चाणक्य

प्राचीन भारतीय दार्शनिक और बहुश्रुत
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चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375 - ईसापूर्व 283) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र नामक ग्रन्थ राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है।

एक कलाकार की धारणा में चाणक्य

उक्तियाँ

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  • व्यक्ति अकेले पैदा होता है और अकेले मर जाता है; और वो अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल खुद ही भुगतता है; और वह अकेले ही नर्क या स्वर्ग जाता है।
  • अगर सांप जहरीला ना भी हो तो उसे खुद को जहरीला दिखाना चाहिए।
  • शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पता है। शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है।
  • कोई व्यक्ति अपने कार्यों से महान होता है, अपने जन्म से नहीं।
  • किसी मूर्ख व्यक्ति के लिए किताबें उतनी ही उपयोगी हैं जितना कि एक अंधे व्यक्ति के लिए आईना।
  • सर्प, नृप, शेर, डंक मारने वाले ततैया, छोटे बच्चे, दूसरों के कुत्तों, और एक मूर्ख: इन सातों को नींद से नहीं उठाना चाहिए।
  • इस बात को व्यक्त मत होने दीजिये कि आपने क्या करने के लिए सोचा है, बुद्धिमानी से इसे रहस्य बनाये रखिये और इस काम को करने के लिए दृढ रहिये।
  • जैसे ही भय आपके करीब आये, उसपर आक्रमण कर उसे नष्ट कर दीजिये।
  • कोई काम शुरू करने से पहले, स्वयम से तीन प्रश्न कीजिये – मैं ये क्यों कर रहा हूँ, इसके परिणाम क्या हो सकते हैं और क्या मैं सफल होऊंगा। और जब गहरई से सोचने पर इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर मिल जायें, तभी आगे बढें।
  • जब तक आपका शरीर स्वस्थ्य और नियंत्रण में है और मृत्यु दूर है, अपनी आत्मा को बचाने कि कोशिश कीजिये; जब मृत्यु सर पर आजायेगी तब आप क्या कर पाएंगे?
  • पहले पाच सालों में अपने बच्चे को बड़े प्यार से रखिये। अगले पांच साल उन्हें डांट-डपट के रखिये। जब वह सोलह साल का हो जाये तो उसके साथ एक मित्र की तरह व्यव्हार करिए। आपके व्यस्क बच्चे ही आपके सबसे अच्छे मित्र हैं।
  • हमें भूत के बारे में पछतावा नहीं करना चाहिए, ना ही भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए; विवेकवान व्यक्ति हमेशा वर्तमान में जीते हैं
  • हर मित्रता के पीछे कोई ना कोई स्वार्थ होता है। ऐसी कोई मित्रता नहीं जिसमे स्वार्थ ना हो। यह कड़वा सच है

  • व्यक्ति अकेले ही पैदा होता है और अकेले ही मर जाता है और वो अपने अच्छे और बुरे कर्मो का फल खुद ही भुगतता है। वह अकेले ही नरक या स्वर्ग जाता है।
  • समय को पहचानना ही मनुष्य के सीखने की सर्वोत्तम कला मानी गई है।
  • फूलों की सुगंध केवल हवा की दिशा में फैलती है, लेकिन एक इंसान की अच्छाई चारों दिशाओं में फैलती है।
  • ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए।
