गुरु गोविन्द सिंह

सिख पंथ के दसवें गुरु व खालसा पंथ के संस्थापक(1666-1708)

गुरु गोविन्द सिंह (22 दिसम्बर 1666 – 7 अक्टूबर 1708) सिखों के दशम गुरु थे। आपने मुगलों के अत्याचार से धर्म की रक्षा के लिये खालसा पन्थ की स्थापना की। गुरुजी को 'सन्त सिपाही' भी कहा जाता है।

घोड़े पर सवार गुरु गोविन्द सिंह

विचार सम्पादन

  • हम इह काज जगत मो आए।
धरम हेतु गुरुदेव पठाए॥
जहां-जहां तुम धरम बिथारो।
दुसट दोखियनि पकरि पछारो॥
याही काज धरा हम जनमे।
समझ लेहु साधू सब मनमे॥
धरम चलावन संत उबारन।
दुसट सभन को मूल उपारन॥ -- गुरु गोविन्द सिंह, 'विचितर नाटक' में
  • देह शिवा बरु मोहि इहै सुभ करमन ते कबहूं न टरों।
न डरों अरि सो जब जाइ लरों निसचै करि अपुनी जीत करों ॥
अरु सिख हों आपने ही मन कौ इह लालच हउ गुन तउ उचरों।
जब आव की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझ मरों ॥ -- गुरु गोविन्द सिंह, दसम ग्रंथ के 'चंडी चरित्र' में
अर्थ : हे शिवा (शिव की शक्ति) मुझे यह वर दें कि मैं शुभ कर्मों को करने से कभी भी पीछे न हटूँ।
जब मैं युद्ध करने जाऊँ तो शत्रु से न डरूँ और युद्ध में अपनी जीत पक्की करूँ।
और मैं अपने मन को यह सिखा सकूं कि वह इस बात का लालच करे कि आपके गुणों का बखान करता रहूँ।
जब अन्तिम समय आये तब मैं रणक्षेत्र में युद्ध करते हुए मरूँ।
  • भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन।
अर्थ : मैं किसी को डराता नहीं हूँ और दूसरों से डरता नहीं हूँ।
  • सवा लाख से एक लड़ाऊं
चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊं
तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊं ॥
  • जब-जब होत अरिस्ट अपारा, तब-तब देह धरत अवतारा।
(अर्थात जब-जब धर्म का ह्रास होकर अत्याचार, अन्याय, हिंसा और आतंक के कारण मानवता खतरे में होती है तब-तब भगवान दुष्टों का नाश और धर्म की रक्षा करने के लिए इस भूतल पर अवतरित होते हैं।)
  • चूंकार अज हमा हीलते दर गुजशत, हलाले अस्त बुरदन ब समशीर ऐ दस्त। -- औरंगजेब को लिखे गए अपने 'अजफरनामा' में
( अर्थात जब सत्य और न्याय की रक्षा के लिए अन्य सभी साधन विफल हो जाएं तो तलवार को धारण करना सर्वथा उचित है। )
  • जब बाकी सभी तरीके विफल हो जाएं, तो हाथ में तलवार उठाना सही है।
  • ईश्वर ने हमें जन्म दिया है ताकि हम संसार में अच्छे काम करें और बुराई को दूर करें।
  • अगर आप केवल भविष्य के बारे में सोचते रहेंगे तो वर्तमान भी खो देंगे।
  • चिड़िया ते में बाज़ लड़ावा, गिद्रं तो में शेर बनाउन, सवा लाख से एक लड़ावा, तबे गोबिंद सिंह नाम कहउँ।
  • जब कोई व्यक्ति अपने भीतर से स्वार्थ उन्मूलन करता है तो वह अपने अंदर सबसे बड़ा आराम और स्थायी शांति कि अनुभूति करता है।
  • जब आप अपने अंदर से अहंकार मिटा देंगे तभी आपको वास्तविक शांति प्राप्त होगी।
  • मैं उन लोगों को पसंद करता हूँ जो सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं।
  • मुझे उसका सेवक मानो। और इसमें कोई संदेह मत रखो।
  • असहायों पर अपनी तलवार चलाने के लिए उतावले मत हो, अन्यथा विधाता तुम्हारा खून बहायेगा।
  • उसने हेमशा अपने अनुयायियों को आराम दिया है और हर समय उनकी मदद की है।
  • हे ईश्वर मुझे आशीर्वाद दें कि मैं कभी अच्छे कर्म करने में संकोच ना करूँ।
  • ये मित्र संगठित हैं, और फिर से अलग नहीं होंगे, उन्हें स्वस्वंय सृजनकर्ता भगवान् ने एक किया है
  • इंसान से प्रेम ही ईश्वर की सच्ची भक्ति है।
  • अच्छे कर्मों से ही आप ईश्वर को पा सकते हैं। अच्छे कर्म करने वालों की ही ईश्वर मदद करता है।
  • जो कोई भी मुझे भगवान कहे, वो नरक में चला जाए।
  • सबसे महान सुख और स्थायी शांति तब प्राप्त होती है जब कोई अपने भीतर से स्वार्थ को समाप्त कर देता है।
  • दिन-रात, हमेशा ईश्वर का ध्यान करो।
  • आपने ब्रह्माण्ड की रचना की, आप ही सुख-दुःख के दाता हैं।
  • आप स्वयं ही स्वयं हैं, अपने स्वयं ही सृष्टि का सृजन किया है।
  • सत्कर्म कर्म के द्वारा, तुम्हे सच्चा गुरु मिलेगा, और उसके बाद प्रिय भगवान मिलेंगे, उनकी मधुर इच्छा से, तुम्हे उनकी दया का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
  • सच्चे गुरु की सेवा करते हए स्थायी शांति प्राप्त होगी, जन्म और मृत्यु के कष्ट मिट जायेंगे।
