हिन्दी लोकोक्ति भाग - 1

स्वर वर्ण

सम्पादन

अपने बेरों को कोई खट्टा नहीं बताता : अपनी वस्तु को कोई बुरी नहीं बताता

अपने मुँह मियाँ मिट्ठू : अपने मुँह अपनी प्रशंसा करना.

अन्त भले का भला : अच्छे आदमी की अन्त में भलाई होती है।

अन्धे के हाथ बटेर : अयोग्य व्यक्ति को कोई अच्छी वस्तु मिल जाना.

अन्धों में काना राजा : मूर्ख मण्डली में थोड़ा पढ़ा-लिखा भी विद्वान् और ज्ञानी माना जाता है।

अक्ल बड़ी या भैंस : शारीरिक बल से बुद्धि बड़ी है।

अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग : सबका अलग-अलग रंग-ढंग होना.

अपनी करना पार उतरनी : अपने ही कर्मों का फल मिलता है।

अपना उल्लू सीधा करना : अपना स्वार्थ सिद्ध करना.

अब पछताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत : समय बीत जाने पर पछताने का क्या लाभ.

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता : अकेला आदमी लाचार होता है।

अधजल गगरी छलकत जाए : डींग हांकना

आ बैल मुझे मार : जान-बूझकर आपत्ति मोल लेना।

आस पराई जो तके जीवित ही मर जाए : जो दूसरों पर निर्भर रहता है वह जीवित रहते हुए भी मृतप्राय होता है। नहीं. अँधेरे घर का उजाला : घर का अकेला, लाड़ला और सुन्दर पुत्र.

आए की खुशी न गए का गम : हर हालत में संतोष होना.
वह बहुत सन्तोषी आदमी है। लाभ और हानि दोनों होने पर वह प्रसन्न रहता है। उसके ही जैसे लोगों के लिए कहा जाता है कि 'आये की खुशी... गम.'

आंख का अंधा नाम नयनसुख : गुण के विरूध्द नाम होना

आंख के अंधे गांठ के पूरे : मूर्ख धनवान

आग लगते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ : नुकसान होते-होते जो कुछ बच जाए, वहीं बहुत है।

आगे नाथ न पीछे पगहा : किसी तरह की जिम्मेवारी का न होना

आम के आम गुठलियों के दाम : दोहरा लाभ

इतनी सी जान गज भर की जबान : जब कोई लड़का या छोटा आदमी बहुत बढ़-चढ़ कर बातें करता है।
बच्चे को लम्बी-चौड़ी बातें करते देखकर हम सबको बड़ा आश्चर्य हुआ. रमेश ने कहा- 'इतनी सी जान... जबान'

इधर के रहे न उधर के रहे : दोनों तरफ से जाना, दो बातों में से किसी में भी सफल न होना.
निर्मल ने गृहस्थ आश्रम छोड़कर संन्यास ले लिया, पर वह भी उससे नहीं निभा. उसे एक स्त्री से प्रेम हो गया. इस प्रकार वह न इधर का रहा न उधर का.

इधर कुआँ, उधर खाई : दो विपत्तियों के बीच में.
बुराई है आज बोलने में, न बोलने में भी है बुराई. खड़ा हूँ ऐसी विकट जगह पर, इधर कुआँ है, उधर है खाई.

इधर न उधर यह बला किधर : जब कोई न मरे न उसे आराम हो, तब कहते हैं. बेचारा साल भर से चारपाई पर पड़ा हुआ है। कोई दवा उसे लाभ नहीं पहुँचाती. सेवा करते-करते घर वाले ऊब गए हैं. उसका तो वही हाल है कि इधर न उधर... किधर.

इन तिलों में तेल नहीं निकलता : ऐसे कंजूसों से कुछ प्राप्ति नहीं होती.
तुम यहाँ व्यर्थ आए हो. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि यह तुम्हें कुछ न देंगे. इन तिलों... निकलता.

इब्तदाये इश्क है रोता है क्या आगे-आगे देखिए होता है क्या :
अभी तो कार्य का आरंभ है, इसे ही देखकर घबरा गए, आगे देखो क्या होता है।

इस हाथ दे, उस हाथ ले : दान से बहुत पुण्य और लाभ होता है।
जो मनुष्य दीन-दुखियों को दान देता है, वह सदैव सम्पन्न रहता है, उसे कभी किसी वस्तु का अभाव नहीं होता. इसीलिए कहा गया है कि इस हाथ दे, उस हाथ ले.

