प्राणायाम

"प्राणायाम से जीवन को साधा जा सकता है,अतः प्रणायाम करें ,और मानसिक शारीरिक तथा आध्यात्मिक रूप से स

प्राणायाम शब्द, 'प्राण' तथा 'आयाम' दो शब्दों की सन्धि से बनता है। प्राण जीवनी शक्ति है और आयाम उसका ठहराव या पड़ाव है। हमारे श्वास-प्रश्वास की अनैच्छिक क्रिया निरन्तर अनवरत चल रही है। इस अनैच्छिक क्रिया को अपने वश में करके ऐच्छिक बना लेने पर श्वास का पूरक करके कुम्भक करना और फिर इच्छानुसार रेचक करना प्राणायाम कहलाता है। प्राण वायु का शुद्ध व सात्विक अंश है। यदि प्राण शब्द का विवेचन करें तो प्राण शब्द (प्र+अन+अच) का अर्थ गति, कम्पन, गमन, प्रकृष्टता आदि के रूप में ग्रहण किया जाता है। [१]

उक्तियाँ सम्पादन

  • तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः ॥ -- पातञ्जल योगसूत्र 2/49 [२]
आसन के स्थिर हो जाने पर श्वास और प्रश्वास की गति का रुक जाना प्राणायाम है।
  • प्राणापान समायोगः प्राणायाम इतीरितः ।
प्राणायाम इति प्रोक्तो रेचक पूरक कुम्भकैः ॥ -- योगसूत्र 6/2
प्राण और अपान वायु के मिलाने को प्राणायाम कहते हैं। प्राणायाम कहने से रेचक, पूरक और कुम्भक की क्रिया समझी जाती है।
  • बाह्याभ्यनन्तरस्तम्भवृत्तिर्देशकालसंख्याभिः परिदृष्टो दीर्घसूक्ष्मः ॥ -- योगसूत्र 2/50
बाह्माभ्यन्तरविषयाक्षेपी चतुर्थः। -- योगसूत्र 2/51
महर्षि पतंजलि के अनुसार प्राणायाम के चार भेद हैं - (1) बाह्यवृत्ति प्राणायाम (2) आशभ्यन्तरवृत्ति प्राणायाम (3) स्तम्भवृत्ति प्राणायाम (4) बाह्याभ्यन्तर विषयाक्षेपी प्राणायाम
  • आसन पर विजय होने पर श्वास या बाह्य वायु का आगमन तथा प्रश्वास या वायु का निःसारण, इन दोनों गतियों का जो विच्छेद है अर्थात उभय भाव है, वही प्राणायाम है। -- महर्षि व्यास
  • अपाने जुहवति प्राणं प्राणेऽपानं तथा परे प्राणापानगती रूदध्वा प्राणायामः परायणः ॥ -- श्रीमद्भगवतगीता 4/29
अपान वायु में प्राणवायु का हवन, प्राणवायु में अपान वायु का हवन या प्राण व अपान की गति का निरोध प्राणायाम है।
  • दहन्ते ध्मायमानानां धातूनां हि यथा मलाः ।
तथेन्द्रियाणां दहन्ते दोषाः प्राणस्य निग्रहात् ॥ -- मनुस्मृति 6/71
जिस प्रकार तप शरीर व इन्द्रियों के दोषों को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार प्राणायाम शरीर व इन्द्रिय के दोषों का नाश करके शुद्ध चैतन्य स्वरूप की प्राप्ति करवाने में समर्थ है।
  • निरोधः सर्ववृतीनां प्राणायाम: ॥ -- त्रिशिखब्राहमणोपनिषद
अर्थात सभी प्रकार की वृतियों के निरोध को प्राणायाम कहा गया है।
  • जिस प्रकार सोने को तपाने से उसके मल निकल जाते है उसी प्रकार इन्द्रियों के विकार प्राणायाम से जलकर नष्ट हो जाते हैं। -- अमृतनादोपनिषद
  • चले वाते चलं चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत्
योगी स्थाणुत्वमाप्नोति ततो वायुं निरोधयेत्॥
प्राणों के चलायमान होने पर चित्त भी चलायमान हो जाता है और प्राणों के निश्चल होने पर मन भी स्वत: निश्चल हो जाता है और योगी स्थाणु हो जाता है। अतः योगी को श्वांसों का नियंत्रण करना चाहिये।
  • यावद्वायुः स्थितो देहे तावज्जीवनमुच्यते।
मरणं तस्य निष्क्रान्तिः ततो वायुं निरोधयेत् ॥
