शक्ति
(बल से अनुप्रेषित)
- सङ्घे शक्तिः कलौ युगे। -- महाभारत
- कलियुग में संघ में ही शक्ति है।
- बुद्धिर्यस्य बलं तस्य। -- पञ्चतन्त्र
- जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है।
- नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते मृगैः ।
- विक्रमार्जित सत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ॥ -- हितोपदेश
- सिंह को जंगल का राजा नियुक्त करने के लिए न तो कोई अभिषेक किया जाता है, न कोई संस्कार । अपने गुण और पराक्रम से वह खुद ही मृगेंद्रपद प्राप्त करता है ।
- विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय ।
- खलस्य साधोर्विपरीतमेतत् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ॥
- दुर्जन की विद्या विवाद के लिये, धन उन्माद के लिये, और शक्ति दूसरों को कष्ट देने के लिये होती है। इसके विपरीत सज्जन इनको क्रमशः ज्ञान, दान और दूसरों के रक्षण के लिये उपयोग करते हैं।
- क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे ।
- महापुरुषों की क्रिया-सिद्धि पौरुष से होती है, न कि साधन से।
- विद्वान् का बल विद्या और बुद्धि है। राष्ट्र का बल सेना और एकता है। व्यापारी का बल धन और चतुराई है। सेवक का बल सेवा और कर्तव्यपरायणता है। शासन का बल दंड-विधान और राजस्व है। सुन्दरता का बल युवावस्था है। नारी का बल शील है। पुरूष का बल पुरुषार्थ है। वीरों का बल साहस है, निर्बल का बल शासन व्यवस्था है। बच्चों का बल रोना है। दुष्टों का बल हिंसा है। मूर्खों का बल चुप रहना है और भक्त का बल प्रभु की कृपा है।
- शक्ति भ्रष्टाचार की ओर उन्मुख होती है, और पूरी तरह से निरपेक्ष शक्ति पूरी तरह से भ्रष्ट करती है। -- लॉर्ड ऐक्टन