ईंट की लेनी पत्थर की देनी : कठोर बदला चुकाना, मुँह तोड़ जवाब देना
आज के जमाने में सीधा होना भी एक अभिशाप है। सीधे आदमी को लोग अनेक विशेषणों से विभूषित करते हैं, जैसे भोंदू, घोंघा बसन्त आदि, किन्तु जो व्यक्ति ईंट की लेनी पत्थर की देनी कहावत चरितार्थ करता है उससे लोग डरते रहते हैं.

ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया : भगवान की माया विचित्र है। संसार में कोई सुखी है तो कोई दु:खी, कोई धनी है तो कोई निर्धन. ईश्वर की माया समझ में नहीं आती. संसार में कोई सुन्दर है तो कोई कुरुप, कोई स्वस्थ है तो कोई रुग्ण, कोई करोड़पति है तो कोई अकिंचन. इसीलिए कहा गया है कि ईश्वर की माया... छाया

उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे : अपराधी अपने अपराध को स्वीकार करता नहीं, उल्टा पूछे वाले को धमकाता है।

उत्तम को उत्तम मिले, मिले नीच को नीच : जो आदमी जैसा होता है उसको वैसा ही साथी भी मिल जाता है।
पर भाई, ऐसा रूप तो न आँखों देखा न कानों सुना. यह तो राजकन्या के योग्य ही है। इसमें उसने अनुचित क्या किया, क्योंकि जैसी सुन्दर वह है ऐसा ही यह भी है।

उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी भीख निदान :
खेती सबसे श्रेष्ठ व्यवसाय है, व्यापार मध्यम है, नौकरी करना निकृष्ट है और भीख माँगना सबसे बुरा है। यह बुद्धिमानों का महानुभूत सिद्धांत है कि 'उत्तम खेती...निदान' पर आज कल कृषिजीवी लोग ही अधिक दरिद्री पाए जाते हैं

उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई : जब इज्जत ही नहीं है तो डर किसका?
जब लोगों ने मुझे बिरादरी से खारिज कर ही दिया है तो अब मैं खुले आम अंग्रेजी होटल में खाना खाऊँगा

उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे : अपना अपराध स्वीकार न करके पूछने वाले को डाँटना, फटकारना या दोषी ठहराना
आज एक ग्राहक ने मेज पर से किताब उठा ली. उससे पूछा तो लगा शरीफ बनने और धौंस जमाने कि तुम मुझे चोरी लगाते हो

उल्टे बाँस बरेली को : बरेली में बाँस बहुत पैदा होता है। इसी से उसको बाँस बरेली कहते हैं
यहाँ से बाँस दूसरी जगह को भेजा जाता है। दूसरे स्थानों से वहाँ बाँस भेजना मूर्खता है। इसलिए इस कहावत का अर्थ है कि स्थिति के विपरीत काम करना, जहाँ जिस वस्तु की आवश्यकता न हो उसे वहाँ ले जाना।

उसी की जूती उसी का सर : किसी को उसी की युक्ति से बेवकूफ बनाना.
दो-एक बार धोखा खा के धोखेबाजों की हिकमतें सीख लो और कुछ अपनी ओर से जोड़कर 'उसी की जूती उसी का सिर' कर दिखाओ

ऊँची दुकान फीका पकवान : जिसका नाम तो बहुत हो पर गुण कम हों
नाम ही नाम है, गुण तो ऐसे-वैसे ही हैं. बस ऊँची दुकान फीका पकवान समझ लो

ऊँट घोड़े बहे जाए गधा कहे कितना पानी :
जब किसी काम को शक्तिशाली लोग न कर सकें और कोई कमजोर आदमी उसे करना चाहे तब ऐसा कहते हैं.

ऊँच बिलैया ले गई, हाँ जी, हाँ जी कहना : जब कोई बड़ा आदमी कोई असम्भव बात भी कहे और दूसरा उसकी हामी भरे.

ऊधो का लेना न माधो का देना : जो अपने काम से काम रखता है, किसी के झगड़े में नहीं पड़ता उसके विषय में उक्ति.

ऊँची दुकान फीका पकवान : सज-धज बहुत, चीज खराब.

एक पंथ दो काज : आम के आम गुठलियों के दाम. एक कार्य से बहुत से कार्य सिद्ध होना.

एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है : एक बुरा व्यक्ति सारे कुटुम्ब, समाज या साथियों को बुरा बनाता है।

एक अनार सौ बीमार : एक चीज के बहुत चाहने वाले.
जितने लोग हैं उनके उतनी तरह के काम हैं और एक बेचारी गाँधी टोपी है जिसे सबको पार लगाना है।

एक और एक ग्यारह होते हैं : मेल में बड़ी शक्ति होती है।
यदि तुम दोनों भाई मिलकर काम करोगे तो कोई तुम्हारा सामना न कर सकेगा.

एक कहो न दस सुनो : यदि हम किसी को भला-बुरा न कहेंगे तो दूसरे भी हमें कुछ न कहेंगे.

एक चुप हजार को हरावे : जो मनुष्य चुप अर्थात शान्त रहता है उससे हजार बोलने वाले हार मान लेते हैं

एक तवे की रोटी क्या पतली क्या मोटी: एक कुटुम्ब के मनुष्यों में या एक पदार्थ के कभी भागों में बहुत कम अन्तर होता है।

एक तो करेला (कडुवा) दूसरे नीम चढ़ा : कटु या कुटिल स्वभाव वाले मनुष्य कुसंगति में पड़कर और बिगड़ जाते हैं.

एक ही थैले के चट्टे-बट्टे : एक ही प्रकार के लोग.
लो और सुनो, सब एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं।

एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है : यदि किसी घर या समूह में एक व्यक्ति दुष्चरित्र होता है तो सारा घर या समूह बुरा या बदनाम हो जाता है।

एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती : किसी अत्यंत ऐश्वर्यशाली व्यक्ति के पूर्ण विनाश हो जाने पर इस लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है।

ऐरा गैरा नत्थू खैरा : मामूली आदमी
कोई ऐरा गैरा नत्थू खैरा महल के अंदर नहीं जा सकता था।

ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय : बूढ़े और बेकार मनुष्य को कोई भोजन और वस्त्र नहीं देता.
कमाते-धमाते तो कुछ हैं नहीं, केवल खाने और बच्चों को डांटने-फटकारने से मतलब है।..ऐसे बूढ़े...

ओखली में सिर दिया तो मूसली से क्या डर : जब कठिन काम के लिए कमर कस ली तो कठिनाइयों से क्या डरना.

ओछे की प्रीति, बालू की भीति : बालू की दीवार की भाँति ओछे लोगों का प्रेम अस्थायी होता है।

ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्य डर : कष्ट सहने पर उतारू होने पर कष्ट का डर नहीं रहता.
बेचारी मिसेज बेदी ओखली में सिर रख चुकी थी। तब मूसलों से डर कर भी क्या कर लेतीं?

ओस चाटे से प्यास नहीं बुझती : किसी को इतनी थोड़ी चीज़ मिलना कि उसकी तृप्ति न हो।

औंधी खोपड़ी उल्टा मत : मूर्ख का विचार उल्टा ही होता है।

औसर चूकी डोमनी, गावे ताल बेताल : जो मनुष्य अवसर से चूक जाता है, उसका काम बिगड़ जाता है और केवल पश्चाताप उसके हाथ आता है।

और बात खोटी सही दाल रोटी : संसार की सब चीज़ों में भोजन ही मुख्य है।

व्यंजन

सम्पादन

काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है : छल-कपट से एक बार तो काम बन जाता है, पर सदा नहीं

कपड़े फटे गरीबी आई : फटे कपड़े देखने से मालूम होता है कि यह मनुष्य गरीब है।

कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर : समय पर एक-दूसरे की सहायता की आवश्यकता पड़ती है।

कर ले सो काम, भज ले सो राम : जो कुछ करना हो उसे शीघ्र कर लेना चाहिए, उसमें आलस्य नहीं करना चाहिए।

करनी खास की, बात लाख की : जब कोई निकम्मा आदमी बढ़-चढ़कर बातें करता है।

कंगाली में आटा गीला : मुसीबत पर मुसीबत आना.
पहले परीक्षा में फेल हुआ, फिर नौकरी छूटी और घर जाते समय रेल में संदूक रह गया। इस बार मेरे साथ बड़ी बुरी बीती, कंगाली में आटा गीला हो गया।

कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना : जो मिल जाए उसी पर संतुष्ट रहना चाहिए।

