• अग्निशेषमृणशेषं शत्रुशेषं तथैव च ।
पुनः पुनः प्रवर्धेत तस्माच्शेषं न कारयेत् ॥
अग्नि , ऋण , शत्रु - इनको शेष छोड़ना नही चाहिए क्योंकि ये थोड़े से भी बच जाते हैं तो फिर से बढ़ जाते हैं।
  • न कश्चित् कस्यचिन्मित्रं न कश्चित् कस्यचित् रिपुः ।
व्यवहारेण जायन्ते मित्राणि रिपवस्तथा ॥
कोई भी किसी का मित्र नहीं होता और ना ही कोई किसी का शत्रु। हमारे व्यवहार के कारण ही मित्र और शत्रु बनते हैं
  • वहेदमित्रं स्कन्धेन यावत्कालविपर्ययः ।
आगतं समयं वीक्ष्य भिन्द्याद्घटमिवाश्मनि ॥
शत्रु को तबतक कंधे पर बिठा कर चलना चाहिए जबतक हमारा उल्टा समय हो । जब हमारा योग्य समय लगे तब जैसे घड़े को पत्थर पर पटक कर फोड़ते है बस उसी तरह शत्रु का भी तुरंत नाश करना चाहिए ।
  • शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाएं रखें। -- चाणक्य
  • शत्रु की बुरी आदतों को सुनकर कानों को सुख मिलता है। -- चाणक्य
  • आदमी का सबसे बड़ा शत्रु उसका अहंकार है। -- मुंशी प्रेमचंद
  • अज्ञानता मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, इसलिए ज्ञान से अज्ञानता को खत्म करो। -- ज्योतिबा फुले
  • भय ही एकमात्र सच्चा शत्रु है, जो अज्ञान से उत्पन्न हुआ है और क्रोध और घृणा का जनक है। -- एडवर्ड अल्बर्ट
  • बुरी सलाह से बड़ा कोई दुश्मन नहीं। -- सोफोक्लेस

इन्हें भी देखें सम्पादन