जैसे देवता स्वर्ग की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर दिशाओं के नरेश तथा काम्बोज, शक, खश, शाल्व, मत्स्य, कुरु और मध्यप्रदेश के सैनिक एवं मलेच्छ, पुलिन्द, द्रविद, आन्ध्र और कांचीदेशीय योद्धा जिस सेना की रक्षा करते हैं, जो देवताओं की सेना के समान दुर्धर्ष एवं संगठित है, कौरवराज की समुद्रतुल्य उस सेना को क्या तुम कूपमण्डूक की भाँति अच्छी तरह समझ नहीं पाते हैं?
अनेकाश्चार्य-भूयिठां यो न पश्यति मेदिनीम् ।
निजकान्ता-सुखासक्तः स नरः कूप-दर्दुरः ॥ -- सम्यकत्व-कौमुदी
अपनी स्त्री के सुख में आसक्त हुआ जो पुरुष अनेक आश्चर्यों से भरी हुई पृथ्वी को नहीं देखता है, वह कूपमण्डूक है।
यो न निर्गत्य निःशेषां विलोकयति मेदिनीं ।
अनेकाद्भुतवृत्तांतां स नरः कूपदर्दुरः ॥ -- उपमितिभवप्रपञ्च
जो कभी बाहर निकलकर सम्पूर्ण पृथ्वी को और अनेक अद्भुत वृत्तान्तों को नहीं देखता, वह मनुष्य कुएँ का मेढ़क है।
आओ, मनुष्य बनो। कूपमंडूकता छोड़ो और बाहर दृष्टि डालो। देखो, अन्य देश किस तरह आगे बढ़ रहे हैं। -- स्वामी विवेकानन्द
जो मनुष्य आश्चर्य भरे देशों की यात्राएँ नहीं करता , वह कुएँ के मेढ़क के समान है। -- सिद्धर्षि सूरी