• अनन्तशास्त्रं बहुलाश्च विद्याः अल्पश्च कालो बहुविघ्नता च।
यद्सारभूतं तदुपासनीयं हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात्॥ -- चाणक्य
शास्त्र अनन्त हैं, विद्याएं ढेरी सारी, समय अल्प और विघ्न हजार। (ऐसे में) जो सारभूत है वही वरेण्य है, जैसे हंस दूध को पानी से अलग करके पी जाता है।
  • पुराणेष्वितिहासेषु तथा रामायणादिषु ।
वचनं सारभूतं यत् तत् सुभाषितमुच्यते ॥ -- बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित में
अर्थात् पुराणों में, इतिहास में, रामायण आदि महाकाव्यों में अखिल मनुष्य हित के लिए बार-बार कहा गया है कि सत्य को जहाँ सारभूत तत्व से कहा जाता है, वह सुभाषित कहलाता है।
  • असारे खलु संसारे सारं श्वसुरमंदिरम्।
हरः हिमालये शेते हरिः शेते पयोनिधौ॥ -- महासुभाषितसङ्ग्रह
इस नीरस संसार में ससुर का घर ही सचमुच सर्वोत्तम है। इसीलिये भगवान शिव हिमालय में और भगवान विष्णु महासागर में विश्राम करते हैं।
  • कस्त्वं कोऽहं कुत आयातः का मे जननी को मे तातः।
इति परिभावय सर्वमसारं विश्वं त्यक्त्वा स्वप्न विचारम् ॥ -- आदि शंकराचार्य कृत, भजगोविन्दम्
तुम कौन हो, मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, मेरी माँ कौन है, मेरा पिता कौन है? सब प्रकार से इस विश्व को असार समझ कर इसको एक स्वप्न के समान त्याग दो ॥
  • साधू ऐसा चाहिये जैसा सूप सुभाय ।
सार सार को गहि रहे थोथा देय उड़ाय ॥ -- कबीरदास