  • एक ही देश के दो शत्रु परस्पर मित्र होते हैं।
  • भगवान मूर्तियों में नहीं है, आपकी अनुभूति आपका इश्वर है, आत्मा आपका मंदिर है।
  • अगर सांप जहरीला ना भी हो तो उसे खुद को जहरीला दिखाना चाहिए।
  • कुशलता का ज्ञान प्राप्त कर श्रेय की प्राप्ति कर सकता है।
  • दूसरों की गलतियों से भी सीख लेनी चाहिए, क्योंकि अपने ही ऊपर प्रयोग करने पर तुम्हारी आयु कम पड़ जाएगी।
  • आपका हमेशा खुश रहना आपके दुश्मनों के लिए सबसे बड़ी सजा है।
  • लोहे को लोहे से ही काटना चाहिए।
  • यदि माता दुष्ट है तो उसे भी त्याग देना चाहिए।
  • सांप को दूध पिलाने से विष ही बढ़ता है, न की अमृत।
  • भूख के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं है।
  • किसी लक्ष्य की सिद्धि में कभी शत्रु का साथ न करें।
  • सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है।
  • जो जिस कार्ये में कुशल हो, उसे उसी कार्ये में लगना चाहिए।
  • शक्तिशाली शत्रु को कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करें।
  • धूर्त व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं।
  • आग में आग नहीं डालनी चाहिए अर्थात् क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए।
  • शासक को स्वयं योग्य बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए।
  • यदि खुद कुबेर भी अपनी आय से अधिक खर्च करने लगे तो वह एक दिन निर्धन हो जायेगा।
  • मूर्खों से अपनी तारीफ सुनने से अच्छा है कि आप किसी बुद्धिमान की डांट सुनें।
  • भविष्य के अन्धकार में छिपे कार्य के लिए श्रेष्ठ मंत्रणा दीपक के समान प्रकाश देने वाली है।
  • पडोसी राज्यों से सन्धियां तथा पारस्परिक व्यवहार का आदान-प्रदान और संबंध विच्छेद आदि का निर्वाह मंत्रिमंडल करता है।
  • कच्चा पात्र कच्चे पात्र से टकराकर टूट जाता है।
  • व्यक्ति को उट-पटांग अथवा गवार वेशभूषा धारण नहीं करनी चाहिए।
  • शराबी व्यक्ति का कोई कार्य पूरा नहीं होता है।
  • बिना उपाय के किए गए कार्य प्रयत्न करने पर भी बचाए नहीं जा सकते, नष्ट हो जाते है।
  • वेश्याएं निर्धनों के साथ नहीं रहतीं, नागरिक दुर्बलों की संगती में नहीं रहते, और पक्षी उस पेड़ पर घोंसला नहीं बनाते जिसपे फल ना हों।
  • अपमानित होके जीने से अच्छा मरना है। मृत्यु तो बस एक क्षण का दुःख देती है, लेकिन अपमान हर दिन जीवन में दुःख लाता है।
  • दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक और महिला की सुन्दरता है।
  • अपने बच्चों को पहले पाँच साल तक खूब प्यार करो, छः साल से पंद्रह साल तक कठोर अनुशासन और संस्कार दो, सोलह साल से उनके साथ मित्रवत व्यवहार करो। आपकी संतति ही आपकी सबसे अच्छी मित्र है।
  • हर मित्रता के पीछे कोई ना कोई स्वार्थ होता है। ऐसी कोई मित्रता नहीं जिसमे स्वार्थ ना हो। यह कड़वा सच है।

चाणक्य के सूत्र

