ज्योतिष
प्राचीन काल में ग्रह, नक्षत्र और अन्य खगोलीय पिण्डों का अध्ययन करने के विषय को ही ज्योतिष कहा गया था। इसके दो भाग थे- गणित भाग और फलित भाग। इसके गणित भाग के बारे में तो बहुत स्पष्टता से कहा जा सकता है कि इसके बारे में वेदों में स्पष्ट गणनाएं दी हुई हैं। गणित ज्योतिष के दो भाग हैं- सिद्धान्त ग्रन्थ तथा करण ग्रंथ। फलित भाग के बारे में बहुत बाद में जानकारी मिलती है।
ज्योतिष या ज्यौतिष विषय वेदों जितना ही प्राचीन है। भारतीय आचार्यों द्वारा रचित ज्योतिष की पाण्डुलिपियों की संख्या एक लाख से भी अधिक है।
'ज्योतिष' से निम्नलिखित का बोध हो सकता है- वेदाङ्ग ज्योतिष, सिद्धान्त ज्योतिष या 'गणित ज्योतिष' (Theoretical astronomy), फलित ज्योतिष (Astrology), अंक ज्योतिष (numerology), खगोल शास्त्र (Astronomy)
उक्तियाँ
सम्पादन- संस्कृत में केवल ज्योतिष शास्त्र की ही १ लाख से अधिक पाण्डुलिपियाँ हैं। इनमें से कम से कम ३० हजार पाण्डुलिपियाँ गणित या खगोलिकी से हैं। -- अमेरिकी विद्वान डेविड पिंगरी, 'Census of Exact Sciences in Sanskrit' में।[१][२]
- गणिकागणकौ समानधर्मो निजपञ्चाङ्गनिदर्शकावुभौ।
- जनमानसमोहकारिणौ तौ विधिना वित्तहरौ विनिर्मितौ॥
- गणिका (वेश्या) और गणक (ज्योतिषी) का बर्ताव एक ही सा जान पड़ता है। ज्योतिषी अपना पंचांग (पत्रा) दिखाता है और वेश्या भी अपने पंचांग (पाँच अंग) दिखाती है। इसी प्रकार ये दोनों, लोगों के मन मोहने वाले हैं। कदाचित् ऐसा ही समझकर विधि ने इन दोनों को लोगों का द्रव्य अपहरण करने के लिए निर्माण किया है।
- गणयति गगने गणकश्चन्द्रेण समागमं विशाखायाः।
- विविधभुजङ्गक्रीडासक्तां गृहिणीं न जानाति॥ -- क्षेमेन्द्र, कलाविलास 9/6
- गणक (ज्योतिषी) इस बात की गणना करता है कि गगन में चन्द्रमा के साथ विशाखा का समागम कब होगा। (किन्तु) वह नहीं जानता कि उसकी घर वाली विविध भुजंगों (सापों) के साथ क्रीडासक्त है।
- ज्योतिःशास्त्रविदे तस्मै नमोऽस्तु ज्ञानचक्षुसे।
- वर्ष पृच्छत्यवर्षं वा धीवरान् यो विनष्टधीः ॥ -- क्षेमेन्द्र, नर्ममाला 2/82
- ज्योतिःशास्त्रविद को नमस्कार है जो ज्ञानचक्षु है लेकिन वह विनष्ट बुद्धि वाला मछुवारे से पूछता है कि इस वर्ष वर्षा होगी या नहीं।
- आयुःप्रश्ने दीर्घमायुर्वाच्यं मौहूर्तिकैर्जनैः ।
- जीवन्तो बहुमन्यन्ते मृताः प्रक्ष्यन्ति कं पुनः॥ -- नीलकण्ठदीक्षित, कलिविडम्बना
- भविष्य बताने वालों को चाहिये कि जब कोई अपनी आयु के बारे में पूछे तो कहना चाहिये कि 'दीर्घ आयु वाले हो'। वह जीवित रहेगा तो आपको बहुत मानेगा, जो मर गया वह पुनः किससे पूछेगा?
