कूटनीति
राष्ट्रों अथवा समूहों के प्रतिनिधियों द्वारा किसी मुद्दे पर वार्ता करने की कला व अभ्यास (प्रैक्
राजनय, कूटनीति या डिप्लोमैसी। राजनय शब्द का प्रयोग विचारकों द्वारा अनेक अर्थों में किया गया है। इस प्रकार राजनय शब्द विभिन्न अर्थों में प्रयोग किये जाने के कारण पाठक के मन में भ्रम उत्पन्न कर देता है। शायद राजनीति शास्त्र में यह शब्द सबसे अधिक भ्रम उत्पन्न करने वाला है।
परिभाषाएँ
सम्पादन- कभी राजनय का प्रयोग विदेश नीति के समानार्थक के रूप में लिया जाता है तो कभी इस शब्द द्वारा संधि वार्ता को इंगित किया जाता है। राजनय सन्धि वार्ता की प्रक्रिया एवं यंत्र को भी इंगित करता है। कभी-कभी विदेश सेवा की एक शाखा को राजनय कह दिया जाता है । राजनय को अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि वार्ता करने का अमूर्त गुण या कुशलता भी मान लिया जाता है। इसका सबसे दूषित प्रयोग वह है जब इसे एक कपटतापूर्ण कार्य अर्थ में लिया जाता है। -- हेरल्ड निकलसन
- कुशलता, चतुराई एवं कपट सरीखे गुण एक अच्छे राजनय के लक्षण हो सकते हैं किन्तु इन्हें राजनय को परिभाषित करने वाली विशेषता नहीं कहा जा सकता। राजनय विदेश नीति के समकक्ष भी नहीं है। यह विदेश नीति का ऐसा अंग है जो उसकी रचना और क्रियान्विति में सक्रिय योगदान करता है। -- आगेंस्की (Organski)
- राजनय दो अथवा दो से अधिक राष्ट्रों के सरकारी प्रतिनिधियों के बीच होने वाली सन्धि-वार्ता की प्रक्रिया को इंगित करता है। -- आर्गेन्सकी
- राजनय स्वतन्त्र राज्यों की सरकारों के बीच अधिकारों सम्बन्धों के संचालन में बुद्धि और चातुर्य का प्रयोग है। -- सर अर्नेस्ट सैंटों
- यदि राज्यों के आपसी सम्बन्धों में बुद्धि और चातुर्य का अभाव है तो क्या राजनय असम्भव होगा? -- पामर तथा परकिन्स (Parmer and Perkins)
- अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रयुक्त राजनय अपने हितों को दूसरे देशों से अग्रिम रखने की एक कला है। -- के०एम० पनिक्कर
- राजनय को प्रतिनिधित्व एवं सन्धि-वार्ता की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा राज्य शान्तिकाल में परस्पर सम्पर्क रखते हैं। -- पेडिलफार्ड तथा लिंकन
- राजनय की मूलभूत परिभाषा के अनुसार यह राष्ट्रों के मध्य स्थित सम्पर्क का एक रूप है जो प्रत्येक अन्य राज्य की राजधानी में प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधित्व पर आधारित है। -- मैर्ललन (Meclellan) तथा अन्य
- राष्ट्रों के मध्य, सन्धि वार्ता संचालन की कला और आचार जैसे- सन्धियों की व्यवस्था, अन्तर्राष्ट्रीय समागम के संचालन का कार्य या कला अथवा ऐसे समागम में कौशल या पटुता का प्रयोग। -- वेब्सटर्स न्यू इंग्लिश डिक्शनरी