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  • सुखस्य मूलमर्थः ।
  • अर्थस्य मूलं राज्यम् ।
  • राज्यमूलमिन्द्रियजयः ।
  • इन्द्रियजयस्य मूलं विन्यः ।
  • विन्यस्य मूलं वृद्धसेवा ।
  • विनयेन विद्या ।
  • विद्यया योगः ।
  • योगादात्मवत्ता ।
  • आत्मवत्तोत्साहः ।
  • उत्साहात्प्रभावः ।
  • प्रभावात् सिद्धिः ।
  • सिद्धिर्लाभाय ।
  • लाभादर्थः ।
  • अर्थाद्विनयः ।
  • अविनयस्य मूलमहङ्कारः ।
  • वृद्धसेवया विनयो न नश्यति ।
  • असहायस्य कार्याणि न सिद्ध्यन्ति ।
  • मन्त्री श्रेष्ठः ।
  • मन्त्रिणा मन्त्रो रक्ष्यः ।
  • मन्त्ररक्षणात् कार्यसिद्धिः ।
  • अमात्यैः सह मन्त्रयेत् ।
  • मन्त्रिपरिषदि विचारयेत् ।
  • मन्त्रिभिः कृताः कार्याः ।
  • मन्त्रिसंपत् कार्यसंपत् ।
  • मन्त्रभेदो राज्यनाशः ।
  • मन्त्रो नित्यं रहस्यः ।
  • सर्वकार्येषु मन्त्रिणो नियोगः ।
  • अमात्येषु मन्त्रो न नश्यति ।
  • अमात्यैः सह विचारयेत् ।
  • अमात्येषु कार्यसिद्धिः ।
  • अन्योऽन्यं विचारः श्रेयसे ।
  • अन्यस्य विचारो न ग्राह्यः ।
  • कार्याणां कार्यत्वम् ।
  • अहङ्कारात् क्रोधः ।
  • क्रोधात् दुरत्ययो गुरुः ।
  • मित्रैः प्रेम ।
  • मित्रैः प्रवृत्तिः श्रेयसी ।
  • अमात्यैः प्रवृत्तिः श्रेयसी ।
  • अमात्यैः कार्यसिद्धिः ।
  • राज्यं इन्द्रियजयः ।
  • राज्ञः प्रधानं राज्यम् ।
  • आत्मनः प्रधानमायतनम् ।
  • आत्मनः प्रधानं राज्यम् ।
  • शत्रुः मित्रं भवति ।
  • मित्रं शत्रुः भवति ।
  • तेजः (बलं, शक्ति व उत्कर्ष) हि कार्यसाधकम् ।
  • तेजस्विनामेव जयः ।
  • दुर्बलो राजा न दुर्बलो भवति ।
  • बलवान राजा दुर्बल राजा से सन्धि न करे ।
  • बलवान राजा दुर्बल राजा से युद्ध करे ।
  • बलवान राजा दुर्बल राजा को अपनी सेना के साथ युद्ध करने के लिए समर्थ है ।
  • बुद्धिमत् मनुष्य शत्रु को भी मित्र बना लेता है ।
  • शत्रु के विषय की भली-भाँति जानकारी रखना सुरक्षा देता है ।
  • दुर्बल राजा बलवान राजा को आश्रय लेता है ।
  • बलवान राजा दुर्बल राजा का आश्रय लेता है ।
  • आश्रय राजा के समान रहना चाहिए ।
  • आश्रित राजा का आश्रयदाता के प्रति व्यवहार ।
  • मित्रैः राज्ञः सर्वकार्येषु सहयोगः ।
  • मित्रं राज्ञः सर्वकार्येषु सहयोगः ।
  • विजयकामस्तु परेषु दण्डमादिशेत् ।
  • किसी राजा को परस्पर विरोध में डाल देना चाहिए ।
  • इंद्रियवशवर्ती किसी काम को सिद्ध नहीं कर पाता ।
  • इंद्रियजयी विजय प्राप्त करता है ।
  • राज्ञः अविचारेण न नश्यति ।
  • अमात्यो राजा ।
  • राजा अमात्य से मिलकर किसी काम को कर पाता है ।
  • जब समय अनुकूल हो, तब ही शत्रु पर प्रहार करें।
  • सीखने वाला कोई वर्ग, उम्र या सीमा नहीं देखता।
  • वाणी की कठोरता आग की ज्वलन्त से भी अधिक कष्टकर है ।
  • राजा अमात्य से संयुक्त होकर सब काम करने में समर्थ होता है ।
  • शत्रु को वश में करना दंडनीति पर निर्भर करता है ।
  • दंड से ही संतोष बढ़ता है ।