जब तक शरीर में वायु है तब तक जीवन है। वायु का निष्क्रमण (निकलना) ही मरण है। अतः वायु का निरोध करना चाहिये।
  • प्राणायामं ततः कुर्यात् नित्यं सात्विकया धिया ।
यथा सुषुम्ना नाडीस्थाः मलाः शुद्धिं प्रयान्ति हि॥ -- हठयोगप्रदीपिका
मन की सात्विक अवस्था के साथ नित्य प्राणायाम करना चाहिये जिससे सुषुम्ना नाड़ी के मल दूर हो जाते हैं और वह शुद्ध हो जाती है।
  • सूर्यभेदनमुज्जायी सीत्कारीशीतली तथा।
भस्त्रिका भ्रामरी मूर्च्छा प्लाविनीत्यष्टकुम्भका:॥ -- हठयोगप्रदीपिका 2/ 44)
हठयोग प्रदीपिका के अनुसार प्राणायाम (कुम्भक) आठ प्रकार के हैं- सूर्यभेदन, उज्जायी, सीत्कारी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्च्छा व प्लाविनी। इनके अतिरिक्त शरीरस्थ बहत्तर हजार नाड़ियों की शुद्धि हेतु उन्होंने नाडी शोधन प्राणायाम भी बताया है जिसे इन प्राणायामों से पूर्व करना बताया गया है।
  • संप्रवक्ष्यामि प्राणायामस्य सद्विधिम यस्य साधनमात्रेण देवतुल्यो भवेन्नरः। -- घेरण्डसंहिता 5/1
(महर्षि घेरण्ड कहते हैं कि) अब मैं प्राणायाम की विधि बताता हूँ जिसका साधन करने मात्र से मनुष्य देवता के समान हो जाता है।
  • सहितः सूर्यभेदश्व उज्जायी शीतली तथा।
भस्त्रिका भ्रामरी मूर्च्छा केवली चाष्टकुम्भकाः ॥ -- घेरण्डसंहिता 5/ 46
सहित, सूर्यभेदन, उज्जायी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्च्छा तथा केवली - ये आठ प्राणायाम (कुम्भक) हैं।
  • प्राणायामस्तथा ध्यानं प्रत्याहारोऽथ धारणा।
तर्कश्चैत्र समाधिश्च षडङ्गो योग उच्यते ॥ -- तंत्र विद्या आगम
  • प्राणायाम दूति प्राणस्य स्थिरता ॥ -- गोरक्षनाथ जी, सिद्धसिद्धान्तपद्धति में, 2/35
अर्थात शरीर की नाडियों में प्रयासपूर्वक प्राण के प्रवाह को रोकना प्राणायाम है।
  • आसनेन रुजो हन्ति प्राणायामेन पातकं -- गोरख संहिता, दूसरा शतक
  • प्राणायानसमायोगः प्रोक्तो रेचपूरककुम्भकैः ॥ -- वशिष्ठ संहिता 3/2
प्राण और अपान का उचित संयोग प्राणायाम कहा जाता है। पूरक, कुम्भक एवं रेचक इन तीनों से प्राणायाम बनता है।
  • प्राणायाम इति प्रोक्ती रेचकपूरककुम्भकैः ॥ -- जाबाल दर्शनोपनिषद 6/1/2
रेचक, पूरक एवं कुम्भक क्रियाओं के द्वारा जो प्राण संयमित किया जाता है,वही प्राणायाम है।
  • निरोधः सर्ववृत्तीनां प्राणायामः । -- त्रिशिखिब्राहाणोपनिषद 12/30
सभी प्रकार के वृत्तियों के निरोध को प्राणायाम कहा गया है।
  • तस्मादेकमेव व्रतं चरेत्प्राण्याच्चैवापान्याच्च । -- बृहदारण्यकोपनिषद्
उसे एक व्रत करना चाहिये, यथा सांस लेना तथा सांस छोड़ना।
  • बाहर की वायु का नासिका द्वारा अंदर प्रवेश करना श्वास कहलाता है। कोष्ठ स्थित वायु का नासिका द्वारा बाहर निकलना प्रश्वास कहलाता है। श्वास प्रश्वास की गतियों का प्रवाह रेचक, पूरक और कुंभक द्वारा बाह्याभ्यन्तर दोनों स्थानों पर रोकना प्राणायाम कहलाता है। -- ओमानन्द तीर्थ
  • प्राणायाम वह माध्यम है ,जिसके द्वारा योगी अपने छोटे से शरीर में समस्त ब्रह्माण्ड के जीवन को अनुभव करने का प्रयास करता है तथा सृष्टि की समस्त शक्तियाँ प्राप्त कर पूर्णता का प्रयत्न करता है। -- स्वामी शिवानन्द
  • शरीरस्थ जीवनी शक्ति को वश में लाना प्राणायाम कहलाता है। -- स्वामी विवेकानन्द


सन्दर्भ सम्पादन

इन्हें भी देखें सम्पादन