संसार, जगत या विश्व।

उद्धरण

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  • गच्छति इति जगतः।
यह चलता हैं इसलिये जगत कहलाता है।
  • संसार विषवृक्षस्य द्वे फले ह्यमृतोमपे ।
सुभाषित रसस्वादः सङ्गतिः सुजनैः सह॥
संसार के विषैले वृक्ष पर केवल दो फल अमृत के समान हैं - सुभाषितों का रस स्वाद और अच्छे लोगों की संगति।
  • यह ऐसा संसार है जैसा सेमल फूल।
दिन दस के व्यवहार में झूठे रंग न भूल।। -- कबीरदास
  • असारे अस्मिन संसारे सारं श्वसुर मन्दिरम्।
हरो हिमालये शेते हरि: शेते महोदधौ ॥
इस सारहीन जगत में केवल श्वशुर का घर रहने योग्य है । इसी कारण शंकर भगवान हिमालय में रहते है और विष्णु क्षीरसागर में।

इन्हें भी देखें

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