छल
छल, कपट, धोखा समानार्थी हैं।
उक्तियाँ
सम्पादन- रहिमन वहां न जाइये, जहां कपट को हेत।
- हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत।। -- रहीम
- ऐसी जगह कभी नहीं जाना चाहिए, जहां छल-कपट से कोई अपना मतलब निकालना चाहे। हम तो बड़ी मेहनत से पानी खींचते हैं कुएं से ढेंकुली द्वारा, और कपटी आदमी बिना मेहनत के ही अपना खेत सींच लेते हैं।
- उनसे मत डरो जो बहस करते हैं, उनसे डरो जो छल करते हैं। -- डेल कारनेगी
- मनुष्य स्वभाव से देवतुल्य है। जमाने के छल-प्रपंच या और परिस्थितियों के वशीभूत होकर वह अपना देवत्व खो बैठता है। -- प्रेमचन्द
- पाप, दुराचार, अनीति, छल एवं अपराधों की प्रवृत्तियां जहाँ पनप रही होंगी वहाँ प्रगति का मार्ग रुक जाएगा। -- श्रीराम शर्मा
- निर्मल मन जन सो मोहि पावा । मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥ -- रामचरितमानस में श्रीराम का वक्तव्य