अनुवाद
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‘अनुवाद’ शब्द संस्कृत का यौगिक शब्द है जो ‘अनु’ उपसर्ग तथा ‘वाद’ के संयोग से बना है। संस्कृत के ‘वद्’ धातु में ‘घञ’ प्रत्यय जोड़ देने पर भाववाचक संज्ञा में इसका परिवर्तित रूप है ‘वाद’। ‘वद्’ धातु का अर्थ है ‘बोलना या कहना’ और ‘वाद’ का अर्थ हुआ ‘कहने की क्रिया’ या ‘कही हुई बात’।
‘अनु’ उपसर्ग अनुवर्तिता के अर्थ में व्यवहृत होता है। ‘वाद’ में यह ‘अनु’ उपसर्ग जुड़कर बनने वाला शब्द ‘अनुवाद’ का अर्थ हुआ-’प्राप्त कथन को पुनः कहना’। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि ‘पुनः कथन’ में अर्थ की पुनरावृत्ति होती है, शब्दों की नहीं।
हिन्दी में अनुवाद के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले अन्य शब्द ये हैं : छाया, टीका, उल्था, भाषान्तर आदि। अन्य भारतीय भाषाओं में ‘अनुवाद’ के समानान्तर प्रयोग होने वाले शब्द हैं : भाषान्तर (संस्कृत, कन्नड़, मराठी), तर्जुमा (कश्मीरी, सिन्धी, उर्दू), विवर्तन (मलयालम), मोषिये चर्ण्यु (तमिल), अनुवादम् (तेलुगु), अनुवाद (संस्कृत, हिन्दी, असमिया, बांग्ला, कन्नड़, ओड़िआ, गुजराती, पंजाबी, सिंधी)।
कथन
सम्पादन- समस्त अभिव्यक्ति अनुवाद है क्योंकि वह अव्यक्त (या अदृश्य आदि) को भाषा (या रेखा या रंग) में प्रस्तुत करती है। -- सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन
- अनुवाद वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्थक अनुभव को एक भाषा समुदाय में संप्रेषित किया जाता है। -- पटनायक
- भाषा भेद के विशिष्ट पाठ को दूसरी भाषा में इस प्रकार प्रस्तुत करना अनुवाद है जिसमें वह मूल के भाषिक अर्थ, प्रयोग के वैशिष्ट्य को यथासंभव संरक्षित करते हुए दूसरी भाषा के पाठक को स्वाभाविक रूप से ग्राह्य प्रतीत हो। -- डॉ. सुरेश कुमार
- अनुवाद को दो संदर्भों में देखा जा सकता है- एक व्यापक और दूसरी, सीमित. व्यापक संदर्भ में अनुवाद को प्रतीक सिद्धांत के परिप्रेश्य में देखा जाता है. इस दृष्टि से मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि कथ्य का प्रतीकांतरण अनुवाद है. अपने सीमित अर्थ में अनुवाद भाषा सिद्धांत का संदर्भ लेकर चलता है. इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि कथ्य का भाषांतरण अनुवाद है। -- प्रो. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव
- अनुवाद अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की वह शाखा है जिसका संबधं विशेष रूप से अर्थांतरण की समस्या से है. यह अर्थांतरण एक भाषा के सुसंबद्ध प्रतीकों में होता है। -- डार्ट (Dostert)
- अनुवाद एक भाषा के पाठपरक उपादानों का दूसरी भाषा के पाठपरक उपादानों के रूप में समतुल्य के सिद्धांत के अधाता पर प्रतिस्थापना है। -- कैटफोर्ड (Catford)
- अनुवाद का संबंध स्रोतभाषा के संदेश का पहले अर्थ और फिर शैली के धरातल पर लक्ष्यभाषा में निकटतम, स्वाभाविक तथा तुल्यार्थक उपादान प्रस्तुत करने से होता है। -- ई. ए. नाइडा (E. A. Naida)
- अनुवाद एक श्रम-साध्य कला है जो किसी भी भाषा में मौलिक लेखन की अपेक्षा अधिक कठिन है... बेहतरीन अनुवाद वह है जो शाब्दिक न होकर प्रत्येक मूल भावना को, मूल लेख के प्रत्येक कथ्य पर समुचित ज़ोर देते हुए व्यक्त करे। -- डॉ राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. ज्ञानवती दरबार को 1960 में लिखे अपने पत्र में
- मेरा मानना है कि अनुवाद की वास्तविक कसौटी शब्दशः या वाक्यशः अनुवाद करना नहीं है। हम अपने अनुभव से जानते हैं कि यह कार्य कितना कठिन है और रोचक भी।... कठिनाई अनुवाद की नहीं, बल्कि एक भाषा के विचारों को दूसरी भाषा में अनूदित करने की है। क्या हमने अभिभाषणों का अनुवाद करते समय इन जटिलताओं का अनुभव नहीं किया है? -- डॉ राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. ज्ञानवती दरबार को 1960 में लिखे अपने पत्र में
- 'स्वराज्य' का कोई सम्यक अंग्रेजी अनुवाद नहीं है। -- महात्मा गांधी
- अनुवादक का कार्य निश्चित रूप से एक कठिन कार्य है और इसके लिये कोई धन्यवाद या प्रशंसा नहीं मिलता। अनुवादक यदि गलती करे तो उसकी बुरी तरह आलोचना होती है किन्तु वह सफल होता है तो उसकी प्रशंसा सादे शब्दों में कर दी जाती है। -- यूजीन अल्बर्ट नाइडा