कमजोर की जोरू सबकी सरहज गरीब की जोरू सबकी भाभी: कमजोर आदमी को कोई गौरव नहीं प्रदान करना, सब उसकी स्त्री से हँसी-मजाक करते हैं।

करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का : छोटे लोग काम करते हैं परन्तु नाम उनके सरदार का होता है।

करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत : जो व्यक्ति काम तो कुछ न करे पर लड़ने-झगड़ने में तेज हो।

कहां राजा भोज कहां गांगू तेरी : उच्च और साधारण की तुलना कैसी

खग जाने खग ही की भाषा : जो मनुष्य जिस स्थान या समाज में रहता है उसको उसी जगह या समाज के लोगों की बात समझ में आती है।

खर को गंग न्हवाइए तऊ न छोड़े छार : चाहे कितनी ही चेष्टा की जाय पर नीच की प्रकृति नहीं सुधरती.

खरादी का काठ काटे ही से कटता है : काम करने ही से समाप्त होता है या ऋण देने से ही चुकता है।

खरी मजूरी चोखा काम : नगद और अच्छी मजदूरी देने से काम अच्छा होता है।

खल की दवा पीठ की पूजा : दुष्ट लोग पीटने से ही ठीक रहते हैं.

खलक का हलक किसने बंद किया है : संसार के लोगों का मुँह कौन बंद कर सकता है?

खाइए मनभाता, पहनिए जगभाता : अपने को अच्छा लगे वह खाना खाना चाहिए और जो दूसरों को अच्छा लगे वह कपड़ा पहनना चाहिए.

खाल ओढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहीं होय : केवल रूप बदलने से गुण नहीं बदलता.

खाली दिमाग शैतान का घर : जो मनुष्य बेकार होता है उसे तरह-तरह की खुराफातें सूझती हैं.

खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे : लज्जित होकर बहुत क्रोध करना.

खुदा गंजे को नाखून न दे : अनधिकारी को कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिए.

खूंटे के बल बछड़ा कूदे : किसी अन्य व्यक्ति, मालिक या मित्र के बल पर शेखी बघारना.

खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे दीवाने दो : जब एक प्रकृति या रुचि के दो मनुष्य मिल जाते हैं तब उनका समय बड़े आनंद से व्यतीत होता है।

खूब मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी : दो मूर्खों का साथ, एक ही प्रकार के दो मनुष्यों का साथ.

खेत खाय गदहा मारा जाय जोलहा : जब अपराध एक व्यक्ति करे और दंड दूसरा पावे.

खेती खसम सेती : खेती या व्यापार में लाभ तभी होता है जब मालिक स्वयं उसकी देखरेख करे.

खेल खतम, पैसा हजम : सुखपूर्वक काम समाप्त हो जाने पर ऐसा कहते हैं.

खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का : काम कर्मचारी करते हैं और नाम अफसर का होता है।

खोदा पहाड़ निकली चुहिया : बहुत परिश्रम करने पर थोड़ा लाभ होना.

खौरही कुतिया मखमली झूल : जब कोई कुरूप मनुष्य बहुत शौक-श्रृंगार करता है या सुन्दर वेश-भूषा धारण करता है, तब इस कहावत का प्रयोग होता है।

गंजी कबूतरी और महल में डेरा : किसी अयोग्य व्यक्ति के उच्च पद प्राप्त करने पर ऐसा कहते हैं.

गंजी यार किसके, दम लगाए खिसके : स्वार्थी मनुष्य किसी के साथ नहीं होते, अपना मतलब सिद्ध होते ही वे चल देते हैं.

गगरी दाना सूत उताना : ओछा आदमी थोड़ा धन पाकर इतराने लगता है।

गढ़े कुम्हार भरे संसार : कुम्हार घड़ा बनाते हैं, सब लोग उससे पानी भरते हैं। एक आदमी की कृति से अनेक लोग लाभ उठाते हैं.

गधा मरे कुम्हार का, धोबिन सती होय : जब कोई आदमी किसी ऐसे काम में पड़ता है जिससे उसका कोई संबंध नहीं तब ऐसा कहा जाता है।

गधे के खिलाये न पुण्य न पाप : कृतघ्न के साथ नेकी करना व्यर्थ है।

गये थे रोजा छुड़ाने नमाज़ गले पड़ी : यदि कोई व्यक्ति कोई छोटा कष्ट दूर करने की चेष्टा करता है और उससे बड़े कष्ट में फंस जाता है तब कहते हैं.

