• मध्विव मन्यते बालो यावत् पापं न पच्यते।
यदा च पच्यते पापं दुःखं चाथ निगच्छति॥
जब तक पाप सम्पूर्ण रूप से फलित नहीं होता (अर्थात् जब तक पाप का घडा भर नहीं जाता) तब तक वह पाप कर्म मीठा लगता है। किन्तु पूर्ण रूपसे फलित होने के पश्चात् मनुष्य को उसके कटु परिणाम सहन करने ही पड़ते हैं।
  • एकः पापानि कुरुते फलं भुङ्क्ते महाजनः ।
भोक्तारो विप्रमुच्यन्ते कर्ता दोषेण लिप्यते॥
मनुष्य अकेला पाप करता है और बहुत से लोग उसका फल (आनन्द) उठाते हैं। भोग करने उठाने वाले तो बच जाते हैं ; पर पाप करने वाला दोष का भागी होता है।[१]
  • दुष्कृतं हि मनुष्याणां अन्नमाश्रित्य तिष्ठति।
अश्नाति यो हि यस्यान्नं स तस्याश्नाति किल्बिषम्॥
मनुष्य के दुष्कृत्य या पाप उसके अन्न में रहते हैं। जो जिसका अन्न खाता है। वह उसके पाप को भी खाता है।
  • त्यजेत् क्षुधार्ता जननी स्वपुत्रं खादेत् क्षुधार्ता भुजगी स्वमण्डम् ।
बुभुक्षितः किं न करोति पापं क्षीणा जना निष्करूणा भवन्ति ॥
भूख से व्याकुल माता अपने पुत्र का त्याग करेगी ; भूख से व्याकुल साँप अपने अण्डे खा लेगा। भूखा कौन सा पाप नहीं कर सकता? क्षीण लोग निर्दय बन जाते हैं।
  • लोभः पापस्य कारणम्
लोभ, पाप का कारण है।
  • तुलसी पूरब पाप तें हरि चर्चा न सुहाय ।
कै ऊँघे कै उठ चले कै दे बात चलाय ॥ -- तुलसीदास
पूर्व के पाप के कारण ह्रि चर्चा च्छी नहीं लगती। वे या तो सत्संग में बैठे बैठे ऊँघने लगते हैं या किसी से लड़ाई झगड़ा कर बैठते हैं; अथवा फिर सत्संग में रुचि न लगने के कारण उठकर घर को चल देते हैं।
  • तात तीनि अति प्रबल खल काम क्रोध अरू लोभ।
मुनि बिग्यान धाम मन करहिं निमिष महुँ छोभ ॥ -- रामचरितमानस
भावार्थ:- हे तात! काम, क्रोध और लोभ - ये तीन दुष्ट बड़े ही बलवान हैं। ये विज्ञानसम्पन्न मुनि के मन में भी क्षण भर में क्षोभ उत्पन्न कर देते हैं।
  • काम बात कफ लोभ अपारा।
क्रोध पित्त नित छाती जारा॥ -- रामचरितमानस
काम वात है। लोभ अपार कफ है। क्रोध पित्त है जो अपनी ही छाती को जलाता है।
  • ‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान।
पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥
गोस्वामी जी कहते हैं कि शरीर मानो खेत है, मन मानो किसान है। जिसमें यह किसान पाप और पुण्य रूपी दो प्रकार के बीजों को बोता है। जैसे बीज बोएगा वैसे ही इसे अंत में फल काटने को मिलेंगे। भाव यह है कि यदि मनुष्य शुभ कर्म करेगा तो उसे शुभ फल मिलेंगे और यदि पाप कर्म करेगा तो उसका फल भी बुरा ही मिलेगा।
  • समर शेष है , नहीं पाप का भागी केवल व्याध ।
जो तटस्थ हैं , समय लिखेगा उनके भी अपराध ॥ -- रामधारी सिंह 'दिनकर'
  • पृथ्वी हर आदमी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन हर आदमी के लालच को नहीं। -- महात्मा गांधी
  • लालच के अलावा और कुछ भी हमें कमजोर नहीं बनाता। -- थॉमस हैरिस
  • लालच कितना विनाशकारी है! यह सब कुछ नष्ट कर देता है। -- एर्था किट
  • धन की स्वस्थ इच्छा लोभ नहीं है। यह जीवन की इच्छा है। -- जेन सिंसरियो
  • लालच एक छोटे मुंह के साथ एक मोटा दानव है और आप इसे जो भी खिलाते हैं वह कभी भी पर्याप्त नहीं होता है। -- जैनविलम वान डी वार्मिंग
  • यहाँ जीवन को प्यार करने और इसके लिए लालची होने के बीच एक बहुत ही महीन रेखा है। -- माया एंजेलो
  • एक लालची व्यक्ति और एक कंगाल, व्यावहारिक रूप से समान ही हैं। -- स्विस कहावत
  • तीन महान शक्तियां दुनिया पर राज करती हैं; मूर्खता, भय, और लालच। -- अल्बर्ट आइंस्टीन
  • जब इंसान के अंदर लालच का जन्म होता है तो उसके सुख और संतुष्टि को खत्म कर देता हैं.
  • लालच पर बना एक घर लंबे समय तक नहीं रह सकता है। -- एडवर्ड एबे
  • लालच से अधर्म बढ़ता है और इसके परिणामस्वरूप लाभ कम हो सकता है। -- जीन रोडडेनबेरी
  • लालच अन्याय का आविष्कारक है। -- जूलियन कैसाब्लांका
  • एक बुद्धिमान व्यक्ति के सिर में पैसा होना चाहिए, उसके हृदय में नहीं। -- जोनाथन स्विफ़्ट
  • वो जो एक दिन में अमीर बनना चाहता है उसे एक साल में फांसी पर लटका दिया जायेगा। -- लिओनार्डॉ डा विन्सी
  • लालच के लिए सम्पूर्ण प्रकृति भी बहुत कम है। -- लुसियस अन्नासुस सेनेका
  • लालच सबसे बुरी वस्तु है। -- ब्रूस ग्रोबबेलर
  • लालच कोई वित्तीय मुद्दा नहीं है। यह दिल का मसला है। -- एंडी स्टैनली
  • अज्ञानी मन, अपने असीम दुःख, जुनून और बुराइयों के साथ लालच, क्रोध, और भ्रम नामक तीनों जहरों में निहित है। -- बोधिधर्म
  • नेतृत्व दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक विशेषाधिकार है। यह व्यक्तिगत लालच को संतुष्ट करने का अवसर नहीं है। -- मवि किबाकी

इन्हें भी देखें सम्पादन

सन्दर्भ सम्पादन