पशुधन
गाय
सम्पादनगाय को हिन्दू लोग 'गो-माता' कहते हैं।
उक्तियाँ
सम्पादन- गावो विश्वस्य मातरः -- वेद
- गाय विश्व की माता है।
- गावः स्वर्गस्य सोपानं गावः स्वर्गेऽपि पूजिताः
- गावः कामदुहो देव्यो नान्यत् किञ्चित् परं स्मृतम्॥ -- महाभारत, अनुशासन पर्व (5133)
- गौएं स्वर्ग की सीढ़ी हैं, गौएं स्वर्ग में भी पूजनीय हैं। गौएँ समस्त मनोवांछित वस्तुओं को देनेवाली हैं। अतः गौओं से बढ़कर और कोई श्रेष्ठ वस्तु नहीं है।
- गावो बन्धुर्मनुष्याणां मनुष्या बान्धवा गवाम्।
- गौश्च यस्मिन् गृहे नास्ति तद् बन्धुरहितं गृहम्॥ -- पद्मपुराण
- गाय मनुष्यों की बन्धु है, और मनुष्य गायों के बन्धु। जिस घर में गाय नहीं है, उस घर का कोई बन्धु नहीं।
- सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दन: ।
- पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ॥
- सभी उपनिषद गाय (के तुल्य) हैं, श्रीकृष्ण उन गायों का दूध निकालने वाले हैं, अर्जुन बछड़े (के समान) हैं, और इन सबके परिणामस्वरूप निकलने वाला दूध गीता रूपी अमृत है।
- जो एक गाय न्यून से न्यून दो सेर दूध देती हो और दूसरी बीस सेर, तो (औसत से) प्रत्येक गाय के ग्यारह सेर दूध होने में कोई शंका नहीं। इस हिसाब से एक मास में सवा आठ मन दूध होता है। एक गाय कम से कम ६ महीने और दूसरी अधिक से अधिक १८ महीने तक दूध देती है तो दोनों का मध्य भाग प्रत्येक गाय के दूध देने में १२ महीने होते हैं। इस हिसाब से १२ महीनों का दूध ९९ मन होता है।
- इतने दूध को औटाकर प्रति सेर में छटांक चावल और डेढ़ छटांक चीनी डाल कर खीर बना खावे, तो प्रत्येक पुरुष के लिए दो सेर दूध की खीर पुष्कल होती है, क्योंकि यह भी एक मध्यमान की गिनती है, अर्थात् कोई दो सेर दूध की खीर से अधिक खाएगा और कोई न्यून। इस हिसाब से एक प्रसूता गाय के दूध से एक हजार नौ सौ अस्सी मनुष्य एक बार तृप्त होते हैं। गाय न्यून से न्यून ८ और अधिक से अधिक १८ बार ब्याहती है, इसका मध्यभाग १३ आया। तो पच्चीस हजार सात सौ चालीस मनुष्य एक गाय के जन्मभर के दूध मात्र से एक बार तृप्त हो सकते हैं।
- इस गाय की एक पीढ़ी में छ: बछिया और सात बछड़े हुए। इनमें से एक की मृत्यु रोगादि से होना सम्भव है, तो भी बारह रहे। उन छ: बछियाओं के दूध मात्र से उक्त प्रकार एक लाख चौवन हजार चार सौ चालीस मनुष्यों का पालन हो सकता है। अब रहे छ: बैल। उनमें एक जोड़ी से दोनों साख में दो सौ मन अन्न उत्पन्न हो सकता है। इस प्रकार तीन जोड़ी ६०० मन अन्न उत्पन्न कर सकती हैं। और उनके कार्य का मध्यभाग आठ वर्ष है। इस हिसाब से चार हजार आठ सौ मन अन्न उत्पन्न करने की शक्ति एक जन्म में तीनों जोड़ी की है।
