जीवटराम भगवानदास कृपलानी

भारतीय राजनेता
(आचार्य कृपलानी से अनुप्रेषित)

जीवटराम भगवानदास कृपलानी (11 नवम्बर 1888 - 19 मार्च 1982) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी, शिक्षक, विचारक एवं राजनेता थे। उन्हें आचार्य कृपलानी के नाम से जाना जाता था। वर्ष 1912 से 1927 तक उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में पूरी तरह से शामिल होने से पूर्व विभिन्न स्थानों पर अध्यापन का कार्य किया।

आचार्य कृपलानी की स्मृति में १९८९ में भारत सरकार द्वारा जारी डाकटिकट

भारत के स्वतन्त्र होने के बाद कांग्रेस छोड़कर वे 'किसान मजदूर प्रजा पार्टी' के संस्थापकों में से एक बन गए। 1952, 1957, 1963 और 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में लोकसभा के लिये चुने गए। उन्होंने भारत-चीन युद्ध (1962) के तुरंत बाद वर्ष 1963 में लोकसभा में पहली बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। वे नेहरू की नीतियों और इंदिरा गांधी के शासन के आलोचक थे। उन्हें आपातकाल (1975) के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया।

आचार्य कृपलानी गांधी: हिज़ लाइफ एंड थॉट (1970) सहित कई पुस्तकों के लेखक थे। उनकी आत्मकथा 'माई टाइम्स' (My Times) वर्ष 2004 में मरणोपरांत प्रकाशित हुई।

  • अज्ञान किसी भी जनतांत्रिक सरकार को, पशुओं द्वारा चुनी हुई, पशुओं की लिए, पशुओं की सरकार बना देती हैं।
  • एक दिन अनमने भाव से ही मैंने अपने रूममेट की पत्रिका पलटनी शुरू की और यह इतनी जबरदस्त लगी कि अंत तक पढ़े बगैर मैं इसे छोड़ न सका। यह पत्रिका थी बिपिन चंद्र पाल के संपादन में निकलने वाली ‘न्यू इंडिया’। इसके बाद मैं इसे नियमित रूप से पढ़ने लगा और बाद में इसका ग्राहक भी बन गया। इससे पहले मैंने किसी महान राष्‍ट्रभक्त के बारे में नहीं सुना था। यह साप्ताहिक हर हफ्ते हमारी गुलामी, राष्‍ट्र के रूप में हमारे अपमान, यहां से संपदा की लूट, हमारे विदेशी मालिकों के फायदे के लिए देश के उद्योग-धंधों की बरबादी पर लिखा करता था। बिपिन चंद्र पाल बहुत ही जोर-शोर से मुल्क की आजादी की वकालत और उसको पाने के तरीकों का जिक्र करते थे; पर अभी ‘स्वराज’ शब्द प्रचलन में नहीं आया था। पत्रिका के संपादक और लेखक इतनी तार्किक और दमदार बातें लिखते थे कि वह हमारे दिमाग में ही नहीं, दिल में भी बैठ जाती थीं। विदेशी शासकों से हम किस प्रकार अपमानित हो रहे हैं, वे कैसे हमें लूट रहे हैं, इस बारे में मेरी आंखें खुलती जा रही थीं। विदेशी किस्म की शिक्षा हमारी आंखों पर पट्टी डाले हुई थी। मैंने फिर से अपना इतिहास और राष्‍ट्रीय साहित्य पढ़ना शुरू किया, तब बंगाल का विभाजन होने वाला था और उसके खिलाफ काफी कुछ लिखा जा रहा था। -- आचार्य जे.बी. कृपलानी , बीए के विद्यार्थी-जीवन की एक घटना के अपने संस्मरण में
  • मौलाना का हमला सही नहीं है। कृपलानी जी ने लिखा है, ‘मैंने मौलाना की आलोचना से सरदार को बचाने की कोशिश की है। उनमें कोई दोष न हो, ऐसा नहीं है, पर मौलाना का हमला सही नहीं है। मैंने सिर्फ ऐतिहासिक रिकार्ड को सही करने की कोशिश की है। पर मौलाना ने जो कुछ लिखा है, उससे यह धारणा बनती है कि सरदार अगर मुसलमानों के दुश्‍मन नहीं तो दिल से सांप्रदायिक व्यक्ति तो थे ही, जबकि यह सच्चाई नहीं है। -- मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा 'इंडिया विन्स फ्रीडम' में सरदार पटेल को दोषी ठहराने पर जेबी कृपलानी की प्रतिक्रिया

लोकसभा में बहस

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  • हाल ही में हमने चीन के साथ एक संधि की है। मुझे लगता है कि चीन ने कम्युनिस्ट बनने के बाद तिब्बत के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई की है। दलील यह है कि चीन के पास तिब्बत पर आधिपत्य का प्राचीन अधिकार था। यह अधिकार अप्रचलित, पुराना और पुरातन था। वास्तव में इसका प्रयोग कभी नहीं किया गया। समय के प्रवाह से यह समाप्त हो गया था। भले ही यह समाप्त न हुआ हो, लोकतंत्र के आज के युग में, जिसकी हमारे कम्युनिस्ट मित्र कसम खाते हैं, जिसकी चीनी कसम खाते हैं, यह सही नहीं है कि इस प्राचीन आधिपत्य की बात करें और इसे ऐसे देश में एक नए रूप में प्रयोग करें जिसके पास चीन से कुछ भी लेना-देना नहीं था। -- 8 मई 1959 की लोकसभा की बहस में, अरुण शूरी द्वारा उद्धृत

सन्दर्भ

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