पण्डित
(पाण्डित्य से अनुप्रेषित)
- परिच्छेदो हि पाण्डित्यं यदापन्ना विपत्तयः।
- अपरिच्छेदकर्तॄणां विपदः स्युः पदे पदे॥ -- हितोपदेशः
- जब संकट आ जाते हैं तब परिच्छेद (अच्छी तरह से विश्लेषण करके तथा सोच समझकर काम करने) में ही पाण्डित्य है। बिना सोचे समझे काम करने वालों पर हर कदम पर संकट आते रहते हैं।
- शत दद्यान्न विवदेदिति विज्ञस्य संमतम् ।
- विना हेतुमपि द्वन्द्वमेतन्मूर्खस्य लक्षणम् ॥ -- हितोपदेश
- अपनी सैकड़ों की हानि करके भी विवाद न करे, यह ज्ञानी का लक्षण है। बिना करण के क्लह कर बैठना मूर्ख का लक्षण है।
- उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते
- हयाश्च नागाश्च वहन्ति बोधिताः।
- अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः
- परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः ॥ -- हितोपदेश, सुहृद्भेद
- (यदि बात को) स्पष्ट रूप से कहा जाय तो उसे पशु भी समझ लेते हैं। घोड़े एवं हाथी जैसे पशु भी (स्पष्ट रूप से दिये गये आदेश को ) ग्रहण कर उसका पालन करते हैं। लेकिन पण्डित तो अनकही बात को भी समझ लेता है। दूसरे के संकेत मात्र को समझ लेना ही बुद्धि का फल है। अर्थात बुद्धिमान व्यक्ति थोड़ा सा संकेत मिलने पर भी सारी बात समझ लेता है।
- शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खा यस्तु क्रियावान् पुरूषः स विद्वान् ।
- शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद भी लोग मूर्ख बने रहते है। परन्तु जो क्रियाशील है वही सही अर्थ से विद्वान है ।
- झटिति पराशयवेदिनो हि विज्ञाः। (नैषधचरित ४.११८)
- अर्थ - विज्ञ जन झट दूसरे का मतलब समझ जाते हैं।
- देशाटनं पण्डितमित्रता च वाराङ्गना राजसभाप्रवेशः ।
- अनेकशास्त्रार्थविलोकनं च चातुर्यमूलानि भवन्ति पञ्च ॥
- देशाटन, बुद्धिमान से मैत्री, वारांगना (गणिका), राजसभा में प्रवेश, और शास्त्रों का परिशीलन – ये पाँच चतुराई के मूल है ।
- बालः पश्यति लिङ्गं मध्यम बुद्धि र्विचारयति वृत्तम् ।
- आगम तत्त्वं तु बुधः परीक्षते सर्वयत्नेन ॥ -- षोडषप्रकरण
- जो बाह्य चिह्नों को देखता है, वह बालबुद्धि का है; जो वृत्ति का विचार करता है, वह मध्यम बुद्धि का है; और जो सर्वयत्न से आगम तत्त्व की परीक्षा करता है, वह बुध/ज्ञानी है ।
- आत्मवत सर्वभूतेषु यः पश्यति सः पण्डितः ।
- अर्थ - जो सारे प्राणियों को अपने समान देखता है, वही पण्डित है।
- काम, क्रोध, मद, लोभकी, जौ लौं मन में खान।
- तौं लौ पंडित मूरखौ, तुलसी एक समान ॥ -- तुलसीदास
- काम, क्रोध, मद और लोभ की खान जब तक मन में है, तब तक पण्डित और मूर्ख दोनों एक समान हैं।
- सुख दुख या संसार में , सब काहू को होय ।
- ज्ञानी काटै ज्ञान से , मूरख काटै रोय ॥
- अर्थ सत्य और असत्य का निर्णय करने वाला बुद्धि का जो स्वामी हो उसका नाम पण्डित है । -- अष्टाध्यायी 5/2/36
