कार्येषु मन्त्री करणेषु दासी भोज्येषु माता शयनेषु रम्भा ।
धर्मानुकूला क्षमया धरित्री भार्या च षाड्गुण्यवतीह दुर्लभा ॥ -- गरुड पुराण , पूर्व खण्ड, आचार काण्ड, ६४/६
कार्य प्रसंग में मंत्री, गृहकार्य में दासी, भोजन कराते वक्त माता, रति प्रसंग में रंभा, धर्म में सानुकूल, क्षमा करने में धरित्री, इन छः गुणों से युक्त पत्नी मिलना दुर्लभ है।
भारतीय नारी द्रौपदी जैसी हो, जिसने कि कभी भी किसी पुरुष से दिमागी हार नहीं खाई। -- डॉ. राम मनोहर लोहिया
नारी को गठरी के समान नहीं बल्कि इतनी शक्तिशाली होनी चाहिए कि वक्त पर पुरुष को गठरी बना अपने साथ ले चले। -- डॉ. राम मनोहर लोहिया
इस देश की औरतों के लिए आदर्श सावित्री नहीं, द्रोपदी होनी चाहिए। -- डॉ. राम मनोहर लोहिया
फिर भी, बाद के भारत की तुलना में वैदिक काल में महिलाओं को कहीं अधिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। विवाह के जितने भी प्रकार प्रचलित थे, उनमें नारी के जो अधिकार थे, अपने जीवनसाथी के चुनाव में वह उससे भी अधिक कहने का अधिकार रखती थी। वह दावतों और नृत्यों में स्वतंत्रता पूर्वक दिखाई देती थी, और पुरुषों के साथ धार्मिक यज्ञों में भाग लेती थी। उसे शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार था और गार्गी की तरह वह शास्त्रार्थ में भी भाग ले सकती थी। यदि वह विधवा हो जाती थी, तो उसके पुनर्विवाह पर कोई प्रतिबन्ध नहीं था। ऐसा लगता है कि वीर युग में महिला ने इस स्वतंत्रता का कुछ हिस्सा खो दिया। -- विल डुरन्ट (1963). Our Oriental heritage. New York: Simon & Schuster.