"दयानन्द सरस्वती": अवतरणों में अंतर

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* जिसको परमात्मा और जीवात्मा का यथार्थ ज्ञान है, जो आलस्य को छोड़कर सदा उद्योगी, सुखदुःखादि का सहन, धर्म का नित्य सेवन करने वाला, जिसको कोई पदार्थ धर्म से छुड़ा कर अधर्म की ओर न खींच सके वह पण्डित कहाता है।
 
* वेदों मे वर्णीतवर्णित सार का पान करने वाले ही ये जान सकते हैं कि 'जिन्दगीजीवन' का मूल बिन्दु क्या है।
 
* ये 'शरीर' 'नश्वर' है, हमे इस शरीर के जरीएमाध्यम सिर्फसे केवल एक मौका मिला है, खुद को साबित करने का कि, 'मनुष्यता' और 'आत्मविवेक' क्या है।
 
* क्रोध का भोजन 'विवेक' है, अतः इससे बचके रहना चाहिए। क्योकीक्योंकि 'विवेक' नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है।
 
* अहंकार' एक मनुष्य के अन्दर वो स्थित लाती है, जब वह 'आत्मबल' और 'आत्मज्ञान' को खो देता है।
पंक्ति ११५:
 
आओ इसे सीँचें हम,आओ इसे सीँचें हम;
 
 
==बाहरी कड़ियाँ==