- विद्वान विपशचिद् दोषज्ञः सनसुधी कोविदो बुधः
- धीरो मनीषी ज्ञः प्राज्ञः संख्यावानपंडित कवि: ॥ -- अमरकोष 2/7/5
- अर्थ - विद्वान, विपशचिद् दोषज्ञ (दोषों को जानने वाला) सन् साधु सुधी कोविद वेदों को जानने वाला बुध धीर मनीषी संख्यावान विचारशिल और कवि पंडित कहाते हैं।
- विद्याविनयसमपन्ने ब्राहाणे गवि हस्तिनि
- शुनि चैव शवपाके च पण्डिता समदर्शिनः॥ -- गीता 5/18
- अर्थ जो लोग विद्या और विनय से युक्त ब्राहमण में गौ और हाथी में कुत्ते और चंडाल में समान दृष्टि रखते हैं, वे ही पंडित हैं ।
विदुरनीति के अनुसार पण्डित
सम्पादन- आत्मज्ञानं समारम्भस्तितिक्षा धर्मनित्यता।
- यमर्थान्नापकर्षन्ति स वै पण्डितुच्यते॥
- अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान, उद्योग (समार्म्भ), दुःख सहने की शक्ति और धर्म में नित्यता - ये गुण जिस मनुष्य को पुरुषार्थ से दूर नहीं कर पाते हैं, वही पण्डित कहलाता है।
- निषेवते प्रशस्तानि निन्दितानि न सेवते।
- अनास्तिकः श्रद्धधान एतत् पण्डितलक्षणम्॥
- जो अच्छे कर्मों का सेवन करता और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो आस्तिक और श्रद्धालु है, उसके वे सद्गुण पण्डित होने के लक्षण हैं।
- क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च ह्रीः स्तम्भो मान्यमानिता।
- यमर्थान्नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते॥
- क्रोध, हर्ष, गर्व, लज्जा, उद्दण्डता तथा अपने को पूज्य समझाना - ये भाव जिस को पुरुषार्थ से भ्रष्ट नहीं करते, वही पण्डित कहलाता है।
- यस्य कृत्यं न जानन्ति मन्त्रं वा मन्त्रितं परे।
- कृतमेवास्यजानन्ति स वै पण्डित उच्यते॥
- दूसरे लोग जिसके कर्तव्य, सलाह और पहले से किये हुए विचार को नहीं जानते , बल्कि काम पूरा होनेपर ही जानते हैं, वही पण्डित कहलाता है।
- यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः।
- समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते॥
- सर्दी-गर्मी, भय-अनुराग, सम्पत्ति-दरिद्रता- ये जिसके कार्य में विघ्न नहीं डालते , वही पण्डित कहलाता है।
- यस्य संसारिणी प्रज्ञा धर्मार्थावनुवर्तते।
- कामादर्थं वृणीते यः स वै पण्डित उच्यते॥
- जिसकी लौकिक बुद्धि धर्म और अर्थ का ही अनुसरण करती है और जो भोग को छोड़कर पुरुषार्थ का ही वरण करता है, वहीं पण्डित कहलाता है।
- यथाशक्ति चिकीर्षन्ति यथाशक्ति च कुर्वते।
- न किंचिदवमन्यन्ते नराः पण्डितबुद्धयः॥
- विवेकपूर्ण बुद्धिवाले पुरुष शक्तिके अनुसार काम करनेकी इच्छा रखते हैं और करते भी हैं तथाकिसी वस्तुको तुच्छ समझकरउसकी अवहेलना नहीं करते।
- क्षिप्रं विजानन्ति चिरं श्रुणोति
- विज्ञाय चार्थं भजते न कामात्।
- नासम्पृष्टो व्युपयुङ्क्ते परार्थे
- तत् प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य॥
