माता से बढ़कर इस संसार में कोई छाय (सहारा) नहीं है। माँ की छाया में ही जीवन का सुख है। कोई माँ के समान जीवन की रक्षा नहीं कर सकता है तथा माँ के समान इस संसार में कोई प्रिय वस्तु नहीं है।
मातृलाभे सनाथत्वमनाथत्वं विपर्यये॥
माता के जीवित या साथ रहने पर हर कोई अपने आप को सनाथ अनुभव करता है। माँ के साथ न रहने पर वह अनाथ हो जाता है।
न स्वेच्छया क्षणमपि माता पुत्रं रहयति।
यद्वत्सुपुत्रभवति तद्वत्कुपुत्रकमपि॥
माता अपनी इच्छा से तनिक भी अपने पुत्र का परित्याग नहीं करती है। माता जिस प्रकार सुपुत्र का भरण-पोषण और रक्षा करती है, उसी प्रकार कुपुत्र का भी भरण-पोषण और रक्षा करती है।
पुत्र को गर्भ में धारण करने के कारण माता धात्री कहलाती है। जन्म देने के कारण माँ जननी कहलाती है। पालन-पोषण करने के कारण माता अम्बा कहलाती है और सुयोग्य वीर को जन्म देने के कारण माँ वीरसू कहलाती है।
यो ह्यं मयि संघाते मर्त्यत्वे पाञ्चभौतिकः।
अस्य में जननी हेतुः पावकस्य यथारणिः॥ -- महाभारत शान्तिपर्व २६६.२५
मनुष्य को जो यह पांचभौतिक शरीर प्राप्त हुआ है, इसे माँ ने वैसे ही बनाया है जैसे अरणि से आग बनती है।
अन्य धन के समान कोई दान नहीं, द्वादशी के समान कोई तिथि नहीं, गायत्री मंत्र से बड़ा कोई मंत्र नहीं और माँ से बढ़कर कोई देवता नहीं है । -- चाणक्य
एक माँ का हाथ कोमलता से बना होता है और बच्चे उसमे गहरी नीद में सोते है। -- विक्टर ह्यूगो
नास्ति मातृ समो गुरु
अर्थ : माता के समान गुरु नहीं । -- वेदव्यास
मातृत्व कठिन है और लाभप्रद भी। -- ग्लोरिया एस्तिफैन
भगवान सभी जगह नहीं हो सकते इसलिए उसने माएं बनायीं। -- रुडयार्ड किपलिंग
मातृत्व : सारा प्रेम वही से आरम्भ और अंत होता है। -- राबर्ट ब्राउनिंग
जवानी फीकी पड़ जाती है; प्यार मुरझा जाता है; दोस्ती की पत्तियाँ झड़ जाती हैं; पार एक माँ की छुपी हुई आशा उन सभी के पार होती है। -- Oliver Wendell Holmes