प्रिये, जिधर देखो आनन्द ही आनन्द है। वसन्त के आते ही वृक्ष फलों से लद गये हैं। जल में कमल खिल गये हैं। स्त्रियाँ प्रियों से मिलने के लिये उत्सुक हो गयीं हैं। पवन सुगन्धपूर्ण हो गया है। सन्ध्या सुहावनी हो गयी है। दिन आकर्षक लगने लगे हैं। सचमुच वसन्त में सब कुछ अधिक सुन्दर हो गया है।
नव पलाश पलाशवनं पुरः स्फुट पराग परागत पंवानम्
मृदुलावांत लतांत मलोकयत् स सुरभि-सुरभि सुमनोमरैः॥ -- माघ
विरह-दग्ध हृदय में बसंत में खिलते पलाश के फूल अत्यंत कुटिल मालूम होते हैं तथा गुलाब की खिलती पंखुड़ियाँ विरह-वेदना के संताप को और अधिक बढ़ा देती हैं।
(भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि) गायी जानेवाली श्रुतियों में बृहत्साम और वैदिक छन्दों में गायत्री छन्द मैं हूँ। बारह महीनों में मार्गशीर्ष और छः ऋतुओं में वसन्त मैं हूँ।