गरीब की लुगाई, सबकी भौजाई : गरीब और सीधे आदमी को लोग प्राय: दबाया करते हैं.

गये थे रोजा छुड़ाने नमाज़ गले पड़ी : यदि कोई व्यक्ति कोई छोटा कष्ट दूर करने की चेष्टा करता है और उससे बड़े कष्ट में फंस जाता है तब कहते हैं.

गरीब की लुगाई, सबकी भौजाई : गरीब और सीधे आदमी को लोग प्राय: दबाया करते हैं.

कंगाली में गीला आटा : धन की कमी के समय जब पास से कुछ और चला जाता है।

गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त : जिसका काम हो वह अधिक परवाह न करे, किन्तु दूसरा आदमी अत्यधिक तत्परता दिखावे.

गाँठ में जमा रहे तो खातिर जमा : जिसके पास धन रहता है वह निश्चिंत रहता है।

गाँव के जोगी जोगना आन गाँव के सिद्ध : अपनी जन्मभूमि में किसी विद्वान या वीर की उतनी प्रतिष्ठा नहीं होती जितनी दूसरे स्थानों में होती है।



गाय गुण बछड़ा, पिता गुण घोड़, बहुत नहीं तो थोड़ै थोड़ : बच्चों पर माता-पिता का प्रभाव थोड़ा-बहुत अवश्य पड़ता है।

गाल बजाए हूँ करैं गौरीकन्त निहाल : जो व्यक्ति उदार होते हैं वे सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं.




गीदड़ की शामत आए तो गाँव की तरफ भागे : जब विपत्ति आने को होती है तब मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है।

गुड़ खाय गुलगुले से परहेज : कोई बड़ी बुराई करना और छोटी से बचना.

गुड़ न दे तो गुड़ की-सी बात तो करे : किसी को चाहे कुछ न दे, पर उससे मीठी बात तो करे.

गुड़ होगा तो मक्खियाँ भी आएँगी : यदि पास में धन होगा तो साथी या खाने वाले भी पास आएँगे.

गुरु गुड़ ही रहा चेला शक्कर हो गया : जब शिष्य गुरु से बढ़ जाता है तब ऐसा कहते हैं.

गुरु से कपट मित्र से चोरी या हो निर्धन या हो कोढ़ी : गुरु से कपट नहीं करना चाहिए और मित्र से चोरी नहीं करना चाहिए, जो मनुष्य ऐसा करता है उसकी बड़ी दुर्गति होती है।

गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है : अपराधियों के साथ निरपराध व्यक्ति भी दण्ड पाते हैं.

गैर का सिर कद्दू बराबर : दूसरे की विपत्ति को कोई नहीं समझता.

गों निकली, आँख बदली : स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर लोगों की आँख बदल जाती हैं, कृतघ्न मनुष्यों के विषय में ऐसा कहा जाता है।

बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा : पास में रहने पर भी किसी वस्तु या व्यक्ति का दूर-दूर ढूँढ़ा जाना.

गौरी रूठेगी अपना सोहाग लेगी, भाग तो न लेगी : जब कोई आदमी किसी नौकर को छुड़ा देने की धमकी देता है तब नौकर अपनी स्वाधीनता प्रकट करने के लिए ऐसा कहता है।

ग्वालिन अपने दही को खट्टा नहीं कहती : कोई भी व्यक्ति अपनी चीज को बुरी नहीं कहता.

घड़ीभर की बेशरमी और दिनभर का आराम : संकोच करने की अपेक्षा साफ-साफ कहना अच्छा होता है।

घड़ी में तोला घड़ी में माशा : जो जरा-सी बात पर खुश और जरा-सी बात पर नाराज हो जाय ऐसे अस्थिर चित्त व्यक्ति के कहा जाता है।

घर आई लक्ष्मी को लात नहीं मारते : मिलते हुए धन या वृत्ति का त्याग नहीं करना चाहिए.

घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते : अपने घर आने पर कोई बुरे आदमी को भी नहीं दुतकारता.

घर आए नाग न पूजिए, बामी पूजन जाय : किसी निकटस्थ तपस्वी सन्त की पूजा न करके किसी साधारण साधु का आदर-सत्कार करना.

