क्षत्रिय
हिन्दू धर्म में एक वर्ण
उक्तियाँ
सम्पादन- क्षतात त्रायते इति क्षत्रियः -- महर्षि यास्क, अपने ग्रन्थ 'निरुक्त' में
- अर्थात क्षति (याने पाप, अधर्म, कष्ट, शत्रु आदि सर्व प्रकार की क्षति) से रक्षा करना सच्चे क्षत्रिय का परम कर्त्तव्य होता है।
- क्षतात् किलत्रायत इत्युग्रह,
- क्षत्रस्य शब्दो भुवनेषु रूढा। -- कालिदास
- विनाश या हानि से रक्षा करने के अर्थ में यह क्षत्रिय शब्द सारे भुवनों में प्रसिद्व है।
- धृतव्रता क्षत्रिय यज्ञनिष्कृतो बृहदिना अध्वं राणभर्याश्रियः।
- अग्नि होता ऋत सापों अदु हो सो असृजनु वृत्र तये ॥ -- ऋग्वेद
- क्षत्रिय नियमों का पालक, यज्ञ करने वाला, शत्रुओं का संहारक, युद्व में सधैर्य और युद्व क्रियाओं का ज्ञाता होता है।
- शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्।
- दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्॥ -- गीता 18.43
- शूरवीरता, तेज, धैर्य, प्रजा के संचालन आदि की विशेष चतुरता, युद्ध में कभी पीठ न दिखाना, दान करना और शासन करने का भाव -- ये सब के सब क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं।
- स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि।
- धर्म्याद्धि युद्धाछ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते॥ -- गीता 2.31
- अपने स्वधर्म (क्षात्रधर्म) को देखकर भी तुम्हें विकम्पित अर्थात् कर्तव्य-कर्म से विचलित नहीं होना चाहिये; क्योंकि धर्ममय युद्ध से बढ़कर क्षत्रिय के लिये दूसरा कोई कल्याणकारक कर्म नहीं है।
- यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् ।
- सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्॥ -- गीता, अध्याय 2 श्लोक 32
- वे क्षत्रिय सुखी हैं जिन्हें ऐसे युद्ध के अवसर अपने आप प्राप्त होते हैं जिससे उनके लिए स्वर्गलोक के द्वार खुल जाते हैं।
- बारह बरस लौ कूकर जीवै, अरु सोरह लौ जियै सियार।
- बरस अठारह क्षत्री जीवै, आगे जीवै को धिक्कार॥ -- आल्हखण्ड
- सीधो रजवट परखनो, ऐ रजवट अहनान।
- प्राण जठेई रजवट नहीं , रजवट जठे न प्राण ॥ -- राजस्थान के रजवट साहित्य में