  • अज्ञानी व्यक्ति पूरी तरह से अंधा है, वह मूल्यवान चीजों की कद्र नहीं करता है।
  • ईश्वर स्वयं क्षमा करता है।
  • बिना गुरु के किसी को भगवान का नाम नहीं मिला है।
  • हर कोई उस सच्चे गुरु की जयजयकार और प्रशंसा करे जो हमें भगवान की भक्ति के खजाने तक ले गया है।
  • भगवान के नाम के अलावा कोई मित्र नहीं है, भगवान के विनम्र सेवक इसी का चिंतन करते और इसी को देखते हैं।
  • बिना नाम के कोई शांति नहीं है।
  • मृत्यु के शहर में, उन्हें बाँध कर पीटा जाता है, और कोई उनकी प्रार्थना नहीं सुनता है।
  • जो लोग भगवान के नाम पर ध्यान करते हैं, वे सभी शांति और सुख प्राप्त करते हैं।
  • मेरी बात सुनो जो लोग दुसरे से प्रेम करते है वही लोग प्रभु को महसूस कर सकते है
  • अज्ञानी व्यक्ति पूरी तरह से अँधा होता है वह गहना के मूल्य की सराहना नही करता है बल्कि उसके चकाचौंध की तारीफ करता है।
  • मैं लोगो को के पैरो में गिरता हु जो लोग सच्चाई पर विश्वास रखते है।
  • सचमुच वे गुरु धन्य है जिन्होंने भगवान के नाम को याद करना सिखाया।
  • स्वार्थ ही बुरे कर्मो के जन्म का कारण बनता है।
  • जो लोग हर हाल में ईश्वर का नाम स्मरण करते है वे ही लोग सुख और शांति प्राप्त करते है
  • जो ईश्वर में विश्वास रखता है उनके संरक्षण में, जरूरत में, जीवन के हर पथ पर ईश्वर उनका साथ देते है।
  • वह व्यक्ति हमेसा खुद अकेला पाता है जो लोगो के लिए जुबान पर कुछ और दिल में कुछ और ही रखता है।
  • जो लोग सच्चाई के मार्ग का अनुसरण करते है और लोगो के प्रति दया का भाव रखते है ऐसे लोगो के प्रति ही लोग करुणा और प्रेम का भाव रखते है।
  • परमपिता परमेश्वर के नाम के अलावा कोई भी आपका मित्र नही है ईश्वर के सेवक इसी का चिंतन करते है और ईश्वर को ही देखते है।
  • यदि तुम असहाय और कमजोरो पर तलवार उठाते हो तो एक दिन ईश्वर भी आपके ऊपर अपना तलवार चलायेंगा।
  • जब आप अपने अन्दर बैठे अहंकार को मिटा देंगे तभी आपको वास्तविक शांति की प्राप्त होगी।
  • अपने द्वारा किये गए अच्छे कर्मों से ही आप ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। और अच्छे कर्म करने वालों की ईश्वर सदैव सहायता करता है।
  • इंसान को सबसे वैभवशाली सुख और स्थायी शांति तब ही प्राप्त होती है, जब कोई अपने भीतर बैठे स्वार्थ को पूरी तरह से समाप्त कर देता है।
  • इन्सान का स्वार्थ ही, अनेक अशुभ विचारों को जन्म देता है।
  • जो व्यक्ति दिन और रात परमत्मा का ध्यान करता है, उसके लिए मै खुद को बलिदान करता हूँ।
  • गुरुबानी को आप पूरी तरह से कंठस्थ कर लें।
  • अपने काम को लेकर लापरवाह ना बने में खूब मेहनत करें।
  • आप अपनी जवानी, जाति और कुल धर्म को लेकर कभी भी घमंडी ना बने उससे हमेशा बचे।
  • मैं उस गुरु के लिए न्योछावर हूँ, जो भगवान के उपदेशों का पाठ करता है।
  • स्वार्थ ही अशुभ संकल्पों को जन्म देता है।
  • हमे सबसे महान सुख और स्थायी शांति तभी प्राप्त हो सकती है जब हम अपने भीतर से स्वार्थ को समाप्त कर देते है।
  • किसी की भी इंसान की चुगली-निंदा ना करे उससे बचे, और किसी भी इंसान से ईर्ष्या करने के बजाय अपने कार्यो पर ध्यान दे।
  • विदेशी नागरिक, दुखी व्यक्ति, विकलांग व जरूरतमंद इंसान की सदैव हृदय से मदद करें।
  • शरीर को नुक्सान पहुंचने वाले किसी भी प्रकार के नशे और तंबाकू आदि का सेवन न करें।
  • सत्कर्म कर्म के द्वारा, तुम्हे सच्चा गुरु मिलेगा, और उसके बाद परमपिता परमेश्वर मिलेंगे, उनकी इच्छा से, तुम्हे उनकी दया का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
  • ये मित्र संगठित हैं, और फिर से अलग नहीं होंगे, उन्हें स्वंय सृजनकर्ता भगवान् ने एक किया है।
  • जब आप अपने अन्दर से अहंकार मिटा देंगे तभी आपको वास्तविक शांति प्राप्त होगी।
  • हमें उन सभी अनुष्ठानों को और उन विचारो को ह्रदय से हटा देना चाहिए, जो हमें प्रभु की भक्ति से दूर ले जाती हो।
  • आप अपनी जीविका को चलाने के लिए ईमानदारी पूर्वक काम करे।
  • हमेशा आप अपनी कमाई का दसवां भाग दान में दे दें।
  • सेवक नानक भगवान के दास हैं, अपनी कृपा से, भगवान उनका सम्मान सुरक्षित रखते हैं।
  • हमेशा अपने दुश्मन से लड़ने से पहले, साम, दाम, दंड और भेद का सहारा लें, और अंत में ही आमने-सामने के युद्ध में पड़ें।

