भारतीय कला

एक आधुनिक कला ।

भारतीय कला के अन्तर्गत अनेक प्रकार की कलाएँ आतीं हैं, जैसे मिट्टी के वर्तन सम्बन्धी कला, मूर्तिकला, दृष्यकलाएँ (जैसे चित्रकला), और वस्त्रों से सम्बन्धित कलाएँ (जैसे बुना हुए रेश्नी वस्त्रों की कला आदि)।

उक्तियाँ सम्पादन

  • भारतीय कला से जुड़े कलाकार के पास वस्तुओं की आत्मा के साथ संवाद की शक्ति होनी चाहिये, उसमें भौतिक सौन्दर्य की भावना से से पहले आध्यात्मिक सौन्दर्य की भावना होनी चाहिये, और उसके भीतर गहरी दृष्टि के प्रति निष्ठा होनी चाहिये... -- श्री अरविन्द घोष, ए घोष, एस नाहर, और Institut de recherches évolutives. (2000). India's rebirth: A selection from Sri Aurobindo's writing, talks and speeches. Paris: Institut de recherches évolutives.
  • हम भारतीय कला के साथ कभी न्याय नहीं कर पाएंगे क्योंकि अज्ञानता और कट्टरता ने इसकी महानतम उपलब्धियों को नष्ट कर दिया है, और जो शेष बची रहीं उनको भी आधा नष्ट कर दिया है। पुर्तगालियों ने अपनी पोंगापन्थिता को प्रमाणित करते हुए एलिफेंटा में मूर्तियों और बेस-रिलीफ को असीम बर्बरता से तोड़ा-मरोड़ा। मुसलमानों ने [भारत के] उत्तरी भागों में लगभग हर जगह पांचवीं और छठी शताब्दी की श्रेष्ठ भारतीय वास्तुकला को नष्ट कर दिया जो बाद में निर्मित उन वास्तुकलाओं से कहीं बेहतर थीं जिन पर आज आश्चर्य किया जाता है और जिनकी आज प्रशंसा की जाती है। मुसलमानों ने मूर्तियों को काट दिया, मूर्तियों के अंग-प्रत्यंग तोड़ दिये और उन्हें अपनी मस्जिदों को बनाने में खपा दिया। मुसलमानों ने बड़े पैमाने पर जैन मंदिरों के सुन्दर स्तम्भों की नकल की। इस विध्वंस में काल और कट्टरता एक हो गये थे क्योंकि जो मन्दिर विदेशी (विधर्मी) लोगों के स्पर्श से अपवित्र हो गए थे उन्हें हिंदुओं ने अपने रूढ़िवाद के चलते त्याग दिया और उनको भूल गये। -- विल डुरंट, हमारी पूर्वी विरासत (Our Oriental heritage) में
  • चीन से होकर भारत के शास्त्रीय नृत्य और संगीत जापान गये। वहाँ उनका जापानीकरण होकर गंभीर और रंगीन बुगाकू सामने आया। -- (SACHS:1943:105). SACHS 1943: The Rise of Music in the Ancient World, East and West. Sachs, Curt. W.W.Norton & Company, New York, 1943 ; [१] और [२] में उद्धृत
  • मुझे यह कहते हुए दुःख हो रहा है कि भारत के लोगों को अपने लोककलाओं और लोककलाकरों के बारे में बहुत कम पता है.... वे इस माध्यम (टीवी) के द्वारा अपनी मौलिकता को नष्ट किये जा रहे हैं और विदेशी संस्कृति को फैला रहे हैं, जो खतरनाक है.... बुद्धिजीवियों को यह समझना चाहिये कि उनकी स्वयं की संस्कृति का ठीक वैसे ही क्षरण हो रहा है जैसे समुद्र में डेल्टा का। -- डॉ जेम्स ओ'बार्नहिल, ब्राउन विश्वविद्यालय, यूएसए के थिएटर कलाओं के सेवानिवृत्त प्रोफेसर; 'ऑर्गनाइजर' पत्रिका को दिनांक 5/3/1989 को एक सक्षात्कार में।
( सन्दर्भ - कुछ वर्ष पहले जब वे गुजरात गए थे, तो उनकी मुलाकात एक 'भवई' लोक नाटक कलाकार से हुई थी। उस समय वह कलाकार 200 नाटकों को जानता था लेकिन, इस बार, सबसे पुराने भवई कलाकार को केवल 65 नाटक ज्ञात थे। दो पीढ़ियों के बीच, 135 भवई खो गए थे! किसी ने उन्हें रिकॉर्ड करने का कष्ट नहीं किया। वे भवई नाटक हमेशा के लिए खो गए।)

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