रोजगार
सेवायोजन या रोजगार दो व्यक्तियों या समूहों में एक सम्बन्ध है जो प्रायः संविदा (कान्ट्रैक्ट) पर आधारित होता है। इसमें से एक सेवाप्रदाता (employee) होता है और दूसरा सेवायोजक (employer)। वृत्ति, आजीविका आदि रोजगार के पर्याय हैं।
उक्तियाँ
सम्पादन- अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम् ।
- अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः ॥
- तात्पर्य : प्रत्येक अक्षर से कोई न कोई मंत्र आरम्भ होता है। प्रत्येक मूल (जड़) कोई न कोई औषधि होती है। कोई भी व्यक्ति 'अयोग्य' नहीं है किन्तु उनको काम पर लगाने वाला (योजक) ही दुर्लभ हैं (नहीं होते)।
- वृत्तिमूलमर्थलाभः । -- चाणक्य
- वृत्ति का मूल अर्थलाभ है।
- अर्थमूलं कार्यम् । यदल्पप्रयत्नात् कार्यसिद्धिर्भवति। --चाणक्य
- अर्थ ही कार्यों का मूल है। जिसके द्वारा अल्प प्रयत्न से ही कार्य सिद्ध हो जाते हैं।
- जब लोग किसी रोजगार में लगे होते हैं तो वे सर्वाधिक सन्तुष्ट होते हैं। -- बेंजामिन फ्रैंकलिन
- अधिकतम आउटपुट के आदर्श की प्राप्ति के लिये अपना समाज यह देखता है कि व्यक्ति काम के लिये उपयुक्त है या नहीं, समाज यह नहीं देखता कि काम, व्यक्ति के लिये उपयुक्त है या नहीं। -- John Passmore, The Perfectibility of Man, p. 280
- हिम (ठोस) और जल (द्रव) के बीच कोई तीसरी अवस्था नहीं है, किन्तु जीवन और मृत्यु के बीच एक तीसरी अवस्था है- रोजगार। -- Nassim Nicholas Taleb, The Bed of Procrustes: Philosophical and Practical Aphorisms (2010) Preludes, p.8.