• न मुक्ताभिर्न माणिक्यैः न वस्त्रैर्न परिच्छदैः ।
अलङ्क्रियेत शीलेन केवलेन हि मानवः ॥
मोती, माणेक, वस्त्र या पहनावे से नहीं, मानव को (स्वयं को) केवल शील से ही अलंकृत करना चाहिये।
  • शौचानां परमं शौचं गुणानां परमो गुणः ।
प्रभावो महिमा धाम शीलमेकं जगत्त्रये ॥
तीनों लोकों में एक शील ही परम् पवित्र वस्तु, गुणों में श्रेष्ठ गुण, महिमा का धाम और प्रभाव है।
  • विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मतिः ।
परलोके धनं धर्मः शीलं सर्वत्र वै धनम् ॥
विदेश में विद्या धन है, संकट में मति धन है, परलोक में जाने पर धर्म धन होता है। पर, शील तो सब जगह धन है।
  • अज्ञातकुलशीलस्य वासो देयो न कस्यचित्।
मार्जारस्य हि दोषेण हतो गृध्रो जरद्रवः॥ -- हितोपदेश
जिस व्यक्ति का कुल और शील (स्वभाव) ज्ञान न हो तो ऐसे किसी को अपने घर में रहने को जगह नहीं देनी चाहिये।
  • मनुष्य भले ही बड़ा ज्ञानवान, बली, कुलीन और धनी हो, परंतु यदि वह शील से रहित है तो वह समाज में विश्वसनीय नहीं होता और न ही किसी तरह से आदर पाता है। इसके विपरीत यदि वह भले ही छोटे कुल का साधारण व्यक्ति हो, परंतु शील संपन्न हो तो वह सबका विश्वास और आदर पाता है। -- भगवान राम वाल्मीकि रामायण में
  • जैसे नदियां समुद्र की ओर जाती हैं यद्यपि उन्हें इनकी कामना नही होती है, वैसे ही सभी गुण और संपदाएं शीलवान व्यक्ति के पास अपने आप आ जाती हैं। -- आचार्य तुलसी
  • मृगा मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति गावश्च गोभिः तुरगास्तुरङ्गैः।
मूर्खाश्च मूर्खैः सुधियः सुधीभिः समान-शील-व्यसनेषु सख्यम्॥
जैसे हिरणें हिरणों के, और गाएं गौओं के, घोड़े घोड़ों के साथ पीछे घूमते हैं। वैसे ही मूर्ख मूर्खों के और बुद्धिमान् बुद्धिमन्तों के साथ घूमते हैं। इसीलिए (हम कह सकते हैं कि) समान शील और व्यसनियों में दोस्ती होती है।
  • निशानां च दिनानां च यथा ज्योतिः विभूषणम् ।
सतीनां च यतीनां च तथा शीलमखण्डितम् ॥
जैसे प्रकाश, दिन और रात का भूषण है, वैसे अखंडित शील, सतीयों और यतियों का भूषण है ।
  • अद‍ृष्ट्वान्यतमं लोके शीलौदार्यगुणै: समम् ।
अहं सुतो वामभवं पृश्न‍िगर्भ इति श्रुत: ॥ -- श्रीमद्भागवद्
चूँकि मुझे सरलता तथा शील के दूसरे गुणों में तुम जैसा बढ़ा-चढ़ा अन्य कोई व्यक्ति नहीं मिला, अत: मैं पृश्नि-गर्भ के रूप में उत्पन्न हुआ।

इन्हें भी देखें

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