कार्ल मार्क्स

जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, पत्रकार और क्रांतिकारी समाजवादी (1818-1883)
कार्ल मार्क्स

कार्ल मार्क्स

सम्पादन
  • लोकतंत्र समाजवाद का रास्ता है।
  • धर्म लोगों का अफीम है।
  • साम्यवाद के सिद्धांत का एक वाक्य में अभिव्यक्त किया जा सकता है: सभी निजी संपत्ति को ख़त्म किया जाये।
  • अगर कोई चीज निश्चित है तो ये कि मैं खुद एक मार्क्सवादी नहीं हूँ।
  • बहुत सारी उपयोगी चीजों के उत्पादन का परिणाम बहुत सारे बेकार लोग होते हैं।
  • धर्म मानव मस्तिष्क जो न समझ सके उससे निपटने की नपुंसकता है।
  • नौकरशाह के लिए दुनिया महज एक हेर-फेर करने की वस्तु है।
  • पूँजी मृत श्रम है, जो पिशाच की तरह केवल जीवित श्रमिकों का खून चूस कर जिंदा रहता है, और जितना अधिक ये जिंदा रहता है उतना ही अधिक श्रमिकों को चूसता है।
  • सामाजिक प्रगति समाज में महिलाओं को मिले स्थान से मापी जा सकती है।
  • इतिहास खुद को दोहराता है, पहले एक त्रासदी की तरह, दुसरे एक मज़ाक की तरह।

  • धर्म का अंत होना ही लोगों की खुशी के लिए पहली आवश्यकता है।
  • लोग क्या सोचेंगे , ये सोचकर अपने जूनून को मत छोड़ो
  • मजदूरों के पास अपनी जंजीरों के अलावा खोने को कुछ और नहीं है और उनके पास जीतने को पूरी दुनिया है ।
  • समय सबकुछ है , इंसान कुछ भी नहीं ।
  • धर्म जनता के लिए अफीम की तरह है ।
  • पूँजी मृतश्रम है , जो पिशाच की तरह केवल जीवित श्रमिकों का खून चूस कर जिंदा रहता है ,और जितना अधिक ये जिंदा रहता है उतना ही अधिक श्रमिकों का खून चूसता है ।
  • दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ , तुम्हारे पास खोने को कुछ भी नहीं है, सिवाय अपनी जंजीरों के ।
  • सामाजिक प्रगति समाज में महिलाओं को मिले सम्मान से मापी जा सकती है ।
  • नौकरशाह के लिए दुनिया महज एक हेर फेर करने की वस्तु है।
  • इतिहास कुछ भी नही करता।उसके पास आपार धन नहीं होता, वे लड़ाइयांं नही लड़ता।वो तो इंसान है , वास्तविक , जीवित , जो ये सब करते हैं।
  • अगर कोई चीज निश्चित है तो वे कि मैं खुद एक मार्क्सवादी नहीं हूँ।
  • आजादी जरुरत की चेतना होती है , वह तब तक अंधी रहती है जब तक उसे होश न आ जाये।
  • बड़ी मात्रा में उपयोग की चीजों का उत्पादन का परिणाम बहुत सारे बेकर लोग होते हैं ।
  • अमीर गरीब के लिए कुछ भी कर सकते है ,लेकिन उनके ऊपर से हट नहीं सकते।
  • बिना किसी शक के मशीनों ने सम्रद्ध आलसियों की संख्या बहुत अधिक बढ़ा दी है ।
  • बिना उपयोग की वस्तु हुए किसी चीज की कीमत नहींं हो सकती।
  • चिकित्सा संदेह तथा बीमारी को भी ठीक करती है ।
  • इतिहास खुद को दोहराता है , पहले एक त्रासदी की तरह , फिर एक मजाक की तरह।
  • जीने और लिखने के लिए लेखक को पैसा कमाना चाहिए , लेकिन किसी भी सूरत में उसे पैसा कमाने के लिए जिना और लिखना नहीं चाहिए।
  • लोकतंत्र समाजवाद का रास्ता है ।
  • यूरोप को एक काली छाया सता रही है , साम्यवाद की छाया ।
  • क्षण लाभ के तत्व है ।
  • सामाजिक प्रगति को महिलाओं की सामाजिक स्थिति से मापा जा सकता है ।
  • वैज्ञानिक आलोचना पर आधारित प्रत्येक राय का मैं स्वागत करता हूँ।
  • अज्ञान ने अभी तक कभी किसी की मदद नहीं की।
  • प्रत्येक से उनकी क्षमता के अनुसार , प्रत्येक को उनकी आवश्यकता के अनुसार।
  • दार्शनिकों ने संसार की केवल विभिन्न प्रकार से व्याख्या की है।हालांकि बात इसे बदलने की है।
  • क्रांतियां इतिहास के इंजन है।
  • इतिहास खुद को दोहराता है , पहले त्रासदी के रूप में दूसरे तमाशे के रूप में।
  • पुरूष अपना इतिहास खुद बनाते हैं, लेकिन वे इसे वैसा नहीं बनाते जैसा वे चाहते हैं।
  • नरक का मार्ग अच्छे इरादे से तैयार किया जाता है।


