• निन्दन्तु नीतिनिपुणाः यदि वा स्तुवन्तु ।
लक्ष्मी समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् ॥
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा ।
न्यायात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ॥ ( भर्तृहरि )
अर्थ : नीति को जानने वाले लोग चाहें निन्दा करें या प्रशंसा, धन आए या जाए, मृत्यु अभी आ जाए या चिरकाल के बाद आए, परन्तु धैर्यवान् लोग न्याय के मार्ग से विचलित नहीं होते ।
  • यांति न्यायप्रवॄत्तस्य तिर्यंचोऽपि सहायतां ।
अपन्थानं तु गच्छन्तं सोदरोपि विमुञ्चति॥ -- अनर्घराघव - न्यायप्रवृत्ति
न्याय करने के लिये प्रवृत्त व्यक्ति की सहायता पशु भी करने लगते हैं जबकि गलत रास्ते (अपन्थ) पर चलने वाले का साथ उसके सगे भाई भी छोड़ देते हैं।
नीरक्षीरविवेके हंस आलस्यं त्वं एव तनुषे चेत।
विश्वस्मिन अधुना अन्यः कुलव्रतम पालयिष्यति कः॥
ऐ हंस, यदि तुम दूध और पानी को भिन्न करना छोड़ दोगे तो तुम्हारे कुलव्रत का पालन इस विश्व मे कौन करेगा? ( भावार्थ यह है कि यदि बुद्धिमान व्यक्ति ही इस संसार मे अपना कर्त्तव्य त्याग देंगे तो निष्पक्ष व्यवहार कौन करेगा)
  • न्याय करना उतना कठिन नहीं है, जितना अन्याय का शमन करना। -- प्रेमचन्द
  • न्याय में देर करना न्याय को अस्वीकार करना है। -- ग्लेडस्टोन
  • ईश्वरीय न्याय की चक्की यद्यपि मन्द गति से चलती है, किन्तु चलती अवश्य है। -- जार्ज हर्बर्ट
  • न्याय वह है जो कि दूध का दूध, पानी का पानी कर दे, यह नहीं कि खुद ही कागजों के धोखे में आ जाए, खुद ही पाखंडियों के जाल में फँस जाए। – प्रेमचंद
  • न्याय और नीति सब लक्ष्मी के दो खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती है नचाती है। -- प्रेमचंद
  • न्याय वह है जो कि दूध, पानी का पानी कर दे, यह नहीं कि खुद ही कागजों के धोखो में आ जाए, खुद ही पाखंडियों के जाल में फँस जाए। -- प्रेमचंद
  • सच्चाई का कार्य में बदल जाना न्याय है। -- डिजरायली
  • कोई भी अच्छा निर्णय जानकारियो पर निर्भर करता है, आंकड़ों या संख्याओ पर नहीं। -- प्लेटो
  • पिता की सेवा अथवा उनकी आज्ञा का पालन करने से बढ़कर और कोई धर्माचरण नहीं है।-- वाल्मीकि
  • हम प्यार का दरिया बहा सकते हैं पर न्याय के नाम पर नानी मर जाती है। -- रस्किन

इन्हें भी देखें

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