ब्रितानी राज

भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश शासन, 1858-1947
  • अंगरेज राज सुख साज साजे सब भारी।
पै धन विदेश चलि जात इहै अति ख्वारी।
ताहू पै महंगी काल रोग बिस्तारी।
दिन दिन दूने दुःख ईस देत हा हा री॥
सबके ऊपर टिक्कस की आफत आई।
हा हा! भारत दुर्दशा न देखी जाई॥ -- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
  • भीतर भीतर सब रस चूसै, बाहर से तन मन धन मूसै।
जाहिर बातन में अति तेज, क्यों सखि साजन? नहिं अंग्रेज॥ -- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
  • धन का बहिर्गमन समस्त बुराइयों की जड़ है और भारतीय निर्धनता का मुख्य कारण । -- दादाभाई नौरोजी, १९०५ में
  • भारतीय राजाओं द्वारा कर लेना तो सूर्य द्वारा भूमि से पानी लेने के समान था जो पुनः वर्षा के रूप में भूमि पर उर्वरता देने के लिये वापस आता था, पर अँग्रेजों द्वारा लिया गया कर फिर भारत में वर्षा न करके इंग्लैण्ड में ही वर्षा करता था । -- रमेश चन्द्र दत्त
  • भारत में तीन करोड़ से लेकर पांच करोड़ तक ऐसे परिवार हैं जिनकी आय साढ़े तीन पैन्स प्रतिदिन से अधिक नहीं है। -- मैकडॉनल्ड
  • सरकार का लगान किसानों एवं उनके परिवारों के लिये पूरा अन्न भी नहीं छोड़ता । ब्रिटिश साम्राज्य में भारत के किसान के समान हृदय द्रवित करने वाला और कोई मनुष्य नहीं है । -- विलियम हण्टर-(1883 ई. में वायसरॉय की कौंसिल में)
  • 1924-25 ई. के समय संसार में सबसे कम प्रति व्यक्ति आय, भारतीय की आय से पांच गुना अधिक थी। -- कोलीन क्लार्क, राष्ट्रीय आय के विशेषज्ञ
  • मैं यह कहने में नहीं हिचकूंगा कि आधे किसान साल भर में कभी यह भी नहीं जानते कि पूरा भोजन किस चिड़िया का नाम है। यह मान लेने में कोई आपत्ति नहीं है कि भारत में 10 करोड़ मनुष्यों की प्रति व्यक्ति आय 5 डॉलर वार्षिक से अधिक नहीं है। -- असम के चीफ कमिश्नर चार्ल्स इलियन
  • 1783 की शुरुआत में एडमण्ड ब्रुक ने भविष्यवाणी की थी कि भारत के संसाधनों को इंग्लैण्ड भेजने से तथा उसके बराबर संसधन भारत में वापस न आने देने की नीति वास्तव में भारत को नष्ट कर देगी। प्लासी से वाटरलू के सत्तावन वर्षों में भारत से इंग्लैण्ड को भेजी गई सम्पत्ति का हिसाब बु्रक एडमस् ने ढाई से पांच बिलियन डॉलर लगाया था। इससे काफी पहले मैकाले ने सुझाया था कि भारत से चुरा कर इंग्लैण्ड भेजी गई सम्पत्ति मशीनी आविष्कारों के विकास हेतु मुख्य पूंजी के रुप में उपयोग हुई और इसी के चलते औद्योगिक क्रांति सम्भव हो सकी। -- विल डुरन्ट
  • ...अब हम समझ सकते हैं कि भारत में अकाल क्यों हैं? सीधे शब्दों में कहें तो इसका कारण पर्याप्त खाद्य पदार्थों का न होना नहीं है, बल्कि इसका कारण यह है कि लोग खाद्य पदार्थ खरीद पाने असमर्थ हैं। ...ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत आने के बाद भारत में अकाल अधिक बार आने लगे हैं और उनकी गंभीरता भी बढ़ी है। 1770 से 1900 तक दो लाख पचास हजार हिन्दू भुखमरी के शिकर हुए। इनमें से एक लाख पचास हजार लोग तो केवल 1877, 1889, 1897 और 1900 के अकालों में मारे गये। -- विल डुरन्ट, THE CASE FOR INDIA में
  • ये सब मैं इसलिए लिख पा रहा हूँ क्योंकि भारत को मैंने बहुत गहराई से महसूस किया है। मैंने यहाँ मेहनती और महान लोगों को अपने सामने भूख से मरते देखा। ये लोग अकाल ये जनसंख्या वृद्धि से नहीं मर रहे हैं बल्कि इनको ब्रिटिश शासन तिल-तिल कर मार रहा है। ब्रिटेन ने भारत के लोगों के साथ घिनौना अपराध किया है जो इतिहास में दर्ज हो चुका है। ब्रिटिश भारत को साल दर साल मारते रहे और इसके लिए उन्होंने हिन्दू शासकों का ही सहारा लिया। एक अमेरिकन होते हुए मैं ब्रिटिशों के इस अत्याचार की निन्दा करता हूँ। -- विल डुरन्ट, 1930 में लिखी पुस्तक ‘द केस फॉर इंडिया' में

इन्हें भी देखें

सम्पादन