गुरु गोविन्द सिंह के ५२ उपदेश (हुक्म) सम्पादन

(1) धर्म दी किरत करनी – धर्म की कीर्ति करना (धर्म का प्रसार करना, अधर्म न करना)

(2) दसवंद देना – अपनी कमाई का दसवाँ हिस्सा दान मे देना।

(3) गुरबाणी कंठ करनी – गुरबाणी (गुरु की बाणी) याद करनी।

(4) अमृत वेले उठना – सुबह सूरज निलने से पहले उठना।

(5) सिख सेवक दी सेवा रूचि नाल करनी – पूरी श्रद्धा से गुरूसिक्खों की सेवा करनी।

(6) गुरुबाणी दे अर्थ सिख विद्वाना तो पढ़ाने – गुरसिखों से गुरबाणी के अर्थ समझने।

(7) पंज ककार दी रेहत दिरीह कर रखनी – पाँच ककार (कड़ा, कच्छा, कृपाण, केस, कघां) की मर्यादा मेँ रहना और सख्ती से पालन करना।

(8) शबद दा अभिहास करना – जीवन में शबद (गुरबानी) का अभ्यास करना।

(9) सत स्वरुप सतगुर दा ध्यान धरना – सच्चे गुरु (भगवान) का ध्यान करना।

(10) गुरु ग्रंथ साहिब जी नू गुरु मानना – श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को गुरु मानना।