  • दंडनीति के अभाव में मतस्यन्याय होता है ।
  • दंडनीति के कारण ही लोग सरकारी कार्य करने से बचते हैं ।
  • दंडनीति से ही अपनी सुरक्षा होती है ।
  • दंड से ही अपनी सुरक्षा होती है ।
  • दंड का उपयोग प्रजा और शत्रु दोनों से अपनी रक्षा करता है ।
  • दंड का उपयोग भले-भाँति सोच-विचार कर करना चाहिए ।
  • किसी को दुर्बल समझकर उसकी उपेक्षा करना उचित नहीं ।
  • आग दुर्बल नहीं होती अर्थात् दुर्बल राजा भी भारी उत्पात मचा सकता है ।
  • दंड ही व्यवहार का आधार है ।
  • अर्थ ही धर्म और काम का मूल है ।
  • श्रम थोड़ा भी हो, परंतु यदि कार्य सिद्धि हो जाए तो कार्यसिद्धि हो जाती है ।
  • उपयुक्त (सोच-विचार) कार्य की सिद्धि के उपाय ।
  • उपाय (सोच-विचार) के बिना किसी काम को करना कठिन होता है ।
  • पूर्वपक्षे (साध्य) कार्य सिद्धि प्राप्त करता है ।
  • उपयुक्त (सोच-विचार) कार्यसिद्धि सहायक ।
  • भाग्य भी पूर्वपक्षे होता है ।
  • भाग्य के प्रतिकूल होने पर, पूर्वपक्ष में सफलता नहीं मिलती ।
  • भाग्य के प्रतिकूल होने पर, उपयुक्त कार्य असफल होता है ।
  • मित्रस्य कार्ये हि बुद्धिरतः कार्ये तु बुद्धिरतः ।
  • एक कार्य सिद्ध होने के उपरांत, दूसरे कार्य की सिद्धि के लिए प्रयत्न होना चाहिए ।
  • चित्तैकाग्रता (अधिकरुद्धचिः) व्यक्ति कार्य सिद्ध नहीं कर पाता ।
  • हाथ में आए वस्तु के तिरस्कार से बना हुआ कार्य भी विरुद्ध होता है ।
  • दोपहर में सोए हुए व्यक्ति का कार्य सिद्ध नहीं होता ।
  • दुःख और कष्ट सहनेवाला व्यक्ति कार्यसिद्धि में सफल होता है ।
  • समय के साथ चलनेवाला व्यक्ति कार्यसिद्धि में सफल होता है ।
  • किसी काम को फल मिलने पर ही उसका फल और आनंद प्राप्त होता है ।
  • कार्यसिद्धि में धैर्य की आवश्यकता ।
  • देश और काल के ज्ञान से कार्य सिद्धि होती है ।
  • देव का प्रतिकूल होना कार्यसिद्धि में बाधा डालता है ।
  • देश-काल का भली-भाँति विचार करनेवाला व्यक्ति लक्ष्मी प्राप्त करता है ।
  • राजा को काम, दाम आदि सभी उपायों से प्रजा के संबंध में प्रयत्न करना चाहिए ।
  • अविचारणीय व्यक्ति भाग्यशाली होता है ।
  • प्रत्येक वस्तु की परीक्षा - गुण, अनुमान, उपमान और शब्द से करनी चाहिए ।
  • जो जिस कार्य-विषय में कुशल हो, उसे उसी कार्य में नियुक्त करना चाहिए ।
  • उपयुक्त पुरुष कार्य को भी सहज में ही साथ लेता है ।
  • उपयुक्त व्यक्ति कार्य को सहज में ही साथ लेता है ।
  • जो व्यक्ति स्वयं किसी काम को जानता हो, उसे ही नियुक्त करना चाहिए ।
  • शंकाशील व पवित्र आचरण करनेवाले व्यक्ति कार्य में सफल होते हैं ।
  • देव के प्रति आदर और शांति कर्मों का अनुसरण करना चाहिए ।
  • माननीय व्यक्तियों के निराकरण के लिए अपने बुद्धि-कौशल का प्रयोग करना चाहिए ।
  • विपरीत स्थिति में किया गया काम हानिप्रद होता है ।
  • कार्यसिद्धि के इच्छक व्यक्ति को क्रोध छोड़ देना चाहिए ।
