• अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥
यह मेरा है, वह तेरा है, ऐसा छोटे चिन्तन वाले कहते हैं; उदार चरित्र और चिन्तन वालों के लिए तो समस्त पृथ्वी ही एक परिवार है।
  • अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्॥
अट्ठारह पुराणों में व्यास जी ने (केवल) दो बातें कही हैं- परोपकार ही पुण्य है और दूसरों को दुःख पहुंचाना सबसे पड़ा पाप।
  • मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत्।
आत्मवत् सर्वभूतेषु य पश्यन्ति स पण्डितः॥
दूसरे की स्त्रियों को माता के समान, दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले के समान, और संसार के सभी प्राणियों को अपने समान जो देखता और मानता है, वही विद्वान है, पण्डित है।
  • सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चितदुःखभाग्भवेत्॥
सभी सुखी हों, सभी निरोग हों, सबाका कल्याण हो, कोई दुख का भागी न हो।

वेदों से सम्पादन

  • अज्येष्ठा सो अकनिष्ठा स एते सं भ्रातरो वा वृधुः सौभागाय। -- ऋग्वेद
हम सब भाई-भाई हैं। न कोई बड़ा है और न कोई छोटा है। सौभाग्य के लिए हम सब परस्पर मिल कर उन्नति करें।
  • मित्रस्य चक्षुषा मा सर्वाणि भूतानि समीक्षान्ताम्। मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे। मित्रस्य चक्षुसा समीक्षामहे। -- यजुर्वेद
मुझे प्राणिमात्र मित्र की दृष्टि से देखें (कोई प्राणी मुजे द्वेष न करे, वे मुझे मारें नहीं)। (इसी प्रकार) मैं भी सभी प्राणियों को मित्र की दृष्टि से देखूँ। मित्र की आँख से हम सब एक-दूसरे को देखें।[१]
  • सर्व भूतेषु चात्माने ततो न विचिकिन्सति।
हे मनुष्य! तू सब प्राणियों में अपनी आत्मा को देख और सबकी आत्मा को अपने आत्मा के समान समझ।
  • कृण्वन्तो विश्वमार्यम्।
पूरे विश्व को आर्य (श्रेष्ठ) बनाओ।
  • जीवास्थ जीव्यासम। -- अथर्ववेद
स्वयं जीवो और दूसरों को जीने दो।
  • यत्र विश्वं भवत्येकनीडम्। -- यजुर्वेद
जहाँ सारा विश्व एक 'घोसला' हो जाता है।
  • सत्यमेव जयते नानृतम्।
सत्य की सदैव जीत होती है, झूठ की नहीं।
भूमि हमारी माता है और हम सब उसकी सन्तान हैं।

सन्दर्भ सम्पादन

  1. सब परस्पर मित्रदृष्टि से देखें ( रामनाथ विद्यालंकार)

इन्हें भी देखें सम्पादन