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  • क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥ -- भगवान श्रीकृष्ण, भगवद्गीता में
क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है।
  • क्रोधो वैवस्वतो राजा तॄष्णा वैतरणी नदी।
विद्या कामदुघा धेनुः सन्तोषो नन्दनं वनम्॥ -- शुक्राचार्य
क्रोध यमराज है, तृष्णा वैतरणी नदी के समान है, विद्या कामधेनु के समान है और सन्तोष नन्दन वन जैसा है।
  • क्रोधो मूलमनर्थानां क्रोधः संसारबन्धनम्।
धर्मक्षयकरः क्रोधः तस्मात् क्रोधं विवर्जयेत्॥
अर्थ - क्रोध सभी अनर्थ (विपत्तियों) की जड़ है। क्रोध संसार का बन्धन है। क्रोध से मनुष्य का धर्म नष्ट होता है। इसलिए क्रोध का परित्याग करना चाहिए।
  • वाच्यावाच्यं प्रकुपितो न विजानाति कर्हिचित्।
नाकार्यमस्ति क्रुद्धस्य नवाच्यं विद्यते क्वचित्॥
क्रोध की दशा में मनुष्य को यह विवेक नहीं रहता कि क्या कहना चाहिये और क्या नहीं कहना चाहिये। क्रुद्ध मनुष्य के लिए कुछ कुछ भी अकार्य नहीं है और कुछ भी अवाच्य नहीं है। अर्थात क्रुद्ध मनुष्य कुछ भी कर सकता है और कुछ भी बक सकता है।
  • मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा।
क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः॥
मूर्ख के पाँच लक्षण हैं: गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों-विचारों का अनादर।
  • षड् दोषाः पुरूषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता॥
सम्पन्न होने की इच्छा वाले मनुष्य को इन छः बुरी आदतों को त्याग देना चाहिए: अधिक नींद, जड़ता, भय, क्रोध, आलस्य और कार्यों को टालने की प्रवृत्ति।
  • क्रोधः सुदुर्जयः शत्रुः लोभो व्याधिरनन्तकः।
सर्वभूतहितः साधुः असाधुर्निदयः स्मॄतः॥
क्रोध दुर्जय (कठानाई से जीता जा सकने वाला) शत्रु है, लोभ अनन्त (कभी न समाप्त न होने वाला) रोग है। जो दूसरों के कल्याण में लगा हुआ है वही साधु है और जो दया से रहित है वही असाधु (दुर्जन) है।
  • क्रोधमूलो मनस्तापः क्रोधः संसारबन्धनम्।
धर्मक्षयकरः क्रोधः तस्मात्क्रोधं विवर्जयेत्॥
क्रोध ही हृदय के दुख का कारण है, क्रोध सांसारिक बन्धन है। क्रोध धर्म का क्षय करने वाला है। इसलिए क्रोध से बचना चाहिए।
  • क्रोधो नाशयते धैर्यं क्रोधो नाशयते श्रुतम्।
क्रोधो नाशयते सर्वं नास्ति क्रोधसमो रिपुः॥
क्रोध के कारण धैर्य का नाश होता है, उसी क्रोध के कारण ज्ञान का भी नाश होता है , क्रोध के कारण सबकुछ नष्ट हो जाता है। क्रोध के समान कोई शत्रु नहीं है।
  • यस्तु क्रोधं समुत्पन्नं प्रज्ञया प्रति बाधते।
तेजस्विन्तं विद्वाँसो मन्यन्ते तत्वदर्शिनः॥
उत्पन्न हुये क्रोध को जो अपनी विवेक बुद्धि से शाँत कर लेते हैं वही तत्वदर्शी विद्वान माने जाते हैं।
  • जायते यत्र स क्रोधस्तन्दहेदेव सर्वतः ।
विषयश्च क्वचित्क्रोधः सफलो निर्दहेदयम् ॥
जिस शरीर में क्रोध उत्पन्न होगा उसे सर्वथा नष्ट कर देगा। इस क्रोध से वैसे ही बचना चाहिये जैसे अग्नि तथा विद्युत से ।
  • अपकारिणि कोपश्चेत्कोपे कोपः कर्थ न ते ।
धर्मार्थ काम मोक्षाणं प्रसह्म परिपन्थिनि ॥
अपकारी पर क्रोध करने की अपेक्षा क्रोध पर ही क्षुभित होना चाहिये क्योंकि यही धर्म, अर्ध, काम, मोक्ष की प्राप्ति में बाधक है इसी को अपना परम शत्रु मानकर वशवर्ती बनाना चाहिये ।
  • न द्विषन्तः क्षयं यान्ति यावज्जीवमपिघ्नतः ।
क्रोधमेव तु यो हन्ति तेन सर्वे द्विषो हताः ॥
जीवन पर्यन्त प्रयत्न करने पर भी शत्रु रहित नहीं बन सकते पर जिस ने क्रोध को पराजित कर दिया उसका कोई शत्रु कुछ नहीं बिगाड़ सकता। क्रोध पर विजय पाना शत्रुओं को समाप्त कर देना है।
  • ये क्रोधं सनियच्छन्ति क्रद्धान संशमयन्ति च।
न च कुप्यन्ति भूतानाँ दुर्गाण्यतितरन्ति ते॥
जो मनुष्य मात्र पर कभी क्रोध नहीं करते, क्रोधियों को शान्त करते हैं तथा क्रोध को अपने नियन्त्रण में रखते हैं वही संसार के सम्पूर्ण दुस्सह दुःखों से छुटकारा पा जाते हैं।


