कलियुग में संघ में ही शक्ति है।
जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है।
  • इच्छाशक्तिर्ज्ञानशक्तिः क्रियाशक्तिश्चेतीमास्तिस्रः शक्तयो। -- स्वातन्त्र्यसूत्रवृत्तिः, प्रथमोऽध्यायः, परमार्थप्रदीपकः
इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति - ये तीन प्रकार की शक्तियाँ हैं।
  • नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते मृगैः ।
विक्रमार्जित सत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ॥ -- हितोपदेश
सिंह को जंगल का राजा नियुक्त करने के लिए न तो कोई अभिषेक किया जाता है, न कोई संस्कार । अपने गुण और पराक्रम से वह खुद ही मृगेंद्रपद प्राप्त करता है ।
  • विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय ।
खलस्य साधोर्विपरीतमेतत् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ॥
दुर्जन की विद्या विवाद के लिये, धन उन्माद के लिये, और शक्ति दूसरों को कष्ट देने के लिये होती है। इसके विपरीत सज्जन इनको क्रमशः ज्ञान, दान और दूसरों के रक्षण के लिये उपयोग करते हैं।
  • क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे ।
महापुरुषों की क्रिया-सिद्धि पौरुष से होती है, न कि साधन से।
  • सामर्थ्यमूलं स्वात्रन्त्र्यं श्रममूलं च वैभवम् ।
न्यायमूलं स्वराज्यं स्यात् संघमूलं महाबलम्॥
स्वतन्त्रता का मूल सामर्थ्य है, वैभव का मूल श्रम है, स्वराज्य का मूल न्याय है, और महाबलशाली होने का मूल है - संगठन।
  • शिवः शक्त्य युक्तो यदि भवति शक्तः प्रभावितुम
न चेदेवं देवो न खलु कुशलः स्पंदितुमपि।
अतः त्वं आराध्यं हरि-हर-विरिंचादिभिर अपि
प्रणन्तुम स्तोत्म् वा कथम् अकृत-पुण्यः प्रभावति।। -- सौन्दर्यलहरी
शक्ति (स्वयं) के साथ मिलकर भगवान शिव ही ब्रह्माण्ड की रचना करने में समर्थ हैं। अन्यथा भगवान हिलने-डुलने में भी समर्थ नहीं हैं। आप भगवान विष्णु, भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा द्वारा भी वंदनीय हैं। इसलिए हे देवी! महान पुण्यों के बिना कोई व्यक्ति आपको कैसे नमस्कार कर सकता है?
  • राज्य तीन शक्तियों से मिलकर बनत है, ये शक्तियाँ हैं- मन्त्र, प्रभाव और उत्साह जो परस्पर अनुगृहीत होकर कार्यों में आतीं हैं। - दण्डी, दशकुमारचरितम्
  • विद्वान् का बल विद्या और बुद्धि है। राष्ट्र का बल सेना और एकता है। व्यापारी का बल धन और चतुराई है। सेवक का बल सेवा और कर्तव्यपरायणता है। शासन का बल दंड-विधान और राजस्व है। सुन्दरता का बल युवावस्था है। नारी का बल शील है। पुरूष का बल पुरुषार्थ है। वीरों का बल साहस है, निर्बल का बल शासन व्यवस्था है। बच्चों का बल रोना है। दुष्टों का बल हिंसा है। मूर्खों का बल चुप रहना है और भक्त का बल प्रभु की कृपा है।
  • शक्ति भ्रष्टाचार की ओर उन्मुख होती है, और पूरी तरह से निरपेक्ष शक्ति पूरी तरह से भ्रष्ट करती है। -- लॉर्ड ऐक्टन
  • शक्ति स्वयं एक स्वतंत्र सत्ता हैं जो किसी भी प्रकार के प्रतिबन्ध को नहीं स्वीकार करती। -- भगवतीचरण वर्मा
  • क्षमा से बढ़कर और किसी बात में पाप को पुण्य बनाने की शक्ति नहीं है। -- जयशंकर प्रसाद
  • ज्ञान को सभी शक्तियों में सर्वोच्च शक्ति माना जाता हैं क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ ज्ञान बढ़ता ही जाता हैं। -- अरविन्द घोष
  • आत्म-सम्मान, आत्म-ज्ञान एवं आत्म-नियन्त्रण ये तीन जीवन को प्रमुख सम्पन्न शक्ति की ओर ले जाते हैं। -- टेनीसन
  • अपनी शक्ति को प्रकट न करने से शक्तिशाली पुरूष भी अपमान सहन करता हैं। -- पंचतंत्र
  • न्यायमते शक्तिस्त्रिविधा योगः रूढिः योगरूढिश्चेति। -- न्यायकोश
न्यायमत से शक्ति तीन प्रकार की होती है- योग, रूढि और योगरूढि।

इन्हें भी देखें

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