घर कर सत्तर बला सिर कर : ब्याह करने और घर बनबाने में बहुत-से झंझटों का सामना करना पड़ता है।

घर का भेदी लंका ढाये : आपसी फूट से सर्वनाश हो जाता है।

घर की मुर्गी दाल बराबर : घर की वस्तु या व्यक्ति का उचित आदर नहीं होता.

घर घर मटियारे चूल्हे : सब लोगों में कुछ न कुछ बुराइयाँ होती हैं, सब लोगों को कुछ न कुछ कष्ट होता है।

घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने : झूठे दिखावे पर उक्ति.

घायल की गति घायल जाने : दुखी व्यक्ति की हालत दुखी ही जानता है।

घी खाया बाप ने सूंघो मेरा हाथ : दूसरों की कीर्ति पर डींग मारने वालों पर उक्ति.

घोड़ा घास से यारी करे तो खाय क्या : मेहनताना या किसी चीज का दाम मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए

घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिध्द : निकट का गुणी व्यक्ति कम सम्मान पाता है, पर दूर का ज्यादा

चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे : पहले कुछ रुपया पैसा खर्च करोगे या पहले कुछ खिलाओगे तभी काम हो सकेगा.

चट मँगनी पट ब्याह : शीघ्रतापूर्वक मंगनी और ब्याह कर देना, जल्दी से अपना काम पूरा कर देने पर उक्ति.

चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय : बहुत अधिक कंजूसी करने पर उचित.

चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात : थोड़े दिनों के लिए सुख तथा आमोद-प्रमोद और फिर दु:ख.

चाह है तो राह भी : जब किसी काम के करने की इच्छा होती है तो उसकी युक्ति भी निकल आती है।

चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता : बेशर्म आदमी पर किसी बात का असर नहीं होता.

चिकने मुँह सब चूमते हैं : सभी लोग बड़े और धनी आदमियों की हाँ में हाँ मिलाते हैं.

चित भी मेरी, पट भी मेरी : हर तरह से अपना लाभ चाहने पर उक्ति.

चिराग तले अँधेरा : जहाँ पर विशेष विचार, न्याय या योग्यता आदि की आशा हो वहाँ पर यदि कुविचार, अन्याय या अयोग्यता पाई जाए.

बेवकूफ मर गए औलाद छोड़ गए : जब कोई बहुत मूर्खता का काम करता है तब उसके लिए ऐसा कहते हैं.

चूल्हे में जाय : नष्ट हो जाय। उपेक्षा और तिरस्कारसूचक शाप जिसका प्रयोग स्त्रियाँ करती हैं.

चोर उचक्का चौधरी, कुटनी भई प्रधान : जब नीच और दुष्ट मनुष्यों के हाथ में अधिकार होता है।

चोर की दाढ़ी में तिनका : यदि किसी मनुष्य में कोई बुराई हो और कोई उसके सामने उस बुराई की निंदा करे, तो वह यह समझेगा कि मेरी ही बुराई कर रहा है, वास्तविक अपराधी जरा-जरा-सी बात पर अपने ऊपर संदेह करके दूसरों से उसका प्रतिवाद करता है।

चोर-चोर मौसेरे भाई : एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्द मेल-जोल हो जाता है।

चोरी और सीनाजोरी : अपराध करना और जबरदस्ती दिखाना, अपराधी का अपने को निरपराध सिद्ध करना और अपराध को दूसरे के सिर मढ़ना.

चौबे गए छब्बे होने दुबे रह गए : यदि लाभ के लिए कोई काम किया जाय परन्तु उल्टे उसमें हानि हो.

छोटी मुहॅ बड़ी बात

जिन ढूंढ़ा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ : परिश्रम का फल अवश्य मिलता है।

थोथा चना बाजे घना : दिखावा बहुत करना परन्तु सार न होना.

दूर के ढोल सुहावने : किसी वस्तु से जब तक परिचय न हो तब तक ही अच्छी लगती है।

नदी में रहकर मगरमच्छ से बैर : अपने को आश्रय देने वाले से ही शत्रुता करना.

नाच न जाने आंगन टेढ़ : काम न जानना और बहाना बनाना

न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी : न कारण होगा, न कार्य होगा

बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया : रुपये वाला ही ऊँचा समझा जाता है।

भेड़ जहाँ जायेगी, वहीं मुँडेगी : सीधे-सादे व्यक्ति को सब लोग बिना हिचक ठगते हैं.