- इति साधारण ज्ञानमन्त्रवैद्यकमिश्रितम् ।
- ज्योतिःशास्त्रं विगणयन् यो मुष्णाति जडाशयान् ॥ -- क्षेमेन्द्र, नर्ममाला 2/87
- दुर्निवारश्च नारीणां पिशाचो रतिरागकृत् ।
- पुनः शून्यगृहे स्नाता गुह्यकेन निरम्बरा ।
- गृहीतेत्यत्र पश्यामि चक्रे शुक्रसमागमात् ॥ -- क्षेमेन्द्र, नर्ममाला 2/91
- प्रानियोगिवधूवृत्तं जानन्नपि जनश्रुतम् ।
- धूर्तो धूलिपटे चक्रे राशिचक्रं मुधैव सः ॥ -- क्षेमेन्द्र, नर्ममाला 2 / 88
- ततोऽवदन् मन्दमन्दं प्रोक्षिप्तभ्रूलतो मुहुः ।
- इयमापाण्डुरमुखी रतिकामेन पीडिता॥ -- क्षेमेन्द्र, नर्ममाला 2/90
- विन्यासस्य राशिचक्रं ग्रहचिन्तां नाटयन् मुखविकारैः।
- अनुवदति चिराद् गणको यत् किंचित् प्राश्निकेनोक्तम् ॥ -- क्षेमेन्द्र, कलाविलास 9/5
- मन्त्रे तीर्थे द्विजे देवे दैवज्ञे भेषजे गुरौ।
- यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी॥ -- पञ्चतन्त्र, अपरीक्षितकारक (ब्राह्मण-कर्कटक कथा)
- मन्त्र में, तीर्थ में, द्विज में, देवता में, ज्योतिषी में, औषधि में और गुरु में जिसकी जैसी भावना होती है उसे वैसी ही सिद्धि मिलती है।
- ज्यौतिषं जलदे मिथ्या मिथ्या श्वासिनि वैद्यकम् ।
- योगो बह्वशने मिथ्या मिथ्या ज्ञानं च मद्यपे ॥ -- समयोचितपद्यमालिका.
- Astrology is irrelevant when one tries to predict the movement of clouds (and there by the rains). The entire field of medicine serves no purpose if the breathing is incorrect. Yoga can not do any good if a person routinely over eats. Knowledge is useless for a drunkard.
- येषां बाहुबलं नास्ति येषां नास्ति मनोबलम् ।
- तेषां चन्द्रबलं देव किं कुर्यादम्बरस्थितम् ॥ -- यशस्तिलक चम्पू
- जिनके पास बाहुबल नहीं है और जिनके पास मनोबल नहीं है। उनका चन्द्रबल क्या करेगा जो आकश में स्थित है।
- करम गति टारै नाहिं टरी॥
- मुनि वसिस्थ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि।
- सीता हरन मरन दसरथ को, बन में बिपति परी॥1॥
- कहँ वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहँ वह मिरग चरी।
- कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि॥2॥
- पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी।
- कहत कबीर सुनो भै साधो, होने होके रही॥3॥ -- कबीरदास
- नहीं ये सब पाप पुण्यों के फल है। -- दयानन्द सरस्वती, इस प्रश्न के उत्तर में कि क्या जो यह संसार में राजा प्रजा सुखी दुःखी हो रहे हैं यह ग्रहों का फल नहीं है?
- नहीं, जो उसमें अंक, बीज, रेखागणित विद्या है वह सब सच्ची है। जो फल की लीला है, वह सब झूठी है। -- दयानन्द सरस्वती, इस प्रश्न के उत्तर में कि क्या ज्योतिष शास्त्र झूठा है?
- हां, वह जन्मपत्र नहीं किन्तु उसका नाम ‘शोकपत्र’ रखना चाहिये क्योंकि जब सन्तान का जन्म होता है तब सब को आनन्द होता है परन्तु वह आनन्द तब तक होता है कि जब तक जन्मपत्र बनके ग्रहों का फल न सुने। जब पुरोहित जन्मपत्र बनाने को कहता है तब उस के माता-पिता पुरोहित से कहते हैं--’महाराज! आप बहुत अच्छा जन्मपत्र बनाइये’। जो धनाढ्य हों तो बहुत सी लाल-पीली रेखाओं से चित्र विचित्र और निर्धन हो तो साधरण रीति से जन्मपत्र बनाके सुनाने को आता है। तब उसके मां बाप ज्योतिषी जी के सामने बैठ के कहते हैं-’इस का जन्मपत्र अच्छा तो है?’ ज्योतिषी कहता है-’जो है सो सुना देता हूँ। इसके जन्मग्रह बहुत अच्छे और मित्रग्रह भी बहुत अच्छे हैं। जिनका फल धनाढ्य और प्रतिष्ठावान् जिस सभा में जा बैठेगा तो सब के ऊपर इस का तेज पड़ेगा। शरीर से आरोग्य और राज्यमानी होगा’ इत्यादि बातें सुनके पिता आदि बोलते हैं--’वाह-वाह ज्योतिषी जी! आप बहुत अच्छे हो’। ज्योतिषी जी समझते हैं कि इन बातों से कार्य सिद्ध नहीं होता। तब ज्योतिषी बोलता है-’ये ग्रह तो बहुत अच्छे हैं परन्तु ये ग्रह क्रूर हैं अर्थात् फलाने-फलाने ग्रह के योग से व वर्ष में इस का मृत्युयोग है’। इस को सुन के माता पितादि पुत्र के जन्म के आनन्द को छोड़ के शोकसागर में डूब कर ज्योतिषी से कहते हैं कि ‘महाराज जी! अब हम क्या करें?’ तब ज्योतिषी जी कहते हैं- ‘उपाय करो’। गृहस्थ पूछता है, ‘क्या उपाय करें’। ज्योतिषी जी प्रस्ताव करने लगते हैं कि ‘ऐसा-ऐसा दान करो, ग्रह के मन्त्र का जप कराओ और नित्य ब्राह्मणों को भोजन कराओगे तो अनुमान है कि नवग्रहों के विघ्न हट जायेंगे’। अनुमान शब्द इसलिये है कि जो मर जायेगा तो कहेंगे हम क्या करें परमेश्वर के ऊपर कोई नहीं है, हम ने तो बहुत सा यत्न किया और तुम ने कराया उस के कर्म ऐसे ही थे। और जो बच जाय तो कहते हैं कि देखो- 'हमारे मन्त्र देवता और ब्रह्मणों की कैसी सिद्धि है? तुम्हारे लड़के को बचा दिया।' यहां यह बात होनी चाहिये कि जो इनके जप-पाठ से कुछ न हो तो दूने-तिगुने रुपये उन धूर्तो से ले लेने चाहिये और बच जाय तो भी ले लेने चाहिये क्योंकि जैसे ज्योतिषियों ने कहा कि ‘इस के कर्म और परमेश्वर के नियम तोड़ने का सामर्थ्य किसी का नहीं।’ वैसे गृहस्थ भी कहें कि ‘यह अपने कर्म और परमेश्वर के नियम से बचा है तुम्हारे करने से नहीं’ और तीसरे गुरु आदि भी पुण्य दान करा के आप ले लेते हैं तो उनको भी वही उत्तर देना जो ज्योतिषियों को दिया था। -- दयानन्द सरस्वती, सत्यार्थ प्रकाश, द्वितीय समुल्लास ; इस प्रश्न के उत्तर में कि क्या जो यह जन्मपत्रा (कुंडली) है, सो निष्फल है ?
- ...इसके बाद उन्हें दो वर्षों में ज्योतिष शास्त्र (खगोलविज्ञान) का गहन अध्ययन करना चाहिए - जिसमें अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति, भूगोल, भूविज्ञान और खगोल विज्ञान शामिल हैं। उन्हें इन विज्ञानों में व्यावहारिक प्रशिक्षण भी लेना चाहिए, उपकरणों का उचित संचालन सीखना चाहिए, उनके तंत्र (mechanism) में महारत हासिल करनी चाहिए और यह जानना चाहिए कि उनका उपयोग कैसे करना है। लेकिन उन्हें ज्योतिष शास्त्र (astrology) को - जो मनुष्य के भाग्य पर नक्षत्रों के प्रभाव, समय की शुभता और अशुभता, कुंडली आदि का विचार करता है - को एक धोखाधड़ी मानना चाहिए, और इस विषय पर कभी भी कोई पुस्तक नहीं पढ़नी या पढानी चाहिए। -- दयानन्द सरस्वती, सत्यार्थ प्रकाश में
- धर्म के लिए अंधविश्वास वही है जो ज्योतिष शास्त्र के लिए एक बुद्धिमान मां की पागल बेटी है। इन बेटियों ने बहुत लंबे समय तक धरती पर राज किया है। -- वोल्टेयर
- ये सभी विचार, जैसे कि ज्योतिष से बचना चाहिये, यद्यपि इनमें कुछ कुछ सच्चाई हो सकती है। -- स्वामी विवेकानन्द
- ज्योतिष की छोटी से छोटी बातों पर अत्यधिक ध्यान देना यह वह अन्धविश्वास है जिसने हिन्दुओं को बहुत नुकसान पहुँचाया है। -- स्वामी विवेकानन्द
- मैं कुछ ज्योतिषियों से मिला हूँ जिन्होंने आश्चर्यजनक चीजों की भविष्यवाणी की। लेकिन मेरे पास विश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि उन्होंने यह सब केवल ग्रहों की स्थिति के आधार पर किया था। कई बार यह मस्तिष्क को पढकर किया जाता है। कभी-कभार आश्चर्यजनक भविष्यवाणियाँ की जातीं हैं किन्तु अधिकांशतः यह कचरा ही होता है। -- स्वामी विवेकानन्द
- मुझे ऐसा लगता है कि (फलित) ज्योतिष को सबसे पहले यूनानी लोग भारत लाये और यहाँ के हिन्दुओं से खगोल विज्ञान वापस ले के गये। बाद में वे खगोल विज्ञान को योरप ले गये। ऐसा इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि भारत के पुराने यज्ञ-वेदियाँ एक निश्चित ज्यामितीय योजना के अनुसार बनीं हैं और जब ग्रह कुछ निश्चित स्थिति में होते थे तो कुछ चींजे ककरनी पड़तीं थीं। इसलिये मैं सोचता हूँ कि यूनानियों ने हिन्दुओं को ज्योतिष (astrology) दिया जबकि हिन्दुओं ने उनको खगोलविज्ञान (astronomy) दिया। -- स्वामी विवेकानन्द
- जो लोग ग्रह-नक्षत्रों की गणना करके, या इसी तरह की अन्य कलाओं या झूट बोलने की कला से अपनी जीविका चलाते हैं, उनसे बचना चाहिये। -- महात्मा बुद्ध