व्यक्ति हमेशा रोना रोते हैं, उन्हें जीवन में कभी सुख नहीं मिलता।
  • दुःख ऐसी वस्तु हैं जो ज्ञान और बल दोनों का विनाशक होता है। दुःख से बड़ा कोई शत्रु नहीं होता।
  • सभी का चेहरा उनकी अंदरूनी विचार और भावनाओं का दर्पण होता है। इन विचार और भावनाओं को छुपाना लगभग असंभव होता है, और देखने वाला उन्हें भांप सकता है।
  • जो पाप तुम कर रहे हो, उसका बंटबारा नहीं होगा।
  • आपसी फूट मनुष्य को नष्ट कर देती है।
  • ऐसा विचार करके दुखी न हों कि विधाता का लिखा हुआ नहीं मिट सकता।
  • बच्चों के लिए उस कर्ज को चुकाना मुश्किल है जो उनके माता-पिता ने उन्हें बड़ा करने के लिए किया है।
  • जिनके पास धर्म का ज्ञान है, वे सभी कहते हैं कि सत्य ही परम धर्म है।
  • संत दूसरों को दुःख से बचाने के लिए कष्ट सहते हैं। दुष्ट लोग दूसरों को दुःख में डालने के लिए हैं।
  • अपनी बातों को हमेशा ध्यानपूर्वक कहे, क्योंकि हम तो कहकर भूल जाते हैं, लेकिन लोग उसे याद रखते हैं।
  • किसी भी नेक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्न लिखित गुंणों का होना आवश्यक हैं – उदास व दुखी न होना, अपने कर्तब्य पालन की क्षमता, अथवा कठिनाइयों का बल पूर्बक सामना करने की क्षमता।
  • दुःख व्यक्ति का साहस खत्म कर देता है। वह व्यक्ति की सीख खत्म कर देता है। हर किसी का सबकुछ नष्ट कर देता है। दुःख से बड़ा कोई शत्रु नहीं है।
  • चरित्रहीन ब्यक्ति की मित्रता उस पानी की बूंद की भांति होती है जो कमल फूल की पत्ती पर होते हुए भी उस पे चिपक नहीं सकता।
  • जो अपनों को छोड़कर दुश्मन के बीच चला जाता है, उसी के अपने पुराने साथी दुश्मन को मारने के बाद उसे भी मार डालते हैं।
  • क्रोध हमारा शत्रु हैं, और हमारे जीवन का अंत करने में समर्थ्य है, क्रोध हमारा ऐसा शत्रु है जिसका चेहरा हमारे मित्र जैसा लगता हैं। क्रोध एक तलवार की तेज़ धार की भांति है। क्रोध हमारा सबकुछ नस्ट कर सकता हैं।
  • केवल डरपोक और कमजोर ही चीजों को भाग्य पर छोड़ते हैं लेकिन जो मजबूत और खुद पर भरोसा करने वाले होते हैं वे कभी भी नियति या भाग्य पर निर्भर नही करते।
  • उत्साह हीन, निर्बल व दुख में डूबा हुआ व्यक्ति कोई अच्छा कार्य नहीं कर सकता, अतः वह धीरे -धीरे दुःख की गहराईयों में डूब जाता है।
  • क्रोध हमारा शत्रु है, और हमारे जीवन का अंत करने में समर्थ है, क्रोध हमारा ऐसा शत्रु है जिसका चेहरा हमारे मित्र जैसा लगता हैं। क्रोध एक तलवार की तेज धार की भांति है। क्रोध हमारा सबकुछ नष्ट कर सकता है।
  • उदासी बहुत बुरी चीज़ होती है, हमें कभी भी अपने मस्तिस्क का नियंत्रण उदासी के हाथ में नहीं देना चाहिए, उदासी एक व्यक्ति को उसी प्रकार मार डालती है, जैसे की एक क्रोधित सांप किसी बच्चे को।
  • अपने जीवन का अंत कर देने में कोई अच्छाई नहीं होती, सुख और आनंद का रास्ता जीवन से ही निकलता है।
  • सदा प्रसन्न रहना कुछ ऐसा है जिसे प्राप्त करना कठिन है। कहने का अर्थ है, प्रसन्नता और दुःख किसी के जीवन में आते-जाते रहते हैं और ऐसा नही हो सकता ही कि लगातार केवल प्रसन्नता ही बनी रहे।
  • जो व्यक्ति हमेशा अच्छा, मीठा बोलता हो, हर समय अपनी भाषा का ध्यान रखता हो, और किसी भी परिस्थिति में बुरे शब्दों का उपयोग नहीं करता वह व्यक्ति जीवन में हमेशा प्रगति करता है।
  • अच्छे लोगों की संगति में बुरा से बुरा मनुष्य भी सही आचरण करने लगता है।
  • हर मनुष्य में दया और प्रेम होना चाहिए, हर किसी के मन में अपने से छोटे के प्रति दया और अपने से बड़ों के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए।
  • किसी भी व्यक्ति के वास्तविक स्थिति का ज्ञान उसके आचरण और चरित्र से हो जाता है।
  • सहयोग और समन्वय की सदैव जीत होती है।
  • ऐसा कोई व्यक्ति अब तक नहीं जन्मा, जो वृद्धावस्था को जीत सका हो।
  • सन्तोष नन्दन वन है तथा शांति कामधेनु है। इस पर विचार करो और शांति के लिए श्रम करो।

रामायण के बारे में विद्वानों के वचन सम्पादन

सन्दर्भ सम्पादन

इन्हें भी देखें सम्पादन

इन्हें भी देखें सम्पादन