  • धर्म लोगों का अफीम है।
  • सामाजिक प्रगति समाज में महिलाओं को मिले स्थान से मापी जा सकती है।
  • नौकरशाह के लिए दुनिया एक हेर-फेर करने की वस्तु है।
  • अगर कोई चीज निश्चित है तो ये कि मैं खुद एक मार्क्सवादी नहीं हूँ।
  • शांति का अर्थ साम्यवाद के विरोध का नहीं होना है।
  • जरुरत तब तक अंधी होती है जब तक उसे होश न आ जाए। आजादी जरुरत की चेतना होती है।
  • अमीर गरीब के लिए कुछ भी कर सकते हैं लेकिन उनके ऊपर से हट नहीं सकते।
  • लोकतंत्र समाजवाद का रास्ता है।
  • कोई भी इतिहास की कुछ जानकारी रखता है वो ये जनता कि महान सामाजिक बदलाव बिना महिलाओं के उत्थान के असंभव है। सामाजिक प्रगति महिलाओं की सामाजिक स्थिति को देखकर मापी जा सकती है।
  • पूंजी मृत श्रम है, जो पिशाच की तरह सिर्फ जीवित श्रमिकों का खून चूस कर जिंदा रहता है, और जितना अधिक ये जिंदा रहता है उतना ही अधिक श्रमिकों को चूसता है।
  • धर्म मानव मस्तिष्क जो न समझ सके उससे निपटने की नपुंसकता है।
  • मजदूरों के पास अपनी जंजीरों के अलावा और कुछ भी खाने को नहीं है। उनके पास जीतने को एक दुनिया है।
  • मानसिक पीड़ा का एकमात्र मारक शारीरिक पीड़ा है।
  • अमीर गरीब के लिए कुछ भी कर सकते हैं लेकिन उनके ऊपर से हट नहीं सकते।
  • अनुभव सबसे खुशहाल लोगों की प्रशंसा करता है, वे जिन्होंने सबसे अधिक लोगों को खुश किया।
  • बिना किसी शक के मशीनों ने समृद्ध आलसियों की संख्या बहुत अधिक बढ़ा दी है।
  • यह बिलकुल असंभव है कि प्रकृति के नियमो से ऊपर उठा जाए। जो ऐतिहासिक परिस्थितियों में बदल सकता है वह महज वो रूप है जिसमें ये नियम खुद को क्रियांवित करते हैं।
  • समाज व्यक्तियों से नहीं बना होता है बल्कि खुद को अंतर संबंधों के योग के रूप में दर्शाता है, वो संबंध जिनके बीच में व्यक्ति खड़ा होता है।
  • कारण हमेशा से अस्तित्व में रहे हैं, लेकिन हमेशा उचित रूप में नहीं।
  • जमींदार और सभी लोगों की तरह, वहां से काटना पसंद करते हैं जहाँ उन्होंने कभी बोया नहीं।
  • बिना उपयोग की वस्तु हुए किसी चीज की कीमत नहीं हो सकती।
  • जीने और लिखने के लिए लेखक को पैसा कमाना चाहिए, लेकिन किसी भी सूरत में उसे पैसा कमाने के लिए जीना और लिखना नहीं चाहिए।
  • लोगों के विचार उनकी भौतिक स्थिति के सबसे प्रत्यक्ष उद्भव हैं।
  • जितना अधिक श्रम का विभाजन और मशीनरी का उपयोग बढ़ता है, उतना ही श्रमिकों के बीच प्रतिस्पर्धा बढती है और उतना ही उनका वेतन कम होता जाता है।
  • जबकि कंजूस मात्र एक पागल पूंजीपति है, पूंजीपति एक तर्कसंगत कंजूस है।
  • लेखक इतिहास के किसी आन्दोलन को शायद बहुत अच्छी तरह से बता सकता है, लेकिन निश्चित रूप से वह इसे बना नहीं सकता।
  • शाशक वर्ग के विचार हर युग में सत्तारूढ़ विचार होते हैं, यानि जो वर्ग समाज की भौतिक वस्तुओं पर शासन करता है, उसी समय में वह उसके बौद्धिक बल पर भी शासन करता है।
  • चिकित्सा संदेह और बीमारी को भी ठीक करती है।
  • शायद ये कहा जा सकता है कि मशीनें विशिष्ट श्रम के विद्रोह को दबाने के लिए पूंजीपतियों द्वारा लगाए गए हथियार हैं।
