पूँजी
आरक्षित पूजी
पूँजी से आशय उन सब वस्तुओं से है जो वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में सहायक हो। पूँजी, उत्पादन का एक साधन है।
उद्धरण
सम्पादन- बुजुर्वा समाज में, पूँजी स्वतन्त्र होती है और इसका व्यक्तित्व होता है जबकि जीवित व्यक्ति दूसरे पर निर्भर होता है और उसका कोई व्यक्तित्व नहीं होता। -- कार्ल मार्क्स
- श्रम, पूँजी के पहले तथा उससे स्वतन्त्र है। पूँजी तो केवल श्रम का फल है। पूँजी का अस्तित्व कभी न होता यदि श्रम का अस्तित्व पहले से न होता। श्रम, पूँजि से श्रेष्ठ है। -- अब्राहम लिंकन, अपने एक भाषण में ((3 दिसम्बर 1861)
- पूँजी, आबादी की अपेक्षा तेजी से बढ़ती है। -- कार्ल मार्क्स
- पूँजी, प्रभुत्व की खोज में रहती है। पूजीँ बढ़ती है और फैलती है और जितना कुछ दिखता है उस सबको यह अपने अधिकर में लेने की की कोश्श करती है। -- Walter Rodney, How Europe Underdeveloped Africa. East African Publishers. 1972. p. 185. ISBN 978-9966-25-113-8.
- उसकी पूँजी उससे लगातार एक रूप से दूर जाती है और दूसरे रूप में वापस आती है। और इस प्रकार से घूमने से ही यह उसे कोई लाभ दे सकती है। इसलिये इस प्रकार की पूँजी को घूर्णी पूँजी (circulating capitals) कह सकते हैं। -- आदम स्मिथ (1776) The Wealth of Nations Book II Chapter I, p. 305
- कोई भी पूँजी यदि स्थिर हो तो उससे कोई राजस्व नहीं पैदा होता। केवल पूँजी के घूमते रहने से राजस्व पैदा होता है। -- आदम स्मिथ (1776) The Wealth of Nations Book II Chapter I, p. 311