होली

एक हिंदू पर्व; रंगों का त्यौहार
  • कैसी होरी खिलाई।
आग तन-मन में लगाई॥
पानी की बूँदी से पिंड प्रकट कियो सुंदर रूप बनाई।
पेट अधम के कारन मोहन घर-घर नाच नचाई॥
तबौ नहिं हबस बुझाई।
भूँजी भाँग नहीं घर भीतर, का पहिनी का खाई।
टिकस पिया मोरी लाज का रखल्यो, ऐसे बनो न कसाई॥
तुम्हें कैसर दोहाई।
कर जोरत हौं बिनती करत हूँ छाँड़ो टिकस कन्हाई।
आन लगी ऐसे फाग के ऊपर भूखन जान गँवाई॥
तुन्हें कछु लाज न आई। -- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की रचना 'मुशायरा' से
गले मुझको लगा लो ऐ दिलदार होली में
बुझे दिल की लगी भी तो ऐ यार होली में
नहीं ये है गुलाले-सुर्ख उड़ता हर जगह प्यारे
ये आशिक की है उमड़ी आहें आतिशबार होली में
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में
है रंगत जाफ़रानी रुख अबीरी कुमकुम कुछ है
बने हो ख़ुद ही होली तुम ऐ दिलदार होली में
रस गर जामे-मय गैरों को देते हो तो मुझको भी -- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
  • केशर की, कलि की पिचकारी
पात-पात की गात सँवारी
राग-पराग-कपोल किए हैं
लाल-गुलाल अमोल लिए हैं
तरू-तरू के तन खोल दिए हैं
आरती जोत-उदोत उतारी
गन्ध-पवन की धूप धवारी -- हरिवंशराय बच्चन
  • तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
देखी मैंने बहुत दिनों तक
दुनिया की रंगीनी,
किंतु रही कोरी की कोरी
मेरी चादर झीनी,
तन के तार छूए बहुतों ने
मन का तार न भीगा,
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है। -- केदारनाथ अग्रवाल
फूलों ने होली फूलों से खेली
लाल गुलाबी पीत-परागी
रंगों की रँगरेली पेली
काम्य कपोली कुंज किलोली
अंगों की अठखेली ठेली
मत्त मतंगी मोद मृदंगी
प्राकृत कंठ कुलेली रेली -- फणीश्वर नाथ रेणु
  • साजन! होली आई है!
सुख से हँसना
जी भर गाना
मस्ती से मन को बहलाना
पर्व हो गया आज-
साजन! होली आई है!
हँसाने हमको आई है!
साजन! होली आई है!
इसी बहाने
क्षण भर गा लें
दुखमय जीवन को बहला लें
ले मस्ती की आग-
साजन! होली आई है!
जलाने जग को आई है! -- नज़ीर अकबराबादी
  • हाँ इधर को भी ऐ गुंचादहन पिचकारी
देखें कैसी है तेरी रंगबिरंग पिचकारी
तेरी पिचकारी की तक़दीद में ऐ गुल हर सुबह
साथ ले निकले है सूरज की किरण पिचकारी
जिस पे हो रंग फिशाँ उसको बना देती है
सर से ले पाँव तलक रश्के चमन पिचकारी
बात कुछ बस की नहीं वर्ना तेरे हाथों में
अभी आ बैठें यहीं बनकर हम तंग पिचकारी
हो न हो दिल ही किसी आशिके शैदा का 'नज़ीर'
पहुँचा है हाथ में उसके बनकर पिचकारी -- नज़ीर अकबराबादी


  • बचपन की शैतानियाँ, जवानी की यादें और बुढ़ापे का अहसास, होली के रंगों में जीवन के सारे रंग बस जाते हैं।
  • होली में किसी को रंग लगाने से ज्यादा अच्छा है किसी की उदास बेरंग जिन्दगी में खुशियों के रंग भरे जाएँ।
  • यदि जीवन में ग़मों का अँधेरा हो तो होली के रंग भी बेरंग लगते हैं। जरूरत रंगों की नहीं प्रकाश की होती है, जिसमें रंगों का अस्तित्व होता है। जिससे रंगों की पहचान होती है।
  • रंग लगाकर अपनापन जताना, रंग लगाकर सब गिले शिकवे भूल जाना, रंग लगाकर ख़ुशी का इजहार करना। होली का तो उद्देश्य ही है सब के जीवन में रंग भरना।
  • अपनों में जब दूरियां बढ़ जाती हैं तो उसे मिटाने होली फिर से आती है।
  • होली सिर्फ रंगों का ही त्यौहार नहीं, ये त्यौहार है भाईचारे, अपनेपन और प्यार का।
  • होली पर सबको रंग लगायें, बाकी दिन सबके जीवन में प्यार का रंग भरें।
  • इस होली पर प्रयास करें कि कुदरत में भी रंग भरे जाएँ, आस-पड़ोस साफ़ रखें और एक पेड़ लगायें।
  • होली के रंग बस रंग ही नहीं होते, इनमें होती हैं कुछ यादें, किसी की कही बातें और होलिका दहन की कुछ बीती हुई रातें।
  • होली के त्यौहार में बस रंगों का ही नहीं मीठे पकवानों का भी बहुत महत्व है जो हमें दूसरों के जीवन में प्यार की मिठास भरने के लिए प्रेरित करते हैं।
  • होली पर किसी को रंग लगायें या न लगायें लेकिन किसी की बेरंग जिन्दगी में रंग भरने का प्रयास जरूर करें।
  • होली एक अच्छा मौका है होलिका दहन के साथ अपनी बुरी आदतों का भी दहन करने के लिए।
  • होलिका के पास वरदान होने के बावजूद अग्नि में जल जाना इस बात का प्रमाण है कि कई बार बुराई स्वयं ही अपने अंत का कारन बन जाती है।
  • जलती अग्नि में प्रह्लाद का होलिका की गोद में बैठना भक्ति था और उनका बच जाना भक्ति की शक्ति।
  • होली ही एक अवसर है जो कई बिछड़ों को मिलाता है और उन्हें एक नयी शुरुआत का बहाना देता है।

इन्हें भी देखें

सम्पादन

बाहरी कड़ियाँ

सम्पादन