ब्राह्मण
वर्ण
ब्राह्मण का शाब्दिक अर्थ है - ब्रह्म-ज्ञानी। सनातन वर्ण व्यवस्था में से ब्राह्मण एक वर्ण है।
उक्तियाँ
सम्पादन- ब्राह्मणोस्य मुखमासीद बहुराजन्यकृतः, उरुत दस्य यद्वैश्यः पदभ्यांशूद्रो अजायत। -- पुरुष सूक्त
- ब्राह्मण परमपुरुष के मुख से, क्षत्रिय बाहुओं से, वैश्य जांघों से तथा शूद्र पैर से उत्पन्न हुए।
- धिग्बलं क्षात्रियबलं ब्रह्मतेजोबलमं बलम् ।
- एकेन ब्रह्मदण्डेन सर्वास्त्राणि हतानि मे ॥ -- वाल्मीकि रामयण , बालकाण्ड (विश्वामित्र द्वारा कहा गया)
- क्षत्रिय के बल (बाहुबल) को धिक्कार है। ज्ञानी के तेज (ब्रह्मतेज) का बल ही वास्तविक बल है। एक ही ब्रह्म्दण्ड से मेरे सभी अस्त्र नष्ट हो गये।
- न योनिर्नापि सँस्कारो न श्रुतं नापिसन्ततिः ।
- कारणानि द्विजत्वस्य वृत्तमेव तु कारणम् । -- महाभारत अनुशासन पर्व
- न जन्म, न संस्कार, न शास्त्र, और न कुल आदि द्विजत्व के कारण हैं (अर्थात इनसे कोई द्विज नहीं हो जाता।) (द्विजत्व का वास्तविक कारण) तो वृत्त (सदाचार) है।
- एकवर्णमिदं पूर्वं विश्वमासीद् युधिष्ठिर
- कर्म-क्रियाविशेषेण चातुर्वर्ण्यं प्रतिष्ठितम्।41।
- सर्वे वै योनिजा मर्त्याः सर्वे मूत्रपुरीषिणः
- एकेन्द्रियेन्द्रियार्थाश्च तस्माच्छीलगुणैर्द्विजाः।42।
- शूद्रोपि शीलसम्पन्नो गुणवान ब्राह्मणो भवेत्
- ब्राह्मणोऽपि क्रियाहीनः शूद्रात्प्रत्यवरो भवेत।43। -- महाभारत
- (फिर वैशम्पायन ने इसकी व्याख्या करते हुए बताया—)
- हे युधिष्ठिर ! इस संसार में पहले एक ही वर्ण था । गुण और कर्म में भेद पड़ने से चार वर्ण- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र माने गये। क्या ब्राह्मण, क्या शुद्ध सब मनुष्यों की उत्पत्ति मूत्र और पूरीष के स्थान योनि से ही होती हैं; सब ही मनुष्य मल-मूत्र त्यागते हैं, सब मनुष्यों की इन्द्रिय, वासनायें समान हैं अर्थात् सब खाते हैं, पीते हैं, देखते हैं, सुनते हैं, चलते हैं, मैथुन करते हैं इत्यादि ( इसलिये जन्म से ऊंच नीच मानना उचित नहीं )। शील की प्रधानता से ही द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ) होते हैं यदि शूद्र शीलसम्पन्न और गुणवान् हो तो ब्राह्मण होता है। और ब्राह्मण भी यदि क्रियाहीन हो जाय, तो वह शूद्र से भर नीच हो जाता है।
- तब ब्राह्मण किसे माना जाय? जो आत्मा के द्वैत भाव से युक्त न हो; जाति, गुण और क्रिया से भी युक्त न हो; षड् ऊर्मियों और षड्भावों आदि समस्त दोषों से मुक्त हो; सत्य, ज्ञान, आनन्द स्वरूप, स्वयं निर्विकल्प स्थिति में रहने वाला, अशेष कल्पों को आधार रूप, समस्त प्राणियों के अन्त में निवास करने वाला, अन्दर-बाहर आकाशवत् संव्याप्त; अखण्ड आनन्दवान्, अप्रमेय, अनुभवगम्य, अप्रत्यक्ष भासित होने वाले आत्मा का करतल आमलकवत् परोक्ष का भी साक्षात्कार करने वाला; काम - रागद्वेष आदि दोषों से रहित होकर कृतार्थ हो जाने वाला; शम-दम आदि से सम्पन्न; मात्सर्य, तृष्णा, आशा, मोह आदि भावों से रहित; दम्भ, अहङ्कार आदि दोषों से चित्त को सर्वथा अलग रखने वाला हो, वही ब्राह्मण है; ऐसा श्रुति, स्मृति-पुराण और इतिहास का अभिप्राय है। इस (अभिप्राय) के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकार से ब्राह्मणत्व सिद्ध नहीं हो सकता। आत्मा ही सत्-चित् और आनन्द स्वरूप तथा अद्वितीय है। इस प्रकार के ब्रह्म भाव से सम्पन्न मनुष्यों को ही ब्राह्मण माना जा सकता है। यही उपचिषद् का मत है॥ -- वज्रसूच्का उपनिषद्
- यहां तक कि कोई शूद्र भी शील एवं सदाचार का अनुसरण करके ब्राह्मण बन सकता है। यदि कोई ब्राह्मण गुण-शील से हीन, स्वार्थी और परिग्रही है, जो क्रोधी, कामी और लालची है, वह शूद्र से भी गिरा हुआ है।43।
- येन सर्वमिदं बुद्धम प्रकृतिर्विकृतिश्च यया
- गतिज्ञः सर्वभूतानां तं देवा ब्राह्मणा विदुः ॥