  • (उदाहरणार्थ) क्रोध पीने के बदले उसे क्रोध को अपने मुख से बाहर निकाल देना चाहिए ।
  • प्रयत्न न करने पर कार्य में व्यवधान आ सकता है ।
  • देव (भाग्य) को माननेवाले जीवन में सफल नहीं होते ।
  • जो अपने कार्य के विषय में अपनी आवश्यकताओं का पालन-पोषण नहीं कर सकता ।
  • जो अपने कार्य की उपेक्षा करता है वह अनेक दोष प्राप्त करता है ।
  • प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणों से कार्य की परीक्षा करनी चाहिए ।
  • जिस काम के लिए किसी व्यक्ति में प्रयत्न होना चाहिए, उसे ही नियुक्त करना चाहिए ।
  • सोच-विचार करके कार्य करने से निर्मित व्यवस्था स्वीकार्य पाई जाती है ।
  • अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही काम करना चाहिए ।
  • अपनी सामर्थ्य से अधिक काम करनेवाला मूर्ख होता है ।
  • कार्य करने के बाद संतुष्ट व्यक्ति सुख प्राप्त करता है ।
  • अनुद्यमी, यानि आलसी व्यक्ति का कार्य सफल नहीं होता ।
  • गांव के स्वभाव से परिचित व्यक्ति ही उसका सही देख रेख कर सकता है ।
  • दुष्ट लोगों के संबंध अच्छे नहीं होते और वे अपने कार्यों को बिगाड़ देते हैं ।
  • दुष्ट लोगों के संबंध अच्छे नहीं होते ।
  • सरल स्वभाववाला राजा अपनी आश्रित प्रजा की रक्षा करता है ।
  • राजा को प्रजा से बहुत प्रेम करना चाहिए ।
  • राजा का दुख प्रजा का दुख है ।
  • दुर्बल राजा बलवान राजा के समान होता है ।
  • जो सार्वभौमिक रूप से दूसरों का उद्बोधन करता है, वह प्रकाश की ओर बढ़ता है ।
  • आलसी व्यक्ति दूसरों का नाश करता है ।
  • सत्य, शील और ज्ञान व्यक्ति को महान बनाता है ।
  • विश्वास व्यक्ति को सिद्धि देता है ।
  • अविश्वास से कार्य नहीं सिद्ध होता ।
  • अविश्वास व्यक्ति को सिद्धि नहीं देता ।
  • संसार रहित व्यक्ति सिद्धि प्राप्त करता है ।
  • दूसरे की संपत्ति को नहीं लेना चाहिए ।
  • दान करना धर्म है ।
  • धन कमाने का सबसे अच्छा उपाय व्यापार है ।
  • संतोषी व्यक्ति सुख प्राप्त करता है ।
  • संतोषी व्यक्ति का कार्य सिद्ध होता है ।
  • झूठ बोलने से संतोष नहीं होता ।
  • झूठ बोलने से दुःख होता है ।
  • सदाचार का परिणाम सुख है ।
  • बिना धर्म के किया गया काम सुख नहीं देता ।
  • गुरु को प्रणाम करना चाहिए ।
  • गुरु की सेवा से ही विद्या प्राप्त होती है ।
  • गुरु को प्रसन्न करना चाहिए ।
  • सत्य ही धर्म का मूल है ।
  • किसी का विश्वास भंग नहीं करना चाहिए ।
  • किसी का विश्वास भंग करनेवाला अधर्म करता है ।
  • मित्र से वैर दुःख देता है ।
  • शत्रु के दुख से सुख मिलता है ।
  • अपने दुर्बलता को छिपाकर रखना चाहिए ।
  • अपने वास में आए हुए शत्रु का नाश करना चाहिए ।
  • स्त्रियों की दुर्बलता से दुःख होता है ।
  • सज्जनों द्वारा किया गया अपमान अथवा दुर्जनों द्वारा किया गया सत्कार दोनों से दुःख होता है ।
  • अनेक कामों में सफलता प्राप्त करने वाला व्यक्ति धैर्यवान होता है ।