रस्सी जल गई पर बल नहीं गया : बरबाद हो गया, पर घमंड अभी तक नहीं गया.

===व===विष दे विश्वास न दे

होनहार बिरवान के होत चीकने पात : होनहार के लक्षण पहले से ही दिखाई पड़ने लगते हैं।

गाँठ में जमा रहे तो खातिर जमा : जिसके पास धन रहता है वह निश्चिंत रहता है।

गाँव के जोगी जोगना आन गाँव के सिद्ध : अपनी जन्मभूमि में किसी विद्वान या वीर की उतनी प्रतिष्ठा नहीं होती जितनी दूसरे स्थानों में होती है।

गाय गुण बछड़ा, पिता गुण घोड़, बहुत नहीं तो थोड़ै थोड़ : बच्चों पर माता-पिता का प्रभाव थोड़ा-बहुत अवश्य पड़ता है।

गाल बजाए हूँ करैं गौरीकन्त निहाल : जो व्यक्ति उदार होते हैं वे सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं.

गीदड़ की शामत आए तो गाँव की तरफ भागे : जब विपत्ति आने को होती है तब मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है।

गुड़ खाय गुलगुले से परहेज : कोई बड़ी बुराई करना और छोटी से

बचना.

 
गुलगुले

गुड़ न दे तो गुड़ की-सी बात तो करे : किसी को चाहे कुछ न दे, पर उससे मीठी बात तो करे.

गुड़ होगा तो मक्खियाँ भी आएँगी : यदि पास में धन होगा तो साथी या खाने वाले भी पास आएँगे.

गुरु गुड़ ही रहा चेला शक्कर हो गया : जब शिष्य गुरु से बढ़ जाता है तब ऐसा कहते हैं.

गुरु से कपट मित्र से चोरी या हो निर्धन या हो कोढ़ी : गुरु से कपट नहीं करना चाहिए और मित्र से चोरी नहीं करना चाहिए, जो मनुष्य ऐसा करता है उसकी बड़ी दुर्गति होती है।

गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है : अपराधियों के साथ निरपराध व्यक्ति भी दण्ड पाते हैं.

गैर का सिर कद्दू बराबर : दूसरे की विपत्ति को कोई नहीं समझता.

गों निकली, आँख बदली : स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर लोगों की आँख बदल जाती हैं, कृतघ्न मनुष्यों के विषय में ऐसा कहा जाता है।

बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा : पास में रहने पर भी किसी वस्तु या व्यक्ति का दूर-दूर ढूँढ़ा जाना.

गौरी रूठेगी अपना सोहाग लेगी, भाग तो न लेगी : जब कोई आदमी किसी नौकर को छुड़ा देने की धमकी देता है तब नौकर अपनी स्वाधीनता प्रकट करने के लिए ऐसा कहता है।

ग्वालिन अपने दही को खट्टा नहीं कहती : कोई भी व्यक्ति अपनी चीज को बुरी नहीं कहता.

घड़ीभर की बेशरमी और दिनभर का आराम : संकोच करने की अपेक्षा साफ-साफ कहना अच्छा होता है।

घड़ी में तोला घड़ी में माशा : जो जरा-सी बात पर खुश और जरा-सी बात पर नाराज हो जाय ऐसे अस्थिर चित्त व्यक्ति के कहा जाता है।

घर आई लक्ष्मी को लात नहीं मारते : मिलते हुए धन या वृत्ति का त्याग नहीं करना चाहिए.

घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते : अपने घर आने पर कोई बुरे आदमी को भी नहीं दुतकारता.

घर आए नाग न पूजिए, बामी पूजन जाय : किसी निकटस्थ तपस्वी सन्त की पूजा न करके किसी साधारण साधु का आदर-सत्कार करना.

घर कर सत्तर बला सिर कर : ब्याह करने और घर बनबाने में बहुत-से झंझटों का सामना करना पड़ता है।

घर का भेदी लंका ढाये : आपसी फूट से सर्वनाश हो जाता है।

घर की मुर्गी दाल बराबर : घर की वस्तु या व्यक्ति का उचित आदर नहीं होता.

घर घर मटियारे चूल्हे : सब लोगों में कुछ न कुछ बुराइयाँ होती हैं, सब लोगों को कुछ न कुछ कष्ट होता है।

घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने : झूठे दिखावे पर उक्ति.

