हेलेन केलर
हेलेन एडम्स केलर (27 जून 1880 - 1 जून 1968) एक अमेरिकी लेखक, राजनीतिक कार्यकर्ता और व्याख्याता थीं। हेलेन ने 19 महीने की उम्र में ही देखने और सुनने की क्षमता खो दी थीं। वे कला स्नातक की उपाधि अर्जित करने वाली पहली बधिर और दृष्टिहीन थी। उन्होंने अपने पूरे जीवन में 500 से अधिक निबन्ध और लेख लिखे। उनकी प्रमुख रचनाएँ ये हैं- द स्टोरी ऑफ माय लाइफ, द वर्ल्ड आई लिव इन, हेलेन केलर, माय रिलिजन, ऑप्टिमिसम, द सांग ऑफ द स्टोन वॉल, आउट ऑफ द डार्क, शिक्षक, लाइट इन माय डार्कनेस, द वर्ल्ड आई लिव इन और ऑप्टिमिसम, टू लव दिस लाइफ, टू लव दिस लाइफ, कोटेशन बाय हेलेन केलर, हाऊ वॉल्द आई हेल्प द वर्ल्ड, मिडस्ट्रीम, द की ऑफ माय लाइफ, ऑप्टिमिसम, मिडस्ट्रीममी लेटर लाइफ, ऑप्टिमिसम, एन एस्से, द स्टोरी ऑफ माय लाइफ विथ हर लेटर्स, द ओपेन डोर, द फेथ ऑफ हेलेन केलर, द स्टोरी ऑफ माय लाइफ एंड ऑप्टिमिसम, द ओपेन डोर एंड आवर मार्क ट्वेन, लेट अस बिलीव, हेलेन केलर मैगज़ीन, टीचर ऐनी सुलिवन, माय लाइफ स्टोरी हेलेन केलर, आवर ड्यूटी टू द ब्लाइंड, हेलेन केलर जर्नल (1936-1937) ।
उक्तियाँ
सम्पादन- जीवन अगर साहस से भरी यात्रा न हुआ, तो कुछ न हुआ। (जीवन एक साहसी रोमांच है या कुछ भी नहीं है।)
- यदि हम अपने काम में लगे रहे तो हम जो चाहें वो कर सकते हैं।
- चरित्र का विकास आसानी से नहीं किया जा सकता। केवल परिक्षण और पीड़ा के अनुभव से आत्मा को मजबूत, महत्त्वाकांक्षा को प्रेरित, और सफलता को हासिल किया जा सकता है।
- खुद की तुलना ज्यादा भाग्यशाली लोगों से करने कि बजाय हमें अपने साथ के ज्यादातर लोगों से अपनी तुलना करनी चाहिए और तब हमें लगेगा कि हम कितने भाग्यवान हैं।
- अकेले हम कितना कम हासिल कर सकते हैं , लेकिन एक साथ बहुत ज्यादा।
- हम बहुत कम अकेले हासिल कर सकते हैं, लेकिन एक साथ बहुत कुछ।
- मैं अकेली हूँ, लेकिन फिर भी मैं हूँ. मैं सबकुछ नहीं कर सकती, लेकिन मैं कुछ तो कर सकती हूँ, और सिर्फ इसलिए कि मैं सब कुछ नहीं कर सकती, मैं वो करने से पीछे नहीं हटूंगी जो…
- मैं जो खोज रही हूं, वह बाहर नहीं है, वह मुझमें है।
- हम इस दुनिया में कुछ भी हासिल कर सकते हैं, अगर हम लंबे समय तक अपने फैसले पर अडिग रहें।
- साधारण चुनाव महत्वपूर्ण होते हैं और सीधे-सादे शब्द निर्णयकारी।
- सुख का एक द्वार बंद होने पर, दूसरा खुल जाता है; लेकिन कई बार हम बंद दरवाजे की ओर इतनी देर तक ताकते रहते हैं कि जो द्वार हमारे लिए खोल दिया गया है, उसे देख नहीं पाते।
- आनन्द स्वार्थ-सिद्धि से नहीं मिलता बल्कि किसी समुचित उद्देश्य में विश्वास रखने से मिलता है।
- सुरक्षा, निश्चिन्तता या बेफ़िक्री एक कल्पना है, अंधविश्वास है।
- जो लोग खुशी की तलाश में घूमते हैं, वे अगर एक क्षण रुकें और सोचें तो वे यह समझ जाएँगे कि सचमुच खुशियों की संख्या, पाँव के नीचे के दूर्वादलों की तरह अनगिनत है; या कहिए कि सुबह के फूलों पर पड़ी हुई शुभ्र चमकदार ओस की बूँदों की तरह अनन्त है।
