• यद्यपि बहु नाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम्।
स्वजनो श्वजनो माऽभूत्सकलं शकलं सकृत्शकृत्॥
(पुत्र ! यदि तुम बहुत विद्वान नहीं बन पाते हो तो भी व्याकरण (अवश्य) पढ़ो ताकि 'स्वजन' 'श्वजन' (कुत्ता) न बने और 'सकल' (सम्पूर्ण) 'शकल' (टूटा हुआ) न बने तथा 'सकृत्' (किसी समय) 'शकृत्' (गोबर का घूरा) न बन जाय।)
  • यस्य षष्ठी चतुर्थी च विहस्य च विहाय च ।
यस्याहं च द्वितीया स्याद् द्वितीया स्यामहं कथम् ॥
अर्थ - जो पुरुष 'विहस्य' को षष्ठी तथा 'विहाय' को चतुर्थी समझता है, 'अहम्' शब्द को द्वितीया समझता है, मैं कैसे उसकी पत्नी (द्वितीया) बन सकती हूँ?
  • अनन्तपारं किल शब्दशास्त्रं स्वल्पं तथायुर्बहवश्च विघ्नाः।
यत्सारभूतं तदुपासनीयं हंसैर्यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात् ॥ -- पञ्चतन्त्र, "मित्रभेदो" नामक प्रथम तन्त्र
तात्पर्य : केवल व्याकरणशास्त्र का ही विचार करें, तो उसका भी कोई अन्त ही नहीं है। मानव की सम्पूर्ण आयु भी इसके अध्ययन के लिए अल्प है। जो सारभूत है, उसी का अध्ययन करना चाहिए, जैसे नीर-क्षीर विवेक से हंस इन दोनों के मिश्रण से केवल क्षीर को ही अलग करके पीता है।
  • न सोऽस्ति प्रत्ययो लोके यः शब्दानुगमात्त्ते ।
अनुविद्धमिव ज्ञानं सर्वं शब्देन भासते ॥ -- भर्तृहरि, वाक्यपदीय में
संसार का कोई भी ज्ञान शब्द से ही प्रकाशित होता है, शब्द के बाह्य तथा अन्तः स्वरुप को समझने के लिए तत्तत् वैयाकरणों ने अनेक शब्दानुशासनों की रचना की है।
  • नूनं व्याकरणं कृत्स्नमनेन बहुधा श्रुतम् ।
बहु व्याहरताऽनेन न किञ्चिदपशब्दितम् ॥ -- वाल्मीकि रामायण
(राम कहते हैं कि) ऐसा लगता है कि इन्होंने (हनुमान ने) अवश्य ही सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक प्रकर से अध्ययन किया है क्योंकि इनके द्वारा उच्चारित बहुत से शब्दों में कोई भी त्रुटि नहीं है।
  • सर्वार्थानां व्याकरणाद् वैयाकरण उच्यते ।
तन्मूलतो व्याकरणं व्याकरोतिती तत्तथा ॥ -- महाभारत, उद्योगपर्व
जो पाठक शब्द के समस्त अर्थों को व्याकृत करता है उसे वैयाकरण कहते हैं। शब्दों को व्याकृत करने वाला शास्त्र ही व्याकरण कहलाता है।
अव्याकरणमधीतं भिन्नद्रोण्या तरंगिणी तरणम् ।
भेषजमपथ्यसहितं त्रयमिदमकृतं वरं न कृतम् ॥
व्याकरण छोड़कर किया हुआ अध्ययन, टूटी हुई नाव से नदी पार करना, और नहीं खाने लायक भोजन के साथ दवाई खाना – ये सब चीजें करने से बेहतर है इन्हें न करना।
  • यदि व्याकरण को अच्छी त्रह समझ लिया जाय तो वह हमे अपनी बात को न केवल पूर्णता और स्पष्टता से कहने में सक्षम बनाता है बल्कि हमे यह भी शक्ति देता है कि हम ऐसे शब्द प्रयोग करें जिनका दूसरे लोग चाहकर भी कोई दूसरा अर्थ न निकाल सकें। -- William Cobbett in: A Grammar of the English Language: The 1818 New York First Edition Wih Passages Added in 1819, 1820, and 1823, Rodopi, 1983, p. 34
  • पाणिनीय व्याकरण मानवीय मष्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है। -- लेनिनग्राड के प्रोफेसर टी. शेरवात्सकी
  • पाणिनीय व्याकरण की शैली अतिशय-प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं। -- कोल ब्रुक
  • संसार के व्याकरणों में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि है।.. यह मानवीय मष्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अविष्कार है। -- सर डब्ल्यू. डब्ल्यू. हण्डर
  • पाणिनीय व्याकरण उस मानव-मष्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आज तक सामने नहीं रखा। -- प्रो॰ मोनियर विलियम्स

इन्हें भी देखें सम्पादन