एवं मनुष्या यदा देशभूम्या कुर्वन्त्यभेदं तदा वर्धते सा॥
बीज जब भूमि में अच्छी तरह लीन हो जाता है, तभी सुन्दर वृक्ष की उत्पत्ति होती है। इसी तरह मनुष्य जब अपनी मातृभूमि के प्रति अपनी आत्मीयता सुदृढ़ करता हैं, तब वह मातृभूमि वृद्धि को प्राप्त होती है।
भूमे मातिर्नि धेहि मा भद्रया सुप्रतिष्ठितम्।
संविदाना दिवा कवे श्रियां मा धेहि भूत्याम्॥ -- वहीं ६३
हे मातृभूमि ! आप हमें कल्याणकारी प्रतिष्ठा से युक्त करें। हे देवि! हमें ऐश्वर्य और श्रेय में प्रतिष्ठित करते हुए स्वर्ग की प्राप्ति काराएं।
यार्णवेऽधि सलिलमग्र आसीद्
यां मायाभिरन्वचरन् मनीषिणः।
परमे व्योमन्त्सत्येनावृतममृतं पृथिव्याः
सा नो भूमिस्त्विषिं बलं राष्ट्रे दधातूत्तमे॥ -- वहीं ८
जिस मातृभूमि का हृदय परमव्योम के सत्य रुपी अमृत के प्रवाह से आवृत रहता है, बुद्धिमान लोग अपनी कुशलता से जिसका अनुगमन करते हैं। वह मातृभूमि हमारे राष्ट्र में तेजस्विता, बलवत्ता बढ़ाने वाली हो।
पवित्रेण पृथिवि मोत्पुनामि। -- अथर्ववेद १२.१.३०
हे मातृभूमि ! आपकी पवित्र शक्ति से हम स्वयं को पावन बनाते हैं।
पृथिवीं विश्वधायसं धृतामच्छावदामसि॥ -- वहीं २७
धर्मधारिणी और सर्वपालनकर्त्री मातृभूमि को हम शीश झुकाकर अभिनन्दन (स्तुति) करते हैं।
जन्मभूमिः स्वमातृवत् पूजनीया सदा नृणाम्।
मनुष्यों द्वारा अपनी माता के समान जन्मभूमि भी सदा पूजनीय है।
सा नो भूमिर्वि सृजतां माता पुत्राय मे पयः। -- वही १०
जिस प्रकार माता पुत्र को दुध प्रदान करती है, मातृभूमि भी उसी तरह अपनी सन्तान रूपी प्राणियों को खाद्य पदार्थ प्रदान करे।
तासु नो धेह्यभिः नः पवस्व माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः। -- वही १२
मातृभूमि में प्रतिष्ठित और पवित्र पोषणयुक्त पदार्थ हैं, मातृभूमि उन्हें हमें प्रदान करें, क्योंकि यह धरती हमारी माता है और हम सब उसके पुत्र हैं।
भूमिं.......शिवां स्योनामनु चरेम विश्वहा। -- वही १७
कल्याणकारी और सुख-साधनों को देने वाली मातृभूमि की हम सदैव सेवा करें।
सा नो भूमिरा दिशतु यद्धनं कामयामहे। -- वहीं ४०
मातृभूमि आवश्यकता के अनुरूप हमें वाञ्छित धन प्रदान करे।