  • मानसिक श्रम का उत्पाद-विज्ञान-हमेशा अपने मूल्य से कम आँका जाता है, क्योंकि इसे पुनः उत्पादित करने में लगने वाले श्रम-समय का इसके मूल उत्पादन में लगने वाले श्रम समय से कोई संबंध नहीं होता।
  • सभ्यता और आमतौर पर उद्योगों के विकास ने हमेशा से खुद को वनों के विनाश में इतना सक्रिय रखा है कि उसकी तुलना में हर एक चीज जो उनके संरक्षण और उत्पत्ति के लिए की गई है वह नगण्य है।
  • क्रांतियाँ इतिहास के इंजिन हैं।
  • एक भूत यूरोप को सता रहा है-साम्यवाद का भूत।
  • कारण हमेशा से अस्तित्व में रहे हैं, लेकिन हमेशा उचित रूप में नहीं।
  • हमें ये कहना चाहिए कि एक व्यक्ति के एक घंटे की कीमत दुसरे व्यक्ति के एक घंटे के बराबर होती है, बल्कि ये कहें कि एक घंटे के दौरान एक आदमी उतना ही मूल्यवान है जितना कि एक घंटे।
  • धर्म दीन प्राणियों का विलाप है, बेरहम दुनिया का ह्रदय है और निष्प्राण परिस्थितियों का प्राण है। यह लोगों का अफीम है।
  • लोगों की खुशी के लिए पहली आवश्यकता धर्म का अंत है।
  • पिछले सभी समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है।
  • पूंजी मजदुर की सेहत और या उसके जीवन की लंबाई के प्रति लापरवाह है, जब तक कि उसके ऊपर समाज का दवाब न हो।
  • बहुत साडी उपयोगी चीजों के उत्पादन का परिणाम बहुत सरे बेकार लोग होते हैं।
  • साम्यवाद के सिद्धांत को एक वाक्य में अभिव्यक्त किया जा सकता है: सभी निजी संपत्ति को खत्म किया जाए।
  • इतिहास कुछ भी नहीं करता। उसके पास आपार धन नहीं होता, वो लड़ाईयां नहीं लड़ता। वो तो मनुष्य है, वास्तविक, जीवित, जो ये सब करते हैं।
  • पूंजीवादी समाज में पूंजी स्वतंत्र और व्यक्तिगत है, जबकि जीवित व्यक्ति आश्रित है और उसकी कोई निजता नहीं है।
  • लेखक इतिहास के किसी आंदोलन को शायद बहुत अच्छी तरह से बता सकता है, लेकिन निश्चित रूप से इसका सृजन नहीं कर सकता।
  • चिकित्सा बीमारी की तरह संदेह को भी ठीक करती है।
  • इंडस्ट्रियल रूप से ज्यादा विकसित देश कम विकसित देशों की तुलना में खुद की छवि दिखाते हैं।
  • पूंजीवादी उत्पादन इसलिए प्रौद्योगिकी विकसित करता है और विभिन्न प्रक्रियाओं को एक पूर्ण समाज के रूप में संयोजित करता है केवल संपत्ति के मूल स्त्रोतों जमीन और मजदूर की जमीन खोदकर।
  • कई उपयोगी चीजों का उत्पादन कई बेकार लोगों को भी उत्पन्न करता है।
  • क्रांति के लिए अंग्रेजी में सभी आवश्यक वस्तुएं हैं लेकिन उसमे कमी है है सामान्यीकरण और क्रांतिकारी उत्साह की भावना की।
  • लेखक बहुत अच्छी तरह से अपने मुखपत्र के रूप में इतिहास के एक आन्दोलन की सेवा कर सकते हैं, लेकिन वह निश्चित रूप से इसे पैदा नहीं कर सकते।
  • समय सबकुछ है, इंसान कुछ भी नहीं।
  • आजादी जरुरत की चेतना होती है।
  • लोग क्या कहते हैं, सोचकर जीवन में अपने जूनून को मत छोड़ें।
  • हर किसी से उसकी क्षमता के अनुसार, हर किसी को उसकी जरुरत के अनुसार।
  • इतिहास खुद को दोहराता है, पहले एक त्रासदी की तरह, दुसरे एक मजाक की तरह।