भोजन और भोजनशक्ति, रतिशक्ति और सुन्दर स्त्री, वैभव और दानशक्ति - ये अल्प तप के फल नहीं हैं।
एकतः क्रतवः सर्वे सहस्त्रवरदक्षिणा ।
अन्यतो रोगभीतानां प्रााणिनां प्रााणरक्षणम् ॥
एक ओर सब को अच्छी दक्षिणा दे कर विधिपूर्वक किया गया यज्ञ कर्म तथा दूसरी ओर दुःखी और रोग से पीड़ित प्राणियों के प्राण की रक्षा करना - ये दोनों ही कर्म एक जैसे (पुण्यप्रद) हैं।
तुलसीदास कहते हैं कि हमारा शरीर एक खेत है और मन किसान है तथा पाप व पुण्य दोनों बीज हैं। इस खेत में जिस प्रकार का बीज बो कर खेती होती है, वैसी फसल प्राप्त होती है।