"दयानन्द सरस्वती": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति ९:
* जिसको परमात्मा और जीवात्मा का यथार्थ ज्ञान है, जो आलस्य को छोड़कर सदा उद्योगी, सुखदुःखादि का सहन, धर्म का नित्य सेवन करने वाला, जिसको कोई पदार्थ धर्म से छुड़ा कर अधर्म की ओर न खींच सके वह पण्डित कहाता है।
* वेदों मे
* ये 'शरीर' 'नश्वर' है, हमे इस शरीर के
* क्रोध का भोजन 'विवेक' है, अतः इससे बचके रहना चाहिए।
* अहंकार' एक मनुष्य के अन्दर वो स्थित लाती है, जब वह 'आत्मबल' और 'आत्मज्ञान' को खो देता है।
पंक्ति ११५:
आओ इसे सीँचें हम,आओ इसे सीँचें हम;
==बाहरी कड़ियाँ==
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