- सन्धि वार्ता द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की व्यवस्था राजनय है। यह वह प्रणाली है जिसके द्वारा राजदूत एवं दूत इन सम्बन्धों की व्यवस्था और प्रबन्ध करते हैं । यह राजनयिक कार्य अथवा कला-कौशल है। -- ऑक्सफार्ड इंग्लिश डिक्शनरी
- लोकप्रिय अर्थ में राजनय किसी सन्धि वार्ता या लेन-देन में चातुर्य, धोखेबाजी एवं कुशलता का प्रयोग है। अपने विशेष अर्थ में यह सन्धि-वार्ता की वह कला है जो युद्ध की सम्भावनापूर्ण राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति कर सके। -- क्विन्सी राइट (Quincy Wright)
- राजनय शब्द का काफी दुरुपयोग हुआ है। असल में राजनय एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें अनेक क्रियायें शामिल हो जाती हैं। यह दुनिया के ऐसे कुछ व्यवसायों में से एक है जिसकी परिधि में मानवीय क्रिया की प्रत्येक शाखा शामिल हो जाती है। इसका सम्बन्ध शक्ति राजनीति (Power Politics) आर्थिक शक्ति एवं विचारधाराओं के संघर्ष से है। राजनय को 'समझौता वार्ता की कला' है। -- राबर्टो रेगेला (Robert Regala)
- राजनय अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का परिचालन अथवा संचालन है। -- 1796 में एडमण्ड बर्क
- तकनीकी अर्थ में राजनय की व्यवस्था सरकारों के बीच सम्पर्क के रूप में की जा सकती है। -- ने जार्ज एफ० केनन
उक्तियाँ
सम्पादन- कुलीनः कुलसम्पन्नो वाग्मी दक्षः प्रियंवचः।
- यथोक्तवादी स्मृतिवान् दूतः स्यात् सप्तभिर्गुणैः ॥ -- महाभारत
- कुलीनता, कुलसम्पन्नता, वाक्चातुर्य, दक्षता, प्रियवादिता, उचित संदेशवहन और स्मृतिशक्ति – ये दूत के सात गुण हैं।
- नूनं व्याकरणं क्रित्स्नं अनेन बहुधा श्रुतम्।
- बहु व्याहरतानेन न किंचिदपभाषितम् ॥
- अविस्तरं असन्दिग्धं अविलम्बितं अद्रुतम्।
- उरस्थं कन्ठगं वाक्यं वर्तते मध्यमे स्वरे ॥
- उच्चारयति कल्याणीं वाचं हृदयदारिणीम्।
- कस्य नाराध्यते चित्त्तमुद्यतासेररेरपि ॥
- एवं विधो यस्य दूतो न भवेत् पार्थिवस्य तु।
- सिध्यन्ति ही कथं तस्य कार्याणां गतयोनघ ॥ -- हनुमान का परिचय क्राते हुए राम लक्ष्मण से, रामायण में
- अवश्य ही इन्होने सम्पूर्ण व्याकरण सुन लिया लिया है क्योंकि बहुत कुछ बोलने के बाद भी इनके भाषण में कोई त्रुटि नहीं मिली। यह बहुत अधिक विस्तार से नहीं बोलते; असंदिग्ध बोलते हैं; न धीमी गति से बोलते हैं और न तेज गति से। इनके हृदय से निकलकर कंठ तक आने वाला वाक्य मध्यम स्वर में होता है। ये कल्याणमयी वाणी बोलते हैं जो दुःखी मन वाले और तलवार ताने हुए शत्रु के हृदय को छू जाती है। यदि ऐसा व्यक्ति किसी का दूत न हो तो उसके कार्य कैसे सिद्ध होंगे?
