• साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।
तृणं न खादन्नपि जीवमानस्तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥ -- भर्तृहरि
जो मनुष्य साहित्य, संगीत और कला से विहीन है वह बिना पूंछ तथा बिना सींगों वाले साक्षात् पशु के समान है । वह बिना घास खाए जीवित रहता है यह पशुओं के लिए निःसंदेह सौभाग्य की बात है।
येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
ते मृत्युलोके भुवि भारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ -- भर्तृहरि
जिन मनुष्यों के पास विद्या, तप, दान की भावना, ज्ञान, शील (सत्स्वभाव), मानवीय गुण, धर्म में संलग्नता का अभाव हो वे इस मरणशील संसार में धरती पर बोझ बने हुए मनुष्य रूप में विचरण करने वाले पशु हैं।
  • ऋणानुबन्धरूपेण पशुपत्नीसुतालयाः।
ऋणक्षये क्षयं यान्ति का तत्र परिदेवना ॥ -- महासुभषितसंग्रह
पशु, पत्नी, सुत (संतान) तथा निवास स्थान का स्वामित्व एक ऋण लेने के अनुबन्ध के समान होता है। जिस प्रकार लिये हुए ऋण की राशि वापस करने पर ऋण का दायित्व समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति अपने परिवार और सम्पति के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह करता है तो इस पर किसी प्रकार की चिन्ता क्यों हो?
  • आहारनिद्राभयमैथुनं च सामान्यमेतत्पशुभिर्नराणाम्।
धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः॥ -- चाणक्यनीति
भोजन करना, नींद लेना, डरना और मैथुन करना - ये चार बातें मनुष्य और पशु में एक जैसी होती हैं। मनुष्य में एक धर्म ही अधिक और विशेष है। (अतः) धर्म से हीन मनुष्य पशु के समान है।
  • नानारण्यमृगव्रातैरनाबाधे मुनिव्रतै: ।
आहूतं मन्यते पान्थो यत्र कोकिलकूजितै: ॥ -- भागवतम्
ऐसे वातावरण में वन के पशु भी मुनियों के समान ही अहिंसक एवं ईर्ष्याहीन हो गये थे, अतः वे किसी पर आक्रमण नहीं करते थे। यही नहीं, सर्वत्र कोयलें कूज रही थीं। उस पथ से निकलने वाले किसी भी पथिक को मानो उस सुन्दर उद्यान में विश्राम करने का निमंत्रण दिया जा रहा हो।
  • परोपकारशून्यस्य धिक् मनुष्यस्य जीवितम् ।
जीवन्तु पशवो येषां चर्माप्युपकरिष्यति ॥ -- सुभाषित रत्नावली
परोपकार रहित मानव के जीवन को धिक्कार है। वे पशु धन्य हैं जिनका चमड़ा मरने के बाद भी उपयोग में आता है।
  • काक चेष्टा बको ध्यानं स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पञ्चलक्षणम्॥
एक (अच्छे) विद्यार्थी के ये पाँच लक्षण हैं- कौए की तरह चेष्टा (जहां-जहां ज्ञान मिल रहा हो उसे गहण करे लेना चाहिए), बगुले की तरह अपना ध्यान लगाना चाहिए, कुत्ते के समान नींद (हल्की सी आहट पर उठ जाना), कम भोजन करना, घर का त्याग (गाँव-घर और निकट सम्बन्धियों से बहुत अधिक लगव न होना)।
  • परस्परोपग्रहो जीवानाम् -- तत्त्वार्थ सूत्र (जैन ग्रन्थ)
सभी जीव एक दूसरे पर आश्रित हैं।
  • प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥ -- चाणक्य नीति
प्रिय वाक्य बोलने से (मनुष्य ही नहीं बल्कि) सभी जन्तु प्रसन्न होते हैं। इसलिए प्रिय ही बोलना चाहिये। आखिर वचनों में दरिद्रता कैसी?
  • यः स्वभावो हि यस्यास्ति स नित्यं दुरतिक्रमः।
श्वा यदि क्रियते राजा स किं नाश्रातयुपानहम् ॥ -- हितोपदेश
जिसका जैसा स्वभाव है, वह छूटना सर्वदा कठिन होता है। यदि कुत्ते को राजा बना दिया जाए, तो क्या वह जूते को नहीं चबाएगा ?
  • नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता॥
सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा॥ -- रामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड
हे नाथ! मैं दशमुख रावण का भाई हूँ। हे देवताओं के रक्षक! मेरा जन्म राक्षस कुल में हुआ है। मेरा तामसी शरीर है, स्वभाव से ही मुझे पाप प्रिय हैं, जैसे उल्लू को अंधकार पर सहज स्नेह होता है।

इन्हें भी देखें

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