- विद्वान् पुरुष विषय को देर तक सुनाता है, किन्तु शीघ्र ही समझ लेता है, समझकर कर्तव्यबुद्धि से पुरुषार्थ में प्रवृत्त होता है- कामना से नहीं । विना पूछे दूसरे के विषय में व्यर्थ कोई बात नहीं कहता है। उसका वह स्वभाव पण्डित की मुख्य पहचान है।
- नाप्राप्यमभिवाञ्छन्ति नष्टं नेच्छन्ति शोचितुम्।
- आपत्सु च न मुह्यन्ति नराः पण्डितबुद्धयः॥
- पण्डितों जैसी बुद्धि रखनेवाले मनुष्य दुर्लभ वस्तु की कामना नहीं करते, खोयी हुई वस्तु के विषय में शोक करना नहीं चाहते और विपत्ति में पड़कर घबराते नहीं हैं।
- निश्चित्य यः प्रक्रमते नान्तर्वसति कर्मणः।
- अवन्ध्यकालो वश्यात्मा स वै पण्डितउच्यते॥
- जो पहले निश्चय करके फिर कार्य का आरम्भ करता है, कार्य के बीच में नहीं रुकता, समय को व्यर्थ नहीं जाने देता, और चित्त को वश में रखता है।
- आर्यकर्मणि रज्यन्ते भूतिकर्माणि कुर्वते।
- हितं च नाभ्यसूयन्ति पण्डिताः भरतर्षभ॥
- भरतकुलभूषण! पण्डितजन श्रेष्ठकर्मों में रुचि रखते हैं, उन्नति के कार्य करते हैं, तथा भलाई करने वालों में दोष नहीं निकालते।
- न हृष्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते।
- गाङ्गो ह्रद इवाक्षोभ्यो यः स पण्डित उच्यते॥
- जो अपना आदर होने पर हर्ष के मारे फूल नहीं जाता, अनादर से संतप्त नहीं होता तथा गंगाजी के ह्रद (गहरे गर्त) – के सम्मान जिसके चित्त को क्षोषुभ नहीं होता, वही पण्डित कहलाता है।
- तत्त्वज्ञः सर्वभूतानांयोगज्ञः सर्वकर्मणाम्।
- उपायज्ञोमनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते॥
- जो सम्पूर्ण भौतिक पदार्थों की वास्तविकता का ज्ञान रखनेवाला, सब कार्यों के करने का ढंग जानने वाला तथा मनुष्यों में सबसे बढ़कर उपाय का जानकार है, वह मनुष्य पण्डित कहलाता है।
- प्रवृत्तवाक् चित्रकथ ऊहवान् प्रतिभानवान्।
- आशु ग्रन्थस्य वक्ता च यः स पणडित उच्यते॥
- जिसकी वाणी कहीं रुकती नहीं , जो विचित्र ढंग से बातचीत करता है, तर्क में निपुण और प्रतिभाशाली है तथा जो ग्रन्थ के तात्पर्य को शीघ्र बता सक्ता है, वह पण्डित कहलाता है।
- श्रुतं प्रज्ञानुगं यस्य प्रज्ञा चैव श्रुतानुगाः।
- असंभिन्नार्यमर्यादः पण्डिताख्यां लभेत सः॥
- जिसकी विद्या बुद्धिका अनुसरण करती है, और बुद्धि विद्या का, तथा जो शिष्ट पुरुषों की मर्यादा का उल्लंघन नही करता, वही पण्डित की संज्ञा पा सकता है।
- अश्रुतश्च समुन्नद्धो दरिद्रश्च महामनाः।
- अर्थांश्चाकर्मणा प्रेप्सुर्मूढ इत्यच्यते बुधैः॥
- विना पढ़े ही गर्व करने वाले, दरिद्र होकर भी बड़े -बड़े मनोरथ करने वाले और बिना काम किये ही धन पाने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को पण्डित लोग मूर्ख कहते हैं।
- अर्थं महान्तमासाद्य विद्यामैश्वर्यमेव च।
- विचरत्यसमुन्नद्धो यः स पण्डित उच्यते॥
- जो बहुत धन, विद्या तथा ऐश्वर्य को पाकर भी उद्दण्डतापूर्वक नही चलता, वह पण्डित कहलाता है।
इन्हें भी देखें
सम्पादन- मूर्ख या मूढ़