गुरु तेग बहादुर

नवम सिख गुरु (कार्यकाल: 1665-1675)

गुरु तेग बहादुर (1 अप्रैल 1621 – 24 नवम्बर 1675) सिख धर्म के नौवें गुरु थे। वे गुरु हरगोबिंद के सबसे छोटे पुत्र थे। उन्हें एक सम्माननीय विद्वान और कवि माना जाता है। उन्होंने सिख धर्म की पवित्र पुस्तक श्री गुरु ग्रंथ साहिब में बहुत योगदान दिया। उन्हें योद्धा गुरु के रुप में भी याद किया जाता है। उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अथक संघर्ष किया। वह मानवता, वीरता, साहस, बलिदान तथा अपने विचारों और शिक्षाओं के लिए जाने जाते हैं।

गुरु तेग बहादुर
  • महान कार्य छोटे-छोटे कार्यों से बने होते हैं।
  • हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो, घृणा से विनाश होता है।
  • हार और जीत यह आपके सोच पर निर्भर है, मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है।
  • गलतियां हमेशा क्षमा की जा सकती है, यदि आपके पास उन्हें स्वीकारने की साहस हो।
  • एक सज्जन व्यक्ति वह है जो अनजाने में किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाए।
  • दिलेरी डर की गैरमौजूदगी नहीं, बल्कि यह फैसला है कि डर से भी जरूरी कुछ है।
  • सफलता कभी अंतिम नहीं होती, विफलता कभी घातक नहीं होती, इनमें जो मायने रखता है वो है साहस।
  • किसी के द्वारा प्रगाढ़ता से प्रेम किया जाना आपको शक्ति देता है और किसी से प्रगाढ़ता से प्रेम करना आपको साहस देता है।
  • सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है।
  • जीवन किसी के साहस के अनुपात में सिमटता या विस्तृत होता है।
  • प्यार पर एक और बार और हमेशा एक और बार यकीन करने का साहस रखिए।
  • अपने सिर को छोड़ दो, लेकिन उन लोगों को त्यागें जिन्हें आपने संरक्षित करने के लिए किया है। अपना जीवन दो, लेकिन अपना विश्वास छोड़ दो।
  • गलतियां हमेशा क्षमा की जा सकती हैं, यदि आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो।
  • आध्यात्मिक मार्ग पर दो सबसे कठिन परिक्षण हैं, सही समय की प्रतीक्षा करने का धैर्य और जो सामने आए उससे निराश ना होने का साहस।
  • डर कहीं और नहीं, बस आपके दिमाग में होता है।
  • साहस ऐसी जगह पाया जाता है जहां उसकी संभावना कम हो।
  • जिनके लिए प्रशंसा और विवाद समान हैं तथा जिन पर लालच और लगाव का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, उस पर विचार करें।
  • अपना सिर छोड़ दो, लेकिन उन लोगों का त्याग न करें जिन्हें आपने रक्षा करने के लिए किया है। अपने जीवन का बलिदान करें, लेकिन अपने विश्वास को त्यागें नहीं।
  • इस भौतिक संसार की वास्तविक प्रकृति का सच्चा ज्ञान, इसके विनाशकारी, क्षणभंगुर और भ्रामक पहलू दुःख में एक व्यक्ति पर सबसे अधिक डालते हैं।
  • भै काहू कउ देत नहिं नहि भै मानत आन।
कहु नानक सुनि रे मना गिआनी ताहि बखान॥[]
जो न किसी को भय देता है, न किसी से भय खाता है, उसी को ज्ञानी कहना चाहिये।
  • मन में सीचो हर हर नाम
अंदर कीर्तन, हर गुण गान
ऐसी प्रीत करो मन मेरे
आठ पहर प्रभु जानो तेरे
कहो नानक जा का निर्मल भाग
हर बैरागी ता का मन लाग

अपने सिर को छोड़ दो, लेकिन उन लोगों को त्यागें जिन्हें आपने संरक्षित करने के लिए किया है। अपना जीवन दो, लेकिन अपना विश्वास छोड़ दो।

  • किसी ने कहा तेरे दरबार कितने है
किसी ने कहा तेरे कारोबार कितने है
किसी ने कहा तेरे परिवार कितने है
कोई विरला ही कहता है
तेरे गुरु नाल प्यार कितना है।

साहस ऐसे स्थान पाया जाता है जहाँ उसकी उम्मीद कम हो।

इस भौतिक संसार की वास्तविक प्रकृति का सही अहसास, इसके विनाशकारी, क्षणिक और भ्रमपूर्ण पहलुओं को पीड़ित व्यक्ति पर सबसे अच्छा लगता है।

  • माँ बाप ने लाल पुत्र दे, दर्शन जिस पल पाए ।
खुशिया दे विच्च मोतिया वाले, भर भर बुक्क लुटाए।
  • राम गयो रावण गयो, जाको बहु परिवार।
कहु नानक थिर कछु नहीं, सुपने ज्यों संसार॥
राम और रावण इस संसार से चले गये, उनके परिवार बहुत बड़े-बड़े थे। कुछ भी स्थिर नहीं है। यह संसार स्वप्न जैसा है।

सन्दर्भ

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