पृथ्वी

सौर मण्डल में तीसरे नम्बर का नीला ग्रह
(धरती से अनुप्रेषित)
  • ओम् विश्वम्भरा वसुधानि प्रतिष्ठा हिरन्यवक्षा जगतः निवेशनी I
वैश्वानरं विभ्रती भूमिः अग्निं इन्द्र ऋषभाः द्रविणे नः दधातु ॥ -- अथर्ववेद १२/१/६
हे वसुंधरा ! माँ वसुंधरा !
कितना तुमने है धीर धरा !
धारण करती इस सृष्टि को
सब पर करती धन वृष्टि को
चलती रहती पर ना हिलती
तू है कितनी गंभीर धरा !
तेरे अन्दर सोना चाँदी
जैसे सांसे भरती छाती
सारे प्राणी , कहते वाणी
सुख दे माता , दे प्यार तेरा !
  • समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ॥
हे पृथ्वी माँ, समुद्र आपके वस्त्र हैं और पर्वत आपके वक्षस्थल हैं। आप विष्णु पत्नी हैं, मैं आपको नम्स्कार करता हूँ और चलते समय मेरे चरणों के स्पर्श आपको होंगे कृपया मेरी इस धृष्टता को क्षमा करें !
  • विशाल ब्रह्मांडीय अखाड़े में पृथ्वी एक बहुत छोटा सा मंच है। -- कार्ल सागन
  • पृथ्वी हमारी नहीं, हम पृथ्वी के हैं। -- चीफ सीयेटेल
  • पृथ्वी सभी मनुष्यों की ज़रुरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है, लेकिन लालच पूरा करने के लिए नहीं। -- महात्मा गाँधी
  • पृथ्वी स्वर्ग से भरी हुई है… लेकिन यह केवल वही देख पाता है जो अपने जूते उतारता है। -- एलिज़ाबेथ बैरेट ब्राउनिंग
  • ये मत भूलो की धरती तुम्हारे पैरों को महसूस करके खुश होती है और हवा तुम्हारे बालों से खेलना चाहती है। -- खलील जिब्रान
  • हज़ारों थके, अचंभित, अति सभ्य लोग अब ये जानने लगे हैं कि पहाड़ों पर जाना घर जाना है और जंगल एक आवश्यकता है। -- जॉन मुइर
  • एक अच्छे घर का क्या उपयोग है, यदि आपके पास इसे बनाने के लिए एक सहनशील ग्रह नहीं है। -- हेनरी डेविड थोरो
  • हमारी ये अपेक्षा कि पृथ्वी स्वर्ग जैसा होना चाहिए, पृथ्वी को नरक जैसा अनुभव करा रहा है। -- चक पल्ह्न्युक
  • एक बार मेरे एक दोस्त ने मुझे एक पोस्ट कार्ड भेजा जिस पर अन्तरिक्ष से ली हुई पूरे पृथ्वी की फोटो थी। पीछे लिखा था, “काश तुम यहाँ होते”। -- स्टीवन राईट
  • तुम पृथ्वी से जो लेते हो, उसे वापस कर देना चाहिए। यही प्रकृति का तरीका है। -- क्रिस डी लेसी
  • पश्चिमी सभ्यता इस ग्रह के सिर पर तानी एक भरी हुई बंदूक है। -- टेरेंस मैककेना
  • हमें यह ग्रह हमारे पूर्वजों से उत्तराधिकार में नहीं मिला, हम इसे अपने बच्चों से उधार में लेते हैं। -- अमेरिकी कहावत
  • मनुष्य ही इस पृथ्वी पर एक मात्र प्राणी है जो अपने बच्चों को घर वापस आने की इज़ाज़त देता है। -- बिल कोस्बी
  • कमजोरों को स्वर्ग पर शाशन करने दो। जो मज़बूत हैं वे पृथ्वी पर शाशन करें। -- जेनिफर अर्मीनट्राउट
  • हर कोई पृथ्वी को बचाना चाहता है; कोई अपनी माँ को खाना बनाने में मदद नहीं करना चाहता। -- पी. जे . ओ’ रुर्के
  • भगवान् ने पृथ्वी पर स्वर्ग बनाया लेकिन इंसान ने नरक। -- संतोष कलवार
  • मैं पृथ्वी देख रहा हूँ! यह बहुत खूबसूरत है। -- युरी गागरिन
  • ज़िन्दगी वो है जो आप इसे बनाते हैं, धरती पर स्वर्ग या नर्क। -- स्टीवन रेडहेड
  • मैं सिर्फ उसके लिए चाँद की सैर कराना चाहता था, पर जो चीज मुझे वास्तव में देनी चाहिए थी वो पृथ्वी की एक असल यात्रा थी। -- मैथियाज़ मलज़ु
  • आपकी दुनिया में गाड़ी चलाना कुछ खतरनाक लगता है। -- मिसी लायंस
  • बिना पृथ्वी के मानव जाति घर के बिना मानवता के सामान है। -- एस. जी. रेन्बोल्ट
  • पृथ्वी एक कैनवास है, और परमेश्वर कलाकार है। -- एमी बी.