घायल की गति घायल जाने : दुखी व्यक्ति की हालत दुखी ही जानता है।

घी खाया बाप ने सूंघो मेरा हाथ : दूसरों की कीर्ति पर डींग मारने वालों पर उक्ति.

घोड़ा घास से यारी करे तो खाय क्या : मेहनताना या किसी चीज का दाम मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए

चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे : पहले कुछ रुपया पैसा खर्च करोगे या पहले कुछ खिलाओगे तभी काम हो सकेगा.

चट मँगनी पट ब्याह : शीघ्रतापूर्वक मंगनी और ब्याह कर देना, जल्दी से अपना काम पूरा कर देने पर उक्ति.

चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय : बहुत अधिक कंजूसी करने पर उचित.

चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात : थोड़े दिनों के लिए सुख तथा आमोद-प्रमोद और फिर दु:ख.

चाह है तो राह भी : जब किसी काम के करने की इच्छा होती है तो उसकी युक्ति भी निकल आती है।

चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता : बेशर्म आदमी पर किसी बात का असर नहीं होता.

चिकने मुँह सब चूमते हैं : सभी लोग बड़े और धनी आदमियों की हाँ में हाँ मिलाते हैं.

चित भी मेरी, पट भी मेरी : हर तरह से अपना लाभ चाहने पर उक्ति.

चिराग तले अँधेरा : जहाँ पर विशेष विचार, न्याय या योग्यता आदि की आशा हो वहाँ पर यदि कुविचार, अन्याय या अयोग्यता पाई जाए.

बेवकूफ मर गए औलाद छोड़ गए : जब कोई बहुत मूर्खता का काम करता है तब उसके लिए ऐसा कहते हैं.

चूल्हे में जाय : नष्ट हो जाय। उपेक्षा और तिरस्कारसूचक शाप जिसका प्रयोग स्त्रियाँ करती हैं.

चोर उचक्का चौधरी, कुटनी भई प्रधान : जब नीच और दुष्ट मनुष्यों के हाथ में अधिकार होता है।

चोर की दाढ़ी में तिनका : यदि किसी मनुष्य में कोई बुराई हो और कोई उसके सामने उस बुराई की निंदा करे, तो वह यह समझेगा कि मेरी ही बुराई कर रहा है, वास्तविक अपराधी जरा-जरा-सी बात पर अपने ऊपर संदेह करके दूसरों से उसका प्रतिवाद करता है।

चोर-चोर मौसेरे भाई : एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्द मेल-जोल हो जाता है।

चोरी और सीनाजोरी : अपराध करना और जबरदस्ती दिखाना, अपराधी का अपने को निरपराध सिद्ध करना और अपराध को दूसरे के सिर मढ़ना.

चौबे गए छब्बे होने दुबे रह गए : यदि लाभ के लिए कोई काम किया जाय परन्तु उल्टे उसमें हानि हो.

छूछा कोई न पूछा : गरीब आदमी का आदर-सत्कार कोई नहीं करता.

छोटा मुँह बड़ी बात : छोटे मनुष्य का लम्बी-चौड़ी बातें करना.

जंगल में मोर नाचा किसने देखा : जब कोई ऐसे स्थान में अपना गुण दिखावे जहाँ कोई उसका समझने वाला न हो.

जने-जने से मत कहो, कार भेद की बात : अपने रोजगार और भेद की बात हर एक व्यक्ति से नहीं कहनी चाहिए.

जब आया देही का अन्त, जैसा गदहा वैसा सन्त : सज्जन और दुर्जन सभी को मरना पड़ता है।

जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर : जब कष्ट सहने के लिए तैयार हुआ हूँ तब चाहे जितने कष्ट आवें, उनसे क्या डरना.

जब तक जीना तब तक सीना : जब तक मनुष्य जीवित रहता है तब तक उसे कुछ न कुछ करना ही पड़ता है।

जबरा मारे और रोने न दे : जो मनुष्य जबरदस्त होता है उसके अत्याचार को चुपचाप सहना होता है।

जर, जोरू, ज़मीन जोर की, नहीं और की : धन, स्त्री और ज़मीन बलवान् मनुष्य के पास होती है, निर्बल के पास नहीं.

जल की मछली जल ही में भली : जो जहाँ का होता है उसे वहीं अच्छा लगता है।