(11) कारजां दे आरम्भ विच अरदास करनी – सभी कार्य की शुरुआत में अरदास करनी।

(12) जन्म, मरण, जा विआह मोके जपजी दा पाठ कर, तिहावाल (कड़ा प्रसाद) कर, आनंद साहिब दे पंज पौरिआं, अरदास, प्रथम पंज प्यारे ते हजूरी ग्रंथी नू वरत के संगत नू वार्ताओना – जन्म, मृत्यु, या विवाह समारोहों (आनंद कारज) में, जपजी साहिब का पाठ करें, कड़ा प्रसाद बनाएं, आनंद साहिब के पांच श्लोक करें, अरदास करें, और फिर पंज प्यारे, हजूर ग्रंथी और फिर संगत को कराह प्रसाद वितरित करें।

(13) जब तक कड़ा प्रसाद वरतदा रहे साद संगत अडोल बैठे रहे – जब तक कड़ा प्रसाद बाँटते रहें सारी साद संगत बिना हिले डुले बैठ रहे।

(14) आनंद विआह बिना ग्रहस्त नहीं करना – विवाह (आनंद कारज) के बिना वैवाहिक जीवन की शुरुआत नहीं करनी।

(15) पर स्त्री, माँ, बहन, धि, कर जानी। पर स्त्री द संग नहीं करना। – अपनी पत्नी के अलावा सभी औरतों को माँ, बहन, बेटी के रूप में देखना है। पराई स्त्री के साथ वै वाहिक सम्बन्ध नहीं रखना।

(16) स्त्री दा मुँह नहीं फटकारना – स्त्री का सम्मान करना, उसे दुत्कारे नहीं।

(17) जगत जूठ तम्बाकू बिखिआ दा तिआग करना – संसार के झूठ, तम्बाकू, जहर का सेवन नहीं करना। इन सबका त्याग करना।

(18) रेहतवान आते नाम जुपन वाले गुरसिखा दी संगत करनी – रेहत का पालन करने वाले और वाहेगुरु का नाम ध्यान करने वाले सिक्खो की संगत करनी।

(19) कम करन विच दरीदार नहीं करना – काम करने में आलस नहीं दिखानी।

(20) गुरबाणी दी कथा ते कीर्तन रोज सुनने ते करने – प्रतिदिन कीर्तन और गुरबाणी (गुरु की बाणी) प्रवचन सुनें और करें।

(21) किसे दी निंदा, चुगली, अते इरखा नहीं करनी – किसी भी व्यक्ति की निंदा, चुगली या ईर्ष्या नही करनी।

(22) धन, जवानी ते कुल जात दा अभिमान नहीं करना – धन दौलत जात पात व यौवन का घमंड नहीं करना। सब लोगों में आपसी भाईचारा होने चाहिए।

(23) मत ऊंची ते सुचि रखनी – अपने विचार तथा अपनी सोच हमेशा ऊंची व साफ़ रखना।

(24) शुभ कर्मन तो कदे ना कतराना – हमेशा शुभ कार्य करते रहे, नेक कार्य करने से परहेज न करें।

( 25) बुद्ध बल दा दाता वाहेगुरु नू जानना – भगवान (वाहेगुरु) को बुद्धि और शक्ति के दाता (मालिक) के रूप में जानना।

( 26) सोगन्द (कसम साहू) दे कर इतबार जनाओँ वाले ते यकीन नहीं करना – उस व्यक्ति पर विश्वास न करें जो कसम खाता है। जो मनुष्य किसी को ‘कसम या सौगंध’ के साथ मनाने की कोशिश करता है ऐसे व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना।

(27) स्वतंत्र विचारना – राज काज दियां कामां ते दुसरे मुता दिआ पुरषा नू हक नहीं देना – स्वतंत्र रूप से शासन करें। सरकार के कामों में दूसरे धर्म के लोगों को अधिकार या शक्ति न दें।

(28) राजनीति पढ़नी – राजनीति की पढ़ाई करनी।

(29) दुश्मन नाल साम, दाम, दंड, भेद आदि उपाय वरतने – दुश्मन के साथ, विभिन्न रणनीतियों (साम, दाम, दंड, भेद) का उपयोग करना, पर युद्ध धर्म से लड़ना।

(30) शस्त्र विद्या अते घोड़हा दी सवारी दा अभ्यास करना – शास्त्र विद्या और घुड़सवारी का अभ्यास करें।

( 31) दूसरे मता दे पुस्तक, विद्या पढ़नी, पर भरोसा दृढ़ गुरबानी, अकाल पूरक ते करना – अन्य धर्मों की पुस्तकों और ज्ञान का अध्ययन करना व सम्मान करना, लेकिन भरोसा गुरबाणी और अकाल पुरुख पर रखना।