  • सूर्य सौ साल पहले मुस्कुरा रहा था और आज वो हंस रहा है। -- संतोष कलवार
  • ये सिर्फ “हमारी” दुनिया नहीं है। -- मारिओ स्टिंगर
  • स्वस्थ्य पृथ्वी स्वस्थ्य निवासियों के बराबर है। -- लौरेल मेरी सोबोल
  • पृथ्वी नर्क का ही एक रूप है, और इंसान इसके राक्षस हैं। -- अनाम
  • धरती माँ शायद पसंद ना करे जिस तरह हम उसकी रक्षा करते हैं… अगर कुछ करते हैं। -- तोबा बीटा
  • यदि आप खुद को ईश्वर के प्रेम की याद दिलाना चाहते है, तो बस सूर्योद देख लीजिये। -- जीनेट वाल्स
  • पानी और हवा, दो महत्त्वपूर्ण द्रव्य जिस पर हर प्रकार का जीवन निर्भर करता है, वैश्विक कचरे के डिब्बे बन गए हैं। -- जैक्स -एवस कौस्टो
  • “क्योंकि प्रकृति के लिए सामान्य मानव गतिविधि इतिहास में घटी सबसे बड़ी परमाणु दुर्घटना से भी बदतर है।” -- मार्टिन क्रूज़ स्मिथ
  • फिर से बसंत आ गया है। पृथ्वी एक बच्चे की तरह है जिस कविताएँ अच्छी तरह से याद हैं। -- रेनर मारिया रिलके
  • बर्वादी आपराधिक है। -- क्रिस्टिन कैशोर
  • इस नीले चमकते ग्रह पर बीताया हर एक पल कीमती है इसलिए इसे सावधानी से प्रयोग करो। -- संतोष कलवार
  • पृथ्वी माँ इतना अधिक रोइं कि उनके पास खुशियों की ज़मीन से अधिक आंसुओं के दरिये हैं। -- संतोष कलवार
  • हम इतने अभिमानी कैसे हो सकते हैं? यह ग्रह हमेशा से हमसे शक्तिशाली था, है और रहेगा। हम इसे नष्ट नही कर सकते, अगर हम अपनी सीमा लांघते हैं तो ये ग्रह बस हमें बस अपनी सतह से मिटादेगा और खुद जीवित रहेगी। वे इस बारे में बात क्यों नहीं शुरू करते कि कहीं ये गृह हमारा ही विनाश ना कर दे। -- पाउलो कोएलो
  • किसने ये दुनिया बनायी मैं नहीं जानता; ये बन चुकी है, और मैं यहाँ नर्क में हूँ। -- ऐ. ई. हाउसमैन
  • ये गृह मर रहा है। मानवजाति इसे नष्ट कर रही है… अगर पृथ्वी मरती है, तुम मरते हो। अगर तुम मरते हो पृथ्वी जीती है। -- आर्थर टोफटे
  • जब लोग मुझसे कहते हैं कि वे जिम नहीं ज्वाइन कर सकते हैं, मैं कहता हूँ बहार जाओ; पृथ्वी गृह एक जिम है और हम पहले से ही इसके सदस्य हैं। दौड़ो, कूदो, पसीना बहाओ और तुम्हारे पास जो प्राकृतिक सम्पदा है उसका आनंद उठाओ। -- स्टीव मराबोली
  • जन्म से ही, इंसान अपने कन्धों पर गुरुत्वाकर्षण का बोझ उठाये रहता है। वह पृथ्वी से बंधा रहता है। लेकिन एक व्यक्ति को बस सतह से थोडा नीचे जाना होता है और वो स्वतंत्र हो जाता है। -- जैक्स ईव्स कोस्टे
  • हम ऐसे बिंदु पर पहुँच रहे हैं जहाँ हमने पृथ्वी पर जो बोझ रखा है यदि उसे खुद नहीं हटाते तो पृथ्वी को उसे हटाना होगा। -- स्टीवन एम्. ग्रीयर
  • हम इतनी दूर चाँद का पता लगाने आये, और जो सबसे ज़रूरी चीज है वो ये कि हमने पृथ्वी को खोज लिया। -- विलियम ऐ. एंडर्स

