उक्तियाँ

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  • न हि वैरेण वैराणि शाम्यन्तीह कदाचन।
अवैरेण हि शाम्यन्ति एष धर्मः सनातनः॥
इस संसार में वैर (वैमनस्य) का प्रतिकार वैर से करने से वैर का अन्त कभी भी नहीं होता है। उसका अन्त तो केवल वैर न कर सद्भाव पूर्ण व्यवहार से ही संभव है, यही सनातन धर्म है।
  • न हि वेरेण वेरानि सम्मन्तिधा कुदाकनं ।
अवेरेना च सम्मन्ति एसा धम्मो सनन्तनो॥ -- धम्मपद, कलायक्खिनी वत्थु, श्लोक 5
वास्तव में, इस संसार में घृणा कभी भी घृणा से शान्त नहीं होती। यह केवल प्रेम-कृपा से ही प्रसन्न होता है। यह एक सनातन धर्म है।

इन्हें भी देखें

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