• परोपदेशे पाण्डित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम् ।
धर्मे स्वीयमनुष्ठानं कस्यचित्तु महात्मनः ॥
पर-उपदेश में पाण्डित्य (प्रवीणता) सभी मनुष्यों में आसानी से मिल जाती है। किन्तु अपने कर्तव्य का पालन कुछ ही महात्मा करते हैं।
  • पर उपदेश कुशल बहुतेरे। जे अचरहिं ते नर न घनेरे॥ -- गोस्वामी तुलसीदास
दूसरों को उपदेश देने में बहुत से लोग दक्ष (कुशल) हैं किन्तु जो उन उपदेशों के अनुसार आचरण करने वाले बहुत कम लोग हैं।
  • जिसे हर कोई देने को तैयार रहता है पर लेता कोई नहीं ऐसी वस्तु क्या है? उपदेश, सलाह। -- स्वामी रामतीर्थ
  • उपदेशो हि मूर्खाणां, प्रकोपाय न शान्तये।
पयःपानं भुजडाग्नां केवल विषवर्धनम्॥
मूर्खों को दिया गया उपदेश, उसी प्रकार उनके क्रोध को बढ़ाने वाला होता है, जिस प्रकार सापों को दूध पिलाने से उनके विष में वृद्धि होती है।
  • स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा ।
सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् ॥ -- पञ्चतन्त्रम् 1-201
किसी व्यक्ति के स्वभाव को उपदेश देकर नहीं बदला जा सकता। ठण्डे जल को उबालने पर तो वह गर्म हो जाता है लेकिन बाद में वह पुनः ठंडा हो जाता है।
  • परोपदेशे पाण्डित्यं सर्वेषां सुकरं नॄणाम् ।
धर्मे स्वीयमनुष्ठानं कस्यचित् सुमहात्मनः॥
दूसरोंको उपदेश देकर अपना पाण्डित्य दिखाना बहुत सरल है। परन्तु केवल महान व्यक्ति ही उस तरह से (धर्मानुसार) अपना बर्ताव रख सकता है।

इन्हें भी देखें सम्पादन