शास्त्र अनन्त हैं, विद्याएं ढेरी सारी, समय अल्प और विघ्न हजार। (ऐसे में) जो सारभूत है वही वरेण्य है, जैसे हंस दूध को पानी से अलग करके पी जाता है।
पुराणेष्वितिहासेषु तथा रामायणादिषु ।
वचनं सारभूतं यत् तत् सुभाषितमुच्यते ॥ -- बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित में
अर्थात् पुराणों में, इतिहास में, रामायण आदि महाकाव्यों में अखिल मनुष्य हित के लिए बार-बार कहा गया है कि सत्य को जहाँ सारभूत तत्व से कहा जाता है, वह सुभाषित कहलाता है।