- जिसको इस सम्पूर्ण जगत की नश्वरता का ज्ञान है, जो प्रकृति और विकृति से परिचित है तथा जिसे सम्पूर्ण प्राणियों की गति का ज्ञान है, उसे देवता लोग ब्राह्मण जानते हैं।
- ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः
- ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है।
- दूरादेव परीक्षेत ब्राह्मणं वेदपारगम्।
- तीर्थं तद्धव्यकव्यानां प्रदाने सोऽतिथिः स्मृतः॥
- सहस्रं हि सहस्राणामनृचां यत्र भुजते।
- एकस्तान्मंत्रवित्प्रीत: सर्वानर्हति धर्मतः॥ -- मनुस्मृति
- ”वेद-वेदांग पारंगत ब्राह्मण की परीक्षा प्रथम से ही करना चाहिए, क्योंकि वही देव, पितर के लिए दिये गये पदार्थों के लिए योग्य अधिकारी और पात्र है। जहाँ लाखों मूर्खों के खिलाने से जितना धर्म होता है वहाँ एक ही वेद-वेदांग के ज्ञाता को भोजनादि से सन्तुष्ट करने से उतना ही पुण्य होता है।
- भूतानां प्राणिनः श्रेष्ठाः प्राणिनां बुद्धिजीविनः,
- बुद्धिमास्तु नराःश्रेष्ठा नरेषु ब्राह्मणाः स्मृताः।
- ब्राह्मणेषु च विद्वांसो विद्वस्तु कृतबुद्धयः,
- कृतबुध्दिषु कर्तारः कर्तृषु ब्रह्मवेदिनः।
- उत्पत्तिरेव विप्रस्य मूर्तिर्धर्मस्य शाश्वती
- सहि धर्मार्थमुत्पन्नो ब्रह्मभूयाय कल्पते।
- ब्राह्मणो जयमानो हि पृथिव्यामधिजायते,
- ईश्वरः सर्वभूतानां धर्मकोशस्य गुप्तये! -- मनुस्मृति, अध्याय -१
- अर्थात भूतों (जो पैदा हुए हैं) प्राणी श्रेष्ठ हैं, प्राणियों में बुद्धि के आधर पर जीने वले प्रणी श्रेष्ठ हैं, बुद्धिमानों में मनुष्य श्रेष्ठ है, और मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं। ब्राह्मणों में विद्वान् और विद्वानों में कर्मज्ञ जिसे कृतबुद्धि कहा जाता है वे श्रेष्ठ होते हैं। कर्मज्ञों में आचारवान श्रेष्ठ होते हैं और आचारवानो में ब्रह्मज्ञानी श्रेष्ठ होते हैं। ब्राह्मण धर्म के लिए उत्पन्न होता है क्योंकि ब्राह्मण ही सभी प्राणियों में धर्मसमूह की रक्षा करने में समर्थ होता है।
- ब्राम्हणः समक् शान्तो दीनानां समुपेक्षकः।
- स्त्रवते ब्रम्ह तस्यापि भिन्नभाण्डात् पयो यथा ॥ -- श्रीमद्भागवत्, चतुर्थ स्कन्द
- ब्राह्मण यदि समदर्शी और शान्तस्वभाव वाला भी हो तो भी दीनों की उपेक्षा करने से उसका तप उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे फूटे हुए घड़े में से जल बह जाता है।
- वृत्तस्थमपि चाण्डालाम तं देवा ब्राह्मणं विदुः। -- पद्मपुराण, सृष्टिखण्ड
- चरित्रवान चाण्डाल को भी देवता ब्राह्मण मानते हैं।
- न जटाहि न गोत्तेहि न जच्चा होति ब्राह्मणो।
- यम्हि सच्चं च धम्मो च सो सुची सो च ब्राह्मणो॥ -- भगवान बुद्ध
- ब्राह्मण न तो जटा से होता है, न गोत्र से और न जन्म से। जिसमें सत्य है, धर्म है और जो पवित्र है, वही ब्राह्मण है।
- तसपाणे वियाणेत्ता संगहेण य थावरे।
- जो न हिंसइ तिविहेण तं वयं बूम माहणं॥ -- महावीर स्वामी
- जो इस बात को जानता है कि कौन प्राणी त्रस है, कौन स्थावर है। और मन, वचन और काया से किसी भी जीव की हिंसा नहीं करता, उसी को हम ब्राह्मण कहते हैं।
- न वि मुंडिएण समणो न ओंकारेण बंभणो।
- न मुणी रण्णवासेणं कुसचीरेण न तावसो॥ -- महावीर स्वामी
- सिर मुंडा लेने से ही कोई श्रमण नहीं बन जाता। ‘ओंकार’ का जप कर लेने से ही कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता। केवल जंगल में जाकर बस जाने से ही कोई मुनि नहीं बन जाता। वल्कल वस्त्र पहन लेने से ही कोई तपस्वी नहीं बन जाता।
- ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
- पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन॥ -- सन्त रविदास
- किसी को केवल इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह किसी पूजनीय पद पर है। यदि व्यक्ति में उस पद के योग्य गुण नहीं हैं तो उसे नहीं पूजना चाहिए। इसकी जगह अगर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो किसी ऊंचे पद पर तो नहीं है लेकिन बहुत गुणवान है तो उसका पूजन अवश्य करना चाहिए।