- इतिहास ने जिन स्त्री-पुरुषों को मानवता की सेवा का अवसर देकर समादृत किया है, उनमें से अधिकांश को विपरीत परिस्थितियों का अनुभव हुआ है।
- किंवदंती है कि जब ईसा पैदा हुए तो आकाश में सूर्य नाच उठा। पुराने झाड़-झंखाड़ सीधे हो गए और उनमें कोपलें निकल आईं। वे एक बार फिर फूलों से लद गए और उनसे निकलने वाली सुगंध चारों ओर फैल गई। प्रति नए वर्ष में जब हमारे अंतर में शिशु ईसा जन्म लेता है, उस समय हमारे भीतर होने वाले परिवर्तनों के ये प्रतीक हैं। बड़े दिनों की धूप से अभिसिक्त हमारे स्वभाव, जो कदाचित् बहुत दिनों से कोंपलविहीन थे, नया स्नेह, नई दया, नई कृपा और नई करुणा प्रगट करते हैं। जिस प्रकार ईसा का जन्म ईसाइयत का प्रारंभ था, उसी प्रकार बड़े दिन का स्वार्थहीन आनंद उस भावना का प्रारंभ है, जो आने वाले वर्ष को संचालित करेगी।
- जिस तरह स्वार्थ और शिकायत से मन रोगी और धुँधला हो जाता है, उसी तरह प्रेम और उसके उल्लास से दृष्टि तीखी हो जाती है।
- जब हम यह सोचते है कि हमारे रोज के छोटे-छोटे निर्णय नगण्य हैं, तब हम अपनी तुच्छता ही प्रदर्शित करते हैं।
- आन्तरिक सत्यों में हमारी अंधता के कारण कोई अन्तर नहीं पड़ता। अधिकतम सौन्दर्य-दृष्टि तक केवल कल्पना के द्वारा ही पहुँचा जा सकता है।
- हाथ को ध्यान से देखो तो तुम्हें दिखेगा कि वह आदमी की सच्ची तस्वीर है, वह मानव-प्रगति की कहानी है, संसार की शक्ति और निर्बलता का माप है।
- मैं अंधी हूँ और मैंने कभी इंद्रधनुष नहीं देखा; किन्तु मुझे उसकी सुन्दरता के बारे में बताया गया है। मैं जानती हूँ कि उसकी सुन्दरता सदैव ही अधूरी और टूटी-फूटी होती है। वह आसमान पर कभी भी पूर्णाकार में प्रकट नहीं होता। यही बात उन सभी वस्तुओं के बारे में सही है जिन्हें हम पृथ्वी वाले जानते हैं। जिस तरह इंद्रधनुष का वृत्त खंडित होता है, उसी तरह जीवन भी अधूरा है और हममें से हरेक के लिए टूटा-फूटा है। हम ब्राउनिंग के इन शब्दों, "पृथ्वी पर टूटे हुए बिंब, स्वर्ग में एक पूर्ण चंद्र" का अर्थ तब तक नहीं समझ सकेंगे, जब तक हम अपने खण्ड जीवन से अनन्त की ओर कदम नहीं बढ़ा लेते।
- अगर हम अपनी वर्तमान स्थिति में सफल नहीं हो सकते तो किसी अन्य स्थिति में भी नहीं हो सकेंगे। अगर हम कमल की तरह कीचड़ में भी पवित्र और दृढ़ नहीं रह सकते तो हम कहीं भी रहें, नैतिक दृष्टि से कमज़ोर ही साबित होंगे।
- आत्मज्ञान ही हमारी चेतना की शर्त और सीमा है। शायद इसलिए ही कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने अनुभव की छोटी परिधि के बाहर की बातें बहुत कम जानते हैं। वे अपने भीतर देखते हैं और उन्हें जब वहाँ कुछ नहीं मिलता तो वे यह निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि बाहर कुछ नहीं है।