• यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन।
स धीनां योगमिन्वति॥ -- ऋक्संहिता, मण्डल-१, सूक्त-१८, मंत्र-७
योग के बिना विद्वान का भी कोई यज्ञकर्म सिद्ध नहीं होता। वह योग क्या है? योग चित्तवृत्तियों का निरोध है, वह कर्तव्य कर्ममात्र में व्याप्त है।
  • संयग आधीयतेऽस्मिन्नात्मतत्वयाथात् यम् -- निरुक्त
जब मन आत्मा को समझने में स्थिर रहता है तो उसे समाधि कहते हैं।
  • वितर्कविचारानन्दास्मितारूपानुगमात्सम्प्रज्ञातः --योगसूत्र १७
समाधि के वितर्कानुगत, विचारानुगत, आन्नदानुगत, और अस्मितानुगत नामक भेदों के आपसी सम्बन्ध ( तालमेल ) से सम्प्रज्ञात समाधि होती है।
(इस सूत्र में सम्प्रज्ञात समाधि के चार भेदों का वर्णन किया गया है । जब हमारा चित्त अलग–अलग संस्कारों या विचारों को आश्रय ( सहारा ) देता है । तब वह अलग–अलग विषयों का साक्षात्कार ( अनुभूति ) करता है । सम्प्रज्ञात समाधि में चित्त की चार प्रकार की अवस्था रहती है । इन चारों अवस्थाओं को ही सम्प्रज्ञात समाधि के भेद कहा गया है।)
  • स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्॥ -- भगवत्गीता 2.54
हे केशव! समाधि में स्थित स्थिर बुद्धि वाले पुरुष का क्या लक्षण है? स्थिर बुद्धि पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है, कैसे चलता है?
  • भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्।
व्यवसायात्मिका बुद्धि: समाधौ न विधीयते॥ -- भगवद्गीता
जो लोग इंद्रियभोग तथा भौतिक ऐश्वर्य के प्रति अत्यधिक आसक्त होने से ऐसी वस्तुओं से मोहग्रस्त हो जाते हैं, उनके मनों में भगवान के प्रति भक्ति का दृढ़ निश्चय नहीं होता।
  • समाधि में ही साक्षात्कार होता है। समाधि के एक क्षण की तुलना में पठन, पाठन और मनन का सहस्र वर्ष भी नहीं ठहरता। -- डॉ० सम्पूर्णानन्द
  • ध्यान और समाधि एकाग्रता के बिना सम्भव नहीं। -- मनुस्मृति

इन्हें भी देखें

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