भूमि सूक्त से सम्पादन

  • माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः -- अथर्ववेद, भूमिसूक्त
अर्थ : पृथ्वी मेरी माता है और मैंं उसका पुत्र हूँ।
  • सत्यं बृहदृतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः पृथिवीं धारयन्ति ।
सा नो भूतस्य भव्यस्य पत्न्युरुं लोकं पृथिवी नः कृणोतु ॥ -- अथर्ववेद, भूमिसूक्त
अर्थात - महान् सत्य, कठोर नैतिक आचरण, शुभ कार्य करने का दृढ़ संकल्प, तपस्या, वैदिक स्वाध्याय अथवा ब्रह्मज्ञान और सर्वलोकहित के लिये समर्पित जीवन पृथ्वी को धारण करते हैं। इस पृथ्वी ने भूत काल में जीवों का पालन किया था और भविष्य काल में भी जीवों का पालन करेगी। इस प्रकार की पृथ्वी हमें निवास के लिए विशाल स्थान प्रदान करे।
  • असंबाधं बध्यतो मानवानां यस्या उद्वतः प्रवतः समं बहु ।
नानावीर्या ओषधीर्या बिभर्ति पृथिवी नः प्रथतां राध्यतां नः ॥२॥
वह धरती मॉ जो अपने पर्वत, ढलान और मैदानों के माध्यम से मनुसष्यों तथा समस्त जीवों के लिए निर्बाध स्वतंत्रता (दोनों बाहरी और आंतरिक दोनों) प्रदान करती है। , वह कई पौधों और विभिन्न क्षमता के औषधीय जड़ी बूटी को जनम देती हैह उन्हे परिपोषित करती है ; वह हमें समृद्ध करे और हमें स्वस्थ बनाये।
  • यस्यां समुद्र उत सिन्धुरापो यस्यामन्नं कृष्टयः संबभूवुः ।
यस्यामिदं जिन्वति प्राणदेजत्सा नो भूमिः पूर्वपेये दधातु ॥३ ॥
समुद्र और नदियो क जल जिसमें गूथा हुआ है, इसमें खेती करने से अन्न प्राप्त होता है, जिस पर सभी जीवन जीवित है, वह मॉ पृथ्वी हमें जीवन का अमृत प्रदान करे।
  • यस्यां पूर्वे पूर्वजना विचक्रिरे यस्यां देवा असुरानभ्यवर्तयन् ।
गवामश्वानां वयसश्च विष्ठा भगं वर्चः पृथिवी नो दधातु ॥४॥
इस पर आदिकाल से हमारे पूर्वज विचरण करते रहे, इस पर देवों (सात्विक शक्तियों) ने असुरों(तामसिक शक्तियों) को पराजित किया। इस पर गाय, घोडा, पक्षी,( अन्य जीव –जंतु) पनपे। वह माता पृथ्वी हमें समृद्धि और वैभव प्रदान करे।
  • गिरयस्ते पर्वता हिमवन्तोऽरण्यं ते पृथिवि स्योनमस्तु ।
बभ्रुं कृष्णां रोहिणीं विश्वरूपां ध्रुवां भूमिं पृथिवीमिन्द्रगुप्ताम् ।
अजीतेऽहतो अक्षतोऽध्यष्ठां पृथिवीमहम् ॥५॥
मातृ पृथ्वी के लिए नमस्कार हे मातृ पृथ्वी, आपके पर्वत, और बर्फ से ढकी चोटिया, घने जंगल हमे शीतलता और सुखानुभुति प्रदान करें । हे मॉ आप अपने कई रंगों के साथ विश्वरूपा हो – भूरा रंग (पहाड़ों की), नीला रंग( समुद्र के जल का) , लाल रंग (फूलों का); (लेकिन इन सभी विस्मयकारक रूपों के पीछे) हे मॉ धरती, आप ध्रुव की तरह हैं- दृढ और अचल; और आप इंद्र, द्वारा संरक्षित हैं। (आपकी नींव जो कि अविजित है, अचल है, अटूट है, उस पर मै दृढ्ता से खड़ा हूँ।)

इन्हें भी देखें सम्पादन