• विप्रतिपत्तौ साक्षिनिमित्ता सत्यव्यवस्था ॥-- गौतमधर्मसूत्र, अध्याय-४, सूत्र-१[]
जटिल विवाद होने पर साक्षियों की सहायता से सत्य का निर्णय करे।
  • बहवः स्युरनिन्दिताः स्वकर्मषु प्रात्ययिका राज्ञां निष्प्रीत्यनाभितापाश्चान्यतरस्मिन् -- गौतमधर्मसूत्र, अध्याय-४, सूत्र-२
अपने कर्म में प्रतिष्ठित, राजाओं के विश्वासपात्र, पक्षपात या द्वेष न रखने वाले, अनेक साक्षी होने चाहिये।
  • शपथेनैके सत्यकर्म -- गौतमधर्मसूत्र, अध्याय-४, सूत्र-१२
साक्षियों को शपथ दिलाकर उनसे सत्यभाषण कराया जाय।
  • तद्देवराजब्राह्मणसंसदि स्यादब्राह्मणानाम् -- गौतमधर्मसूत्र, अध्याय-४, सूत्र-१३
ब्राह्मणेतर वर्णों को (उग्र) देवताओं के निकट, राजा के समक्ष, या ब्राह्मणों की सभा में शपथ दिलायी जाय।
  • क्षुद्रपश्वनृते साक्षी दश हन्ति। -- गौतमधर्मसूत्र, अध्याय-४, सूत्र-१४
(भेड़, बकरी आदि) छोटे पशुओं के सम्बन्ध में असत्य भाषण करने पर साक्षी को दश पशुओं के वध के बराबर पाप लगता है।
  • गोऽश्वपुरुष्भूमिषु दशगुणोत्तरान् -- गौतमधर्मसूत्र, अध्याय-४, सूत्र-१५
गाय, अश्व, मनुष्य और भूमि के विषय में असत्य भाषण करने पर साक्षी क्रमशः दश गुने उन-उन प्राणियों के वध का पापी होता है।
  • मिथ्यावचने याप्यो दण्ड्यश्च साक्षी॥ -- गौतमधर्मसूत्र, अध्याय-४, सूत्र-२३
साक्षी का असत्य भाषण प्रकट होने पर उसे निर्वासित करना चाहिये और राजा द्वारा उसे दण्ड दिया जाना चाहिये।
  • राजा प्राङ्विवाको ब्राह्मणो वा शास्त्रवित्॥ -- गौतमधर्मसूत्र, अध्याय-४, सूत्र-२६
राजा स्वयं ही न्यायकर्ता (पूछने के बाद विचारकर न्याय करने वाला) बने या किसी शास्त्रज्ञ ब्राह्मण को न्यायकर्ता बनाये।
  • किसी क्रिया के विरुद्ध साक्ष्य का अभाव, उस क्रिया के पक्ष में साक्ष्य नहीं बन जाता। -- John Langan, Technicolor (2009), reprinted in Rich Horton (ed.) The Year’s Best Science Fiction & Fantasy 2010, p. 233
  • किसी असाधारण दावे के समर्थन में दिये गये साक्ष्य का भार उतना ही अधिक होना चाहिये जितना वह दावा विचित्र हो। -- पियरे साइमन लाप्लास, Théorie analytique des probabilités, (1812)
  • मानव स्वभाव हर मामले में साक्ष्य का एक अंश होता है। -- Elisha Potter, Greene v. Harris, 11 R.I. 5, 17 (1875).
  • साक्ष्य की अनुपस्थिति, अनुपस्थिति का साक्ष्य नहीं है। और अनुपस्थिति का साक्ष्य, साक्ष्य की अनुपस्थिति नहीं है। -- Donald Rumsfeld, Department of Defense news briefing, February 12, 2002 [1]
  • चाहे मामला आपराधिक हो या सिविल, साक्ष्य के बिन्दु में कोई अन्तर नहीं है। दोनों मामलों पर एक ही नियम लागू होता है। --Beaumont Hotham, 2nd Baron Hotham, B., King v. Cator (1802), 14 Esp. 143.

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. गौतमधर्मसूत्राणि (हिन्दी व्याख्याकार - उमेशचन्द्र पाण्डेय)