- ४८०० मन अन्न से प्रत्येक मनुष्य का तीन पाव अन्न भोजन में गिने, तो दो लाख छप्पन हजार मनुष्यों का एक बार भोजन होता है। दूध और अन्न को मिला कर देखने से निश्चय है कि चार लाख दस हजार चार सौ चालीस मनुष्यों का पालन एक बार के भोजन से होता है। अब छः गाय की पीढ़ी पर-पीढ़ियों के हिसाब लगा कर देखा जावे तो असंख्य मनुष्यों का पालन हो सकता है। और इसके मांस से अनुमान है कि केवल ८० मांसाहारी मनुष्य एक बार तृप्त हो सकते हैं। देखो, तुच्छ लाभ के लिए लाखों प्राणियों को मार असंख्य मनुष्यों की हानि करना महापाप क्यों नहीं?-- स्वामी दयानन्द सरस्वती (गोकरुणानिधि में)
- गौ आदि पशुओं के नाश होने से राजा और प्रजा का ही नाश होता है क्योंकि जब पशु न्यून होते हैं, तब दूध आदि पदार्थ और खेती आदि कार्यों की घटती होती है। देखो, इसी से जितने मूल्य से जितना दूध और घी आदि पदार्थ तथा बैल आदि पशु सात सौ वर्ष पूर्व मिलते थे, उतना घी दूध और बैल आदि पशु इस समय दशगुणे मूल्य से भी नहीं मिल सकते।
- हे मांसाहारियों! तुम लोगों को जब कुछ काल पश्चात् पशु न मिलेंगे तब मनुष्यों का मांस भी छोड़ोगे या नहीं? हे परमेश्वर तू क्यों इन पशुओं पर जो कि बिना अपराध मारे जाते हैं, दया नहीं करता? क्या उन पर तेरी प्रीति नहीं है? क्या इसके लिए तेरी न्यायसभा बन्द हो गई है? -- स्वामी दयानन्द सरस्वती (गोकरुणानिधि में)
- धेनुः परा दया पूर्वा यस्यानन्दाद् विराजते।
- आख्यायां निर्मितस्तेन ग्रन्थो गोकरुणानिधिः॥ -- महर्षि दयानन्द सरस्वती, गोकरुणानिधि के अन्त में
- अर्थात् जिसके नाम में आनन्द शब्द के बाद 'धेनु' विराजमान है और आनन्द शब्द से पूर्व 'दया' है, उस 'दयानन्द सरस्वती' ने यह गोकरुणानिधि नामक ग्रन्थ निर्मित किया है। सरस्वती के अनेक अर्थों में एक अर्थ धेनु (गाय) भी होता है, इस दृष्टि से आनन्द शब्द के बाद धेनु का होना लिखा है। इससे यह सूचित होता है कि मेरे नाम का ही यह अर्थ है कि 'धेनुओं पर करुणा करके आनन्द मानने वाला' अतः मेरा 'गोकरुणानिधि' ग्रन्थ लिखना स्वाभाविक ही है।
- गौवंश की रक्षा मे देश की रक्षा समाई हुई है। -- मदन मोहन मालवीय
- गौवंश की रक्षा ईश्वर की सारी मूक सृष्टि की रक्षा करना है,भारत की सुख समृधि गौ के साथ जुडी है। -- महात्मा गाँधी
- समस्त गौ वंश की हत्या कानूनन बंद होनी चाहिए। अब भारत आजाद है। -- करपात्री जी महाराज
- गौ का समस्त जीवन देश हितार्थ समर्पित है,अतः भारत मे गौ वध नहीं होना चाहिए। -- माता आनंदमयी जी माँ
- यही आस पूरण करो तुम हमारी, मिटे कष्ट गौअन, छूटे खेद भारी।। -- गुरु गोविन्द सिंह
- भारत मे गौवंश के प्रति करोड़ों लोगो की आस्था है, उनकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। -- लाल बहादुर शास्त्री
- सम्पूर्ण गौवंश परम उपकारी है। सबका कर्तव्य है तन, मन, धन लगाकर गौ हत्या पूर्ण रूप से बन्द करावे। -- सेठ जुगल किशोर बिडला
- जब तक भारत की भूमि पर गौ रक्त गिरेगा तब तक देश सुख-शांति ,धन-धान्य, से वंचित रहेगा। -- हनुमान प्रसाद पोद्दार
- सम्पूर्ण गौ वंश हत्या बंद कर के राष्ट्र की उन्नति के लिए गौ को राष्ट्र पशु घोषित कर भारत सरकार यशजीवी बने। -- गौ रक्षा हेतु ७३ दिन तक अन्न-जल त्याग देने वाले पूरी के शंकराचार्य स्वामी निरंजन देव तीर्थ जीमहाराज