  • राजा को आलस और क्रोध आदि महत्वपूर्ण कार्य में बाधक होते हैं ।
  • लड़ाई-झगड़े की प्रवृत्ति मूर्खों का लक्षण है ।
  • मूर्खों के साथ विवाद नहीं करना चाहिए ।
  • मूर्खों के साथ विवाद करना दुःख देता है ।
  • मूर्खों से लोहा नहीं काटना चाहिए ।
  • बुद्धिमान व्यक्ति मूर्खों से विवाद नहीं करता ।
  • धर्म से ही संतोष होता है ।
  • दया और दान का मूल धर्म है ।
  • दया से ही धर्म और अर्थ सिद्ध होता है ।
  • व्यक्ति धर्म पालन से ही जीतता है ।
  • मृत्यु भी धर्म पालन करनेवाले व्यक्ति का कुछ नहीं कर सकती ।
  • धर्म से ही मृत्यु पर विजय मिलती है ।
  • धर्म-विरुद्ध पाप का प्रसार अधर्म का कारण है ।
  • अधर्म से ही विनाश होता है ।
  • अधर्म विनाश का कारण है ।
  • दुष्टों के रहस्य (गुप्त बातों) को कभी नहीं सुनना चाहिए ।
  • कठोर होना अधर्म है ।
  • कठोर व्यक्ति अधर्म करता है ।
  • अपनों से शत्रुता दुःख देती है ।
  • झूठ बोलना अधर्म है ।
  • सत्य ही अधर्म का नाश करता है ।
  • दूसरों पर विश्वास नहीं करना चाहिए ।
  • दूसरों पर विश्वास करनेवाला व्यक्ति मूर्ख होता है ।
  • बाह्य व्यवहार में सावधान रहना चाहिए ।
  • अविश्वास हानिकारक होता है ।
  • अज्ञात विषय में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए ।
  • उपयुक्त समय पर किया गया काम सफलता देता है ।
  • उच्च कुल में उत्पन्न व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए ।
  • नीच व्यक्ति का अपमान नहीं करना चाहिए ।
  • आलसी व्यक्ति का कार्य सिद्ध नहीं होता ।
  • व्यक्ति को उसकी अवस्था के अनुसार ही सम्मान देना चाहिए ।
  • अपने स्थान पर स्थिर रहने पर ही आदर मिलता है ।
  • मनुष्य का अहङ्कार कभी नहीं करना चाहिए ।
  • मर्यादा का अतिक्रमण कभी नहीं करना चाहिए ।
  • ऋण दुःख का मूल है ।
  • ऋण (निवारण तथा सुखप्राप्ति) स्वयं ही दूसरा नहीं है ।
  • स्त्री का मिलना कठिन होता है ।
  • सभी प्रकार के कार्यों में धन्य का भाव श्रेष्ठ होता है ।
  • आलसी व्यक्ति ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता ।
  • काम में आसक्त पुरुष कार्य सिद्ध नहीं करता ।
  • फूल-फल की इच्छा करनेवाला व्यक्ति सुख को कभी नहीं छोड़ता ।
  • बिना धन के कोई काम करने की सोचना बालू में तेल निकालने के समान है ।
  • महत्वाकांक्षी को कभी उपहास नहीं करना चाहिए ।
  • कार्य संपन्न करते समय, लक्ष्य पूर्ण होने पर सिद्धि मिलती है ।
  • लक्ष्य पूर्ण होने पर सिद्धि मिलती है ।
  • पति के अधीन रहनेवाली स्त्री ही कार्य में सफल होती है ।
  • गुरु के अधीन रहने वाला अर्थात आज्ञाकारी शिष्य ही कार्य में सफल होता है ।
  • पिता का आज्ञाकारी ही पुत्र कहलाता है ।
  • आज्ञाकारी व्यक्ति सफलता प्राप्त करता है ।
  • स्वामी की आज्ञा का निष्फल भाव से पालन करनेवाला ही सच्चा सेवक है ।
  • माता पिता बालक को जितना देती है उतना दूसरा नहीं देता ।