  • मानं हित्वा प्रियो भवति। क्रोधं हित्वा न सोचति।।
कामं हित्वा अर्थवान् भवति। लोभं हित्वा सुखी भवेत्॥
(मनुष्य) अहंकार को मारकर प्रिय हो जाता है। क्रोध को मारकर शोक नहीं करता। काम को मारकर धनवान बनता है और लोभ को मारकर सुखी होता है।
  • धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥ -- मनुस्मृति
धर्म के दस लक्षण हैं- धृति (धैर्य), क्षमा, दम (इन्द्रियों के विषयों का दमन), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (मान और शरीर की स्वच्छता), इंद्रियनिग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य, और अक्रोध (क्रोध न करना)।
  • क्रोधो सर्वार्थ नाशको”
क्रोध सारे अर्थों (सारे धन) का नाश करने वाला है।
  • क्रोधमूलो विनाशो हि प्रजानामिह दृश्यते।
संसार में प्रजा के विनाश का कारण क्रोध को ही माना जाता है।
  • क्रोधमूलो हि विग्रह:।
क्रोध ही झगड़े की जड़ है।
  • क्रोधित होना गर्म कोयले को किसी दूसरे पर फेंकने से पहले पकड़े रहने के सामान है; इससे आप ही जलते हैं। -- भगवान गौतम बुद्ध
  • हर मिनट जिसमे आप क्रोधित रहते हैं, आप 60 सेकण्ड की मानसिक शांति खो देते हैं। -- राल्फ वाल्डो इमर्सन
  • क्रोध अम्ल की तरह है। यह उस बर्तन को अधिक नुकसान पहुंचा सकता है जिसमें उसको रखा जाता हैं। -- मार्क ट्वेन
  • जब गुस्से में हैं तो आप बोलने से पहले दस तक गिने। अगर आप बहुत गुस्से में हैं, तो सौ तक गिनें। -- थॉमस जेफरसन
  • अगर तुम्हारे पास हमेशा गुस्सा या शिकायत रहती है तो लोगों के पास तुम्हारे लिए समय नहीं रहेगा। -- स्टीफन हॉकिंग
  • जो इंसान बदले की भावना रखता है वह अपने ही घावों को ताजा रखता है। -- फ्रांसिस बैकन
  • एक क्रोधित आदमी अपना मुंह खोल लेता है और आंखे बंद कर लेता है। -- केटो
  • गुस्सा और असहिष्णुता सही समझ के दुश्मन हैं। -- महात्मा गाँधी
  • क्रोध एक प्रकार का पागलपन है। -- होरेस
  • क्रोध मूर्ख लोगो के ह्रदय में बसता है। -- अल्बर्ट आइन्स्टाइन
  • हर कोई क्रोधित हो सकता है- यह सरल है, लेकिन सही आदमी से, सही सीमा में, सही समय पर, सही उद्देश्य के साथ, सही तरीके से क्रोधित होना, सब लोगो के बस की बात नहीं है। -- अरस्तु
  • जो कुछ भी क्रोध में शुरू होता है, वह शर्म पर खत्म होता है। -- बेंजामिन फ्रैंकलिन
  • क्रोधित होना कुछ भी हल नहीं करता। -- ग्रेस केली
  • क्रोध का सबसे बड़ा उपाय है- थोड़ी देर रूक जाएं। --
  • जब क्रोध उठता है, तो इसके परिणाम के बारे में सोचो। -- कन्फ्यूशियस
  • तुम अपने क्रोध के लिए सजा नहीं पाओगे, तुम अपने क्रोध के द्वारा सजा पाओगे। -- गौतम बुद्ध
  • सबसे अच्छा योद्धा कभी नाराज नहीं होता। -- लाओ त्सू
  • गुस्सा आपको छोटा बनाता है, जबकि माफी आपको जो भी हो उससे परे बढ़ने के लिए मजबूर करती है। -- चेरी कार्टर-स्कॉट
  • क्रोध के लिए सबसे बड़ा उपाय देरी है। -- Thomas Paine
  • क्रोध की सबसे अच्छी दवा है लंबी दूरी तक टहलना। -- जोसेफ जूबर्ट
  • गुस्सा करके मैं खुद के लिए खतरा बनाता हूं। -- ओरियाना फैलेसी
  • यदि छोटी चीजें आपको गुस्सा दिला देती हैं तो क्या इससे आपके स्तर का पता नहीं चल जाता? -- सिडनी जे. हैरिस

इन्हें भी देखें

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