- भुक्त्वा तृणानि शुष्कानि पीत्वा तोयं जलाशयात् ।
- दुग्धं ददति लोकेभ्यो गावो विश्वस्य मातरः॥
- मातरः सर्वभूतानां गावः सर्वसुख: -- महाभारत अनुशासन पर्व, 69.7
- गौएँ सभी प्राणियों की माता कहलाती हैं। वे सभी को सुख देने वाली हैं।
- गौमाता की सेवा भगवत्प्राप्ति के साधनों में से एक है। गौदुग्ध का सेवन करना भी गौ-सेवा है। जब गाय का दूध हमारा आवश्यक आहार हो जायेगा, तब उसकी आपूर्ति के लिए गौ-पालन तथा गौ-संरक्षण की आवश्यकता होगी। -- “गवोपनिषद्” में से दैनिक जप के संस्कृत मन्त्र (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट)
- घृतक्षीरप्रदा गावो घृतयोन्यो घृतोद्भवाः।
- घृतनद्यो घृतावर्तास्ता मे सन्तु सदा गृहे॥
- घृतं मे हृदये नित्यं घृतं नाभ्यां प्रतिष्ठितम्।
- घृतं सर्वेषु गात्रेषु घृतं मे मनसि स्थितम्॥
- गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च।
- गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाम्यहम्॥ -- गौमाता की दैनिक प्रार्थना का मन्त्र (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट)
- घी और दूध देने वाली, घी की उत्पत्ति का स्थान, घी को प्रकट करने वाली, घी की नदी तथा घी की भंवर रूप गौएं मेरे घर में सदा निवास करें। गौ का घी मेरे हृदय में सदा स्थित रहे। घी मेरी नाभि में प्रतिष्ठित हो। घी मेरे सम्पूर्ण अंगों में व्याप्त रहे और घी मेरे मन में स्थित हो। गौएं मेरे आगे रहें। गौएं मेरे पीछे भी रहें। गौएं मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में निवास करूं।
- सुरूपा बहुरूपाश्च विश्वरूपाश्च मातरः।
- गावो मामुपतिष्ठन्तामिति नित्यं प्रकीर्तयेत्॥ -- गोमाता को परमात्मा का साक्षात् विग्रह जान कर उनको प्रणाम करने का मन्त्र (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट)
- प्रतिदिन यह प्रार्थना करनी चाहिये कि सुन्दर एवं अनेक प्रकार के रूप-रंग वाली विश्वरूपिणी गोमाताएं सदा मेरे निकट आयें।
- यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजङ्गमम्।
- तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम्॥
- जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूं।
- गोपालन हवे, गोपूजन नव्हे... -- वीर सावरकर
- गाय की देखभाल कीजिए, उसकी पूजा नहीं...
बैल
सम्पादन- चिरजीवौ जोरी जुरे, क्यों न सनेह गंभीर।
- को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के वीर॥ -- बिहारी
- अर्थात: यह जोड़ी चिरजीवी हो। इनमें क्यों न गहरा प्रेम हो, एक वृषभानु की पुत्री हैं, दूसरे हैं बलराम के भाई।
- दूसरा अर्थ : यह जोड़ी चिरजीवी हो। इनमें क्यों न गहरा प्रेम हो एक वृषभ (बैल) की अनुजा (बहन) हैं (अर्थात गाय) और दूसरे हलधर (बैल) के भाई (बैल) हैं।
- यहाँ श्लेष अलंकार है।