- राजा को राजदूत नियुक्त कर देना चाहिये, सेना को सेनापति पर आश्रित रहना चाहिये, प्रजा पर नियंत्राण सेना पर निर्भर करता है, राज्य की सरकार राजा पर, शांति और युद्ध राजदूत पर। -- मनु
- योग्य व चतुर राजदूत मित्र राज्यों में मतभेद तथा शत्रु राज्यों के बीच मित्रता स्थापित करने में सफल होता है। -- मनु
- दूत के तीन प्रमुख कार्य हैं- दूसरे राजा के साथ युद्ध अथवा शांति की घोषणा करना, संधियां करना और विदेशों में रहकर कार्य करना। -- मनु
- राजा को आवश्यकता तथा परिस्थिति अनुसार अपने पड़ोसी राज्यों के साथ मित्रता, शत्रुता, आक्रमण, उपेक्षा, संरक्षण अथवा फूट डालने का प्रयत्न करना चाहिये। -- याज्ञवल्क्य स्मृति
- दूतों के माध्यम से राज्य को अपने शत्रु और मित्र दोनों ही पक्षों के अभिलाषित विषय का ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिये। -- महाभारत
- मैं तुम्हारी बात को कौरवों के दरबार में अच्छी प्रकार से रखूंगा और प्राणप्रण से यह चेष्टा करूंगा कि वे तुम्हारी मांग को स्वीकार कर लें। यदि मेरे सारे प्रयत्न असफल हो जायेंगे और युद्ध अवश्यम्भावी होगा, तो हम संसार को दिखायेंगे कि कैसे हम उचित नीति का पालन कर रहे हैं और वे अनुचित नीति का, जिससे विश्व हम दोनों के साथ अन्याय नही कर सके। -- कृष्ण, महाभारत में
- सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
- ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि॥ -- रामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड
- (श्री रामजी फिर बोले-) जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आए हुए का त्याग कर देते हैं, वे पामर (क्षुद्र) हैं, पापमय हैं, उन्हें देखने में भी हानि है (पाप लगता है)।
- कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ।
- सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥
- जिसे करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या लगी हो, शरण में आने पर मैं उसे भी नहीं त्यागता। जीव ज्यों ही मेरे सम्मुख होता है, त्यों ही उसके करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
- काने से कनवा कहो, तुरतईं जावै रूठ।
- हीरै-हीरै पूछ लो, कैसे गई वा फूट।।
- किसी काने को काना कहोगे तो वह तुरंत रूठ जायेगा। लेकिन उसे काना न कहते हुए उससे धीरे धीरे पूछोगे कि ये आंख कैसे फूट गयी तो वह बुरा नहीं मानेगा (अब भी आप उसे काना ही कह रहे हैं, लेनिन परोक्ष रूप से)
- सर्वाधिक घृणित बात को अतिसुन्दर ढंग से कहना और करना ही कूटनीति है। -- आइजाक
- अशान्त जल में शन्तिरुपी मछली को खोजने की कला का नाम कूटनीति हैं। -- जे. सी. हेरोल्ड
- कूटनीतिज्ञ : जो किसी घिसे-पिटे वाक्य और किसी गफलत के बीच हमेशा झूलता रहे और जनता को झुलाता रहे। -- हेराल्ड मैकमिलन
- मुट्ठियां बाँध कर किसी से हाथ मिलाने की कला को कूटनीति कहते हैं। -- अज्ञात
- कूटनीति मानवीय गुणों के विरूद्ध एक ऐसा दुर्गुण है जिसने दुनिया के बहुत बड़े भाग को गुलामी के जंजीरों में जकड़ रखा है और जो मानवता के विकास में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। -- रोमां रोलां
- कूटनीतिज्ञ वह व्यक्ति है जो आपसे नर्क में जाने के लिए इस प्रकार कह सके कि आप सचमुच उसके संकेत के अनुसार तैयार होने लगें। -- कैसकी सिटनेट
- केवल वीरता से नहीं, नीतियुक्त वीरता से जय होती है। -- अज्ञात
- जैसे पानी को कभी सुखाया नहीं जा सकता हैं, ठीक उसी प्रकार किसी कूटनीतिज्ञ को कभी ईमानदार नहीं कहा जा सकता। -- जोसेफ स्टालिन
- जिसे कूटनीति का अच्छा ज्ञान होता हैं, वही राजनीति में सफल होता है। -- अज्ञात