  • स्वामी से विरोध नहीं करना चाहिए ।
  • स्वामी से विरोध करनेवाला दुःख प्राप्त करता है ।
  • अधिक समय साथ-साथ रहने से मन-मुटाव होता है ।
  • क्रोध न करनेवाला व्यक्ति संतोष प्राप्त करता है ।
  • अपकारी व्यक्ति पर क्रोध करने से पहले अपने को शांत करना चाहिए ।
  • ऐसे कोई कार्य नहीं होता, जिसमें परेशानी न हो ।
  • उत्तम मनुष्य होने के कारण शुभ कार्य करने में संकोच नहीं करना चाहिए ।
  • व्यवहार से ही व्यक्ति का मूल्यांकन होता है ।
  • स्त्री कोमल होती है ।
  • स्त्री कुशल होती है, उसे उसके कार्य के योग्य होता है ।
  • जो विश्वसनीय हो, उस पर विश्वास करना चाहिए ।
  • प्रमादी पर विश्वास नहीं करना चाहिए ।
  • आलसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए ।
  • दानशील व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए ।
  • वेदों का ज्ञान ब्राह्मणों का उत्तम आभूषण है ।
  • धर्म (कर्तव्य-पालन) सभी प्राणियों का उत्तम आभूषण है ।
  • उपदेशों से युक्त देश ही विद्या के लिए उपयुक्त स्थान है ।
  • राजा द्वारा दिया गया अपना निवास स्थान ही रहने योग्य होता है ।
  • राजा का क्रोध शत्रु को भी नष्ट कर देता है ।
  • गुरु व राजा के पास जाने समय कुछ न कुछ भेंट रखना चाहिए ।
  • रहने वाले पर विश्वास नहीं करना चाहिए ।
  • राजपरिवार में रहने वाले व्यक्तियों को कभी अपमान नहीं करना चाहिए ।
  • राजपरिवार से संबंध रखना चाहिए ।
  • राजा की आज्ञा और उपदेशों का पालन करना चाहिए ।
  • पुत्र हित में सब कुछ करना चाहिए ।
  • पुत्र से बढ़कर कोई मित्र नहीं होता ।
  • स्त्रियों के साथ शत्रुता नहीं करनी चाहिए ।
  • स्त्रियों के साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए ।
  • पुत्रियों के साथ शत्रुता नहीं करनी चाहिए ।
  • पुत्रियों के साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए ।
  • दास का कार्य स्वामी की सेवा करना है ।
  • दान पुण्य का फल है ।
  • उपकार का बदला उपकार से चुकाना चाहिए ।
  • दुष्टों की कमी अनिष्ट नहीं करती ।
  • शत्रु के समान दुष्ट कोई नहीं ।
  • नीच व्यक्ति के साथ संबंध नहीं करना चाहिए ।
  • जल (नदी, नाद तथा सरोवर आदि) में कभी मूत्र-विसर्जन नहीं करना चाहिए ।
  • जल में मल-मूत्र त्याग नहीं करना चाहिए ।
  • मन का जैसा शरीर (हृष्ट-पुष्ट, सुंदर-कुरूप तथा छोटा-मोटा) होता है, वैसा ही ज्ञान अर्थात मस्तिष्क का विकास होता है ।
  • बुद्धि के अनुरूप ही मनुष्य श्रेष्ठता प्राप्त करता है ।
  • आग में आग नहीं डालनी चाहिए अर्थात् क्रोधी व्यक्ति को और अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए ।
  • तपस्वी पूजनीय होते हैं ।
  • अनशन से भूख लगती है ।
  • अनशन से प्यास लगती है ।
  • वेदज्ञान धर्म का मूल है ।
  • धर्म का आचरण सिद्धि देता है ।
  • सत्य एवं मधुर वाणी स्वर्ग की सीढ़ी है ।
  • सत्य से बढ़कर कोई तप नहीं ।
