महान व्यक्तियों ने जो रास्ता अपनाया, वही सही रास्ता है (उसी पर चलना चाहिये)।
  • अनर्थमप्यभिप्रेतं मन्यते परमार्थवत्।
महाजनैर्धृतः पन्था येन सत्यज्यते बलात्॥ -- शुक्रनीतिसार ३।६९
विद्या के मद से उम्मत पुरुष अपने तर्कों से आठ ( परमहितैषी ) जनों के उपदेश-वचनों को कुछ भी नहीं समझता और अनर्थकारी भी अपने अभीष्ट विचार को परमार्थ-युक्त (उचित कर्तव्य ) समझता है। और जिससे वह महाजनों (अच्छे पुरुषों) से स्वीकृत मार्ग का भी हठात् परित्याग कर देता है ।
  • महाजनस्य संसर्गः कस्य नोन्नतिकारकः।
पद्मपत्रस्थितं तोयम्, धत्ते मुक्ताफलश्रियम्॥
महापुरुषों का सामीप्य किसके लिए लाभदायक नहीं होता? कमल के पत्ते पर पड़ी हुई पानी की बूँद मोती जैसी शोभा प्राप्त कर लेती है।
  • चटकाकाष्ठ-कूटेन मक्षिका-दर्दुरैस् तथा।
महाजन-विरोधेन कुञ्जरः प्रलयं गतः॥ -- पञ्चतन्त्र १.३६२
  • एवमेषां महासिद्धि भूमिः श्रीसंप्रशोभिताः ।
महाजन समाकीर्ण्णा सर्वभूम्युत्तमा वभौ ॥ -- स्वयम्भूधर्मधातुसमुत्पत्तिः

इन्हें भी देखें

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