( 32) गुरु उपदेशा नू धारान करना – गुरु के उपदेशों को धारण करना और पालन करना।

( 33) रहिरास दा पाठ कर खड़े हो के अरदास करनी – शाम को रहिरास साहिब का पाठ करना फिर खड़े हो कर अरदास करनी।

(34) सोन वैले सोहिला अते ‘पौन गुरु पानी पीता’ श्लोक पढ़ना – रात को सोने के समय कीर्तन सोहिला का पाठ करना

(35) दस्तार बिना नहीं रहना – पगड़ी हमेशा पहननी, सिर हमेशा ढक कर रखना।

(36) सिंह दा आधा नाम नहीं बुलाना – सिंह को उनके आधे नाम से न बुलाना। सिक्खों का पूरा नाम हमेशा आदर से लेना।

(37) शराब नही सेवानी – शराब का सेवन नहीं करना।

(38) सिर मुंए नू कन्या नहीं देनी – ओस घर देवनी जिथे अकाल पुरुक दी सीखी है, जो करजी ना होवे, भले स्वभाव दा होवे, आते ज्ञानवान होवे – बेटी का रिश्ता केश रहित सिख से नहीं करवाना। रिश्ता उस घर में करना जो गुरु का सिख हो, जहाँ वाहगुरु की सीख हो, जहाँ घर क़र्ज़ में न हो, अच्छे स्वाभाव का हो और ज्ञानी हो।

(39) शुभ कारज गुरबाणी अनुसार करने – सभी शुभ काम गुरुबाणी के अनुसार ही करने।

(40) चुगली कर किसे दा कम नहीं विगारना – चुगली कर कभी किसी का काम नहीं बिगड़ना।

(41) कौढ़ा बचन नहीं कहना – कटु (कड़वा) वचन बोलकर किसी का दिल नहीं दुखाना।

(42) दर्शन यात्रा गुरूद्वारे दी ही करनी – तीर्थ यात्रा गुरु घर (गुरुद्वारा) की ही करनी।

(43) बचन करके पालना – वचन देकर उसका पालन करना।

(44) परदेसी, लोढ़वान, दुखी, अपंग मनुका दी यातःशक्त सेवा करनी – परदेसी, जरूरतमंद, दुखी,अपंग व्यक्ति की जितनी आपकी शक्ति हो उतनी सेवा करनी।

(45) पुत्री दा धन भिख जानना – बेटी की कमाई को भीख सामान मानना।

(46) दिखावे दा सिख नहीं बनाना – दिखावे का सिख नहीं बनाना।

(47) सिखी केशा-सुआसा संग निभाओनी – केशदारी सिख रहकर ही जीना और मरना। केश कभी नहीं कटवाने, उनका सम्मान करना।

(48) चोरी, यारी, ठगी, धोखा, दंगा, नहीं करना – चोरी, यारी, ठगी, धोखा, दंगा करने से बचना।

(49) सिख दा ऐतबार करना – गुरु के सिक्खोँ का विश्वास करना।

(50) झूठी गवाही नहीं देनी – झूठी गवाही नहीं देनी।

(51) धोखा नहीं करना – किसी को भी धोखा नहीं देना।

(52) लंगर – प्रसाद इक रस वार्ताउना – लंगर और कड़ा प्रसाद को एक समान रुप से बाँटना।

गुरु गोविन्द सिंह के बारे में उक्तियाँ सम्पादन

  • मैं चाहता तो स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, रामकृष्ण परमहंस आदि के बारे में काफी कुछ लिख सकता था, परन्तु मैं उनके बारे में नहीं लिख सकता जो कि पूर्ण पुरुष नहीं हैं। मुझे पूर्ण पुरुष के सभी गुण गुरु गोविंदसिंह में मिलते हैं। -- महान आर्यसमाजी लाला दौलतराय, जिन्होंने गुरु गोविंदसिंहजी के बारे में "पूर्ण पुरुष" नामक एक पुस्तक लिखी है।
  • जब मैं गुरु गोविंद सिंह जी के व्यक्तित्व के बारे में सोचता हूँ तो मुझे समझ में नहीं आता कि उनके किस पहलू का वर्णन करूँ। वे कभी मुझे महाधिराज नजर आते हैं, कभी महादानी, कभी फकीर नजर आते हैं, कभी वे गुरु नजर आते हैं। -- मुहम्मद अब्दुल लतीफ

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