  • सत्य ही स्वर्ग-प्राप्ति का आधार है ।
  • सत्य बोलने से ही देवता प्रसन्न होते हैं ।
  • असत्य भाषण से कोई दुःख प्राप्त नहीं ।
  • अपने गुरु के आगे झूठ नहीं बोलना चाहिए ।
  • दुष्ट व्यक्ति का कोई मित्र नहीं होता ।
  • दुष्ट व्यक्ति जीवन-निर्वाह मुश्किल होता है ।
  • दानवीर सबसे बड़ा वीर है ।
  • गुरु, देवता और ब्राह्मणों में सेवा अर्थात् श्रद्धा-सम्मान का भाव रखना मानवता का आभूषण है ।
  • निंदक (निंदा करनेवाला) पाप का आभूषण है ।
  • कुलहीन व्यक्ति की अपेक्षा अकुलीन व्यक्ति श्रेष्ठ है ।
  • मंदाचार से आयु व यश में वृद्धि होती है ।
  • प्रिय बोलनेवाला, परंतु अनिष्ट कहनेवाला कभी नहीं बोलना चाहिए ।
  • अनेक कार्यों को सिद्ध करनेवाला व्यक्ति ही एक व्यक्ति का अनुमान कर सकता है ।
  • दुर्जनों के साथ अपना भाग्य नष्ट नहीं करना चाहिए ।
  • जीवन में सफलता प्राप्त करनेवाले पुरुष अच्छे मित्र के साथ संबंध नहीं जोड़ना चाहिए ।
  • ज्ञान, शत्रु व रोग को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए ।
  • अपने लिए कष्टकारी मार्ग पर चलना ही मनुष्य के लिए उत्तम है ।
  • याचकों से कभी घृणा नहीं करनी चाहिए ।
  • मंदाचार से कार्य सिद्ध नहीं होता ।
  • प्रमादी व्यक्ति कार्य सिद्ध नहीं करता ।
  • राजा गुरु से दूर नहीं रहना चाहिए ।
  • वेद, यजुर्वेद व सामवेद का ज्ञान पाप का नाश करता है ।
  • स्वर्ग-प्राप्ति से बढ़कर कोई दुःख नहीं ।
  • व्यक्ति शरीर त्यागने के बाद दुःख प्राप्त करता है ।
  • रोगी मनुष्य की चिकित्सा सुख देती है ।
  • दुष्ट कुल का कलंक होता है ।
  • दुष्ट पुत्र दुःख देता है ।
  • दुष्ट स्त्री दुःख देती है ।
  • दुष्ट मित्र दुःख देता है ।
  • दुष्ट सेवक दुःख देता है ।
  • दुष्ट संबंधी दुःख देते हैं ।
  • पति की आज्ञा का पालन करनेवाली स्त्री इस लोक में सुख और परलोक में सद्गति प्राप्त करती है ।
  • अतिथियों की सेवा सिद्धि देती है ।
  • न्याय से धर्म होता है ।
  • पापी अपने पापों का फल भोगता है ।
  • मनुष्य का व्यवहार उसके गुण को प्रकट करता है ।
  • देवों का कार्य मनुष्यों द्वारा किया जाता है ।
  • चोरों व सरकारी अधिकारियों से अपनी रक्षा करनी चाहिए ।
  • अपनी प्रजा के दुःख को सुननेवाला राजा उनकी रक्षा करता है ।
  • न्यायशील राजा इस लोक में सुख और परलोक में सद्गति प्राप्त करता है ।
  • अहिंसा धर्म की कसौटी है ।
  • सज्जन अपने शरीर को दूसरों के लिए अर्पित करता है ।
  • सभी प्राणियों को संतोष प्राप्त होता है ।
  • ज्ञानी पुरुष का संतोष कभी नष्ट नहीं होता ।
  • ज्ञान के दीपक से सांसारिक भय नष्ट हो जाता है ।
  • शरीर व पुष्पों का आधार जड़ है ।
  • जन्म और मरण दुःख देता है ।
  • बुद्धिमान पुरुष जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति के लिए प्रयत्न करता है ।

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