"महाभारत": अवतरणों में अंतर

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==महाभारत के बारे में==
* ''धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।''
* ''यदिहास्ति तद् अन्यत्र यन्नेहास्ति न तद्क्वचिद्।'' ( अर्थ : जो यहाँ है वह अन्यत्र है (किन्तु) जो यहाँ नहीं है वह कहीं नहीं है।)
: ''यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्॥''
: अर्थ : धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के विषय में जो भी ज्ञात है वह सब महाभारत में है। (किन्तु) जो यहाँ नहीं है वह कहीं नहीं है।
 
* महाभारत में, राज्याभिषेक के समय उपदेश में यह भी कहा गया है कि राजा को माली के समान होना चाहिये न कि लकड़ी जलाने वाले की तरह। माला सामाजिक समरसता का संकेत करता है, यह धार्मिक विविधता का रूपक है जिसमें विभिन्न रंगों के फूल मिलकर अत्यन्त सुखदायक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। उसके विपरीत लकड़ी जलाने वाला पाशविक शक्ति का प्रतीक है जो विविधता को (जलाकर) एकरूपता में बदलता है, जिसमें जीवित पदार्थ को निर्जीव एकसमान राख में बदल दिया जाता है। -- राजीव मल्होत्रा, इन्द्राज नेट में
 
==इन्हें भी देखें==
* [[भगवद्गीता]]
* [[कृष्ण]]
* [[पुराण]]