• यदि आप चाहते हैं कि आपकी जिज्ञासा चिरयुवा रहे, प्रश्नाकुलता मरे नहीं तो जितना भी आप से बन पड़े, बच्चों के सान्निध्य में रहें. लेकिन यदि आप नएपन से ऊब चुके हैं, यथास्थिति भंग नहीं करना चाहते तो आपके लिए उचित होगा कि किसी तांत्रिक, ओझा, पुजारी या धर्माचार्य की शरण ले लें. — परीकथाओं का मनोविज्ञान.
  • प्रत्येक धर्म व्यवहार में नैतिकता की बात करता है, संगठन की बात करता है, कल्याण की बात करता है. सबको साथ लेकर चलने की बात करता है. लेकिन जब वास्तविक फल की बात आती है. लक्ष्य की बात आती है, परिणाम से गुजरने की बात आती है तो वह प्राणी को अकेला छोड़ देता है. स्वर्ग के बहाने, जन्नत के बहाने, मोक्ष और कैवल्य के बहाने—उसकी रीति-नीति व्यक्ति को अंततः अकेला कर देने की होती है. — बालशिक्षा और लोकतंत्रीय संस्कार।
  • शिक्षा का प्रथम ध्येय उन जिज्ञासाओं का समाधान करना है. उसका वास्तविक कर्म है बालक की प्रश्नाकुलता को बढ़ावा देना. उसके व्यक्तित्व का परिष्कार करना, आत्मविश्वास को बढ़ाना. यह तभी संभव है बालकों को बताया जाए कि मानवीय सभ्यता ने शताब्दियों में जो प्रगति की है. वह सिर्फ और सिर्फ मानवीय श्रम-कौशल की देन है. उसके पीछे न तो कोई चमत्कार है न ऊपरी कृपा. दुनिया में जिन्होंने भी विलक्षण कार्य किया, जो-जो लोग महान कहलाए, जिन्होंने इतिहास की धारा को मोड़ने का युगांतरकारी कार्य किया, बाकी लोगों तथा उनमें बस इतना अंतर था कि वे अपने सपने को संकल्प में ढालना चाहते थे. इसलिए उन्होंने पलायन के बजाय प्रयाण का वरण किया. भागने के बजाय दुनिया को बदलना बेहतर समझा. मनुष्यता में विश्वास, इसलिए मानवमात्र के कल्याण की राह बनाते समय उन्होंने अपने सुख की परवाह तक नहीं की. उनके लिए लौकिक लक्ष्य निजी सुख-दुख से कही बड़े थे. —बालशिक्षा और लोकतंत्रीय संस्कार।
  • धार्मिक प्रवचन के दौरान उपस्थित भीड़ का आचरण बाड़े में कैद कर दी गई भेड़ों की तरह होता है, जो अपने ग्वाले द्वारा इधर से उधर हांक दी जाती हैं. — हिंदू धर